जम्मू : जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने शराब के लाइसेंस को रद्द किए जाने के फैसले को यह कहते हुए बरकरार रखा है कि आबकारी नीतियों को समय-समय पर मनमाने और तर्कहीन तरीके से सिर्फ उन लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाया गया, जिनके पास सत्ता तक तक पहुंच रही। इसमें राजस्व सृजन पर ध्यान नहीं दिया गया। इसके साथ ही अदालत ने नई आबकारी नीति बनाने के निर्देश भी दिए।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस संजय धर की खंडपीठ ने जम्मू-कश्मीर आबकारी अधिनियम और इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार, 2021-2022 के लिए नई आबकारी नीति तैयार करने के निर्देश दिए। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में जोर देकर कहा कि किसी भी व्यक्ति को शराब या नशीले पदार्थों का व्यापार करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
लाइसेंस रद्द करने को दी गई थी चुनौती
न्यायालय ने कहा कि जो पहले से ही शराब के कारोबार का संचालन कर रहे हैं, उन्हें 31 मार्च, 2021 तक इसे जारी रखने की अनुमति होगी। उसके बाद सरकार द्वारा 2021-2022 के लिए अधिसूचित की जाने वाली आबकारी नीति के संदर्भ में लाइसेंस आवंटित किया जाएगा। सरकार को आबकारी नीतियों के प्रावधानों को निरस्त करने के मद्देनजर उचित कदम उठाने की स्वतंत्रता होगी, जिसमें पांच साल के लिए अनुदान एवं लाइसेंसों के स्वत: नवीनीकरण की परिकल्पना निहित है।
अदालत की यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आई, जिसमें दो अपीलकर्ताओं ने उन्हें 20/08/2005 को दिए गए उनके अस्थायी लाइसेंस को रद्द करने के लिए जारी कारण बताओ नोटिस के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था। यह 19/12/2005 तक वैध था, लेकिन मामले के लंबित रहने के दौरान समय-समय पर इसे रिन्यू किया गया। अदालत ने कहा कि एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ 23/03/2017 को सुनवाई के लिए लाए जाने से पहले यह मामला 12 साल तक लंबित रहा।