- नागरिकता कानून पर जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर के बगावती सुर, नीतीश कुमार से फिर पूछा सवाल
- 'न्यायपालिका से इतर संविधान की आत्मा बचाने की जरूरत'
- तीन गैर बीजेपी शासित राज्यों के सीएम ने कानून को कहा ना, बाकी रुख करें साफ
नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन बिल पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून की शक्ल में हम सबके सामने है, हालांकि असम में इस कानून का सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है। गुरुवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर अपील किया था कि किसी भी शख्स के अधिकारों का हनन नहीं किया जाएगा। इन सबके बीच राज्यसभा में जेडीयू के समर्थन वाले फैसले पर पार्टी के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने एक बार फिर निशाना साधा है।
प्रशांत किशोर का कहना है कि अब तो यह बिल बहुमत से पारित हो चुका है, सदन ने बहुमत की बात सुनी लेकिन अब न्यायपालिका से ऊपर जाकर भारत की आत्मा को बचाने की जरूरत है। वो कहते हैं देश के 16 गैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों पर संविधान बचाने की जिम्मेदारी है, जिन्हें इस कानून पर फैसला करना है। पंजाब, केरल और पश्चिम बंगाल के सीएम पहले ही इस कानून को ना कह चुके हैं अब दूसरों की बारी है कि वो अपने नजरिए को इस मुद्दे पर साफ करें।
प्रशांत किशोर वो शख्स हैं जिन्होंने नागरिकता संशोधन बिल पर लोकसभा में भी समर्थन देने की आलोचना की थी। ट्वीट के जरिए उन्होंने कहा था कि यह तो संविधान की भावना और आत्मा दोनों के खिलाफ है, अगर पार्टी ने लोकसभा में बिल का समर्थन किया है तो राज्यसभा में चेतने का मौका है बिल का समर्थन किसी भी कीमत पर नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह बिल तो गांधी जी के आदर्शों के खिलाफ है, उन्होंन सपने में भी नहीं सोचा होगा जबव ऐसे भारत का निर्माण होगा जब संविधान के मूल्यों की अवहेलना की जाएगी।
जेडीयू उपाध्यक्ष के साथ साथ एक और कद्दावर नेता पवन वर्मा को भी आपत्ति थी। उन्होंने भी कहा कि यह समझ के बाहर है कि इस तरह का फैसला क्यों किया जा रहा है। वो मानते हैं कि नागरिकता का आधार धर्म नहीं होना चाहिए, केंद्र सरकार की दलील समझ के बाहर है, यह देश के पंथनिरपेक्ष छवि पर खतरा है, मौजूदा कानूनों में ही तमाम तरह की व्यवस्थाएं हैं जिसके जरिए नागरिकता मुहैया करायी जा सकती है, लिहाजा मोदी सरकार के मकसद को समझने की जरूरत है।