कोलकाता : पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस को लगातार झटके लग रहे हैं। पार्टी छोड़ने वाले नेताओं का सिलसिला टूट नहीं रहा है। मंत्री राजीब बनर्जी के बाद डायमंड हॉर्बर से दो बार के विधायक रहे दीपक हलदर ने ममता बनर्जी का साथ छोड़ दिया है। हलदर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होंगे या नहीं इस पर उन्होंने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है। फिर भी कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले दिनों में वह भगवा पार्टी का दामन थाम सकते हैं। हलदर ने पार्टी नेतृत्व पर निशाना साधते हुए कहा है कि उन्हें 'जनता के लिए काम करने की इजाजत नहीं दी जा रही थी।'
टीएमसी पर काम नहीं करने देने का लगाया आरोप
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक हलदर ने कहा, 'मैं दो बार से विधायक हूं लेकिन साल 2017 से मुझे जनता के लिए काम करने नहीं दिया जा रहा है। मैंने इसकी शिकायत पार्टी नेतृत्व से की लेकिन इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। मुझे पार्टी के किसी कार्यक्रम के बारे में सूचित नहीं किया जाता है। मैं अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों एवं समर्थकों के प्रति जवाबदेह हूं। इसलिए मैंने पार्टी छोड़ने का फैसला किया। मैं अपना इस्तीफा शीघ्र ही जिला एवं प्रदेश अध्यक्ष को भेज दूंगा।'
टीएमसी छोड़ भाजपा में शामिल हो रहे नेता
बता दें कि चुनाव से पहले टीएमसी में भगदड़ मची हुई है। टीएमसी छोड़कर बड़ी संख्या में नेता भाजपा में शामिल हुए हैं। इनमें सबसे बड़ा नाम सुवेंदु अधिकारी का है। इनके अलावा हाल के दिनों में सांसदों, मंत्रियों एवं विधायकों ने भगवा पार्टी का दामन थामा है। राजीब बनर्जी के अलावा हावड़ा के बाली से तृणमूल विधायक वैशाली डालमिया, हूगली के उत्तरपाड़ा के विधायक प्रबीर घोषाल पार्टी नेतृत्व के खिलाफ खुलकर बोल चुके हैं। कुछ नेताओं ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है जबकि कुछ को पार्टी ने निलंबित कर दिया है।
राज्य में अप्रैल-मई में होने हैं चुनाव
हलदर पहले से भी पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाते रहे हैं। बताया जाता है कि वह भाजपा नेता सोवन चटर्जी के करीबी हैं और उन्होंने हाल ही में उनसे मुलाकात की है। साल 2015 में एक मामले में हलदर को टीएमसी से निलंबित किया गया था और उनकी गिरफ्तारी हुई थी। राज्य में विधानसभा की 294 सीटों के लिए अप्रैल-मई महीने में चुनाव होने हैं। राज्य में इस बार मुख्य मुकाबला टीएमसी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच माना जा रहा है। इस चुनाव में भाजपा आक्रामक तरीके से आगे बढ़ रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं। जबकि ममता बनर्जी के सामने अपनी पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती है।