- आमने सामने रह चुके हैं सिंधिया और सिंह शाही घराने, हो चुकी है लड़ाई
- कांग्रेस से बाहर हो चुके हैं ज्योतिरादित्य, अब देंगे 'कमल' का साथ
- मध्यप्रदेश कांग्रेस में प्रभावी रहे हैं दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुट
नई दिल्ली: पहले से ही कमजोर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया का बाहर होना पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है। खासकर मध्यप्रदेश में पार्टी को इससे बड़ा नुकसान होने की संभावना है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के अंदर 3 गुट होने की बात कही जाती रही है। मौजूदा समय में राज्य के मुख्यमंत्री और छिदवाड़ा से मजबूत नेता कमलनाथ के पास वफादारों का एक गुट है जबकि अन्य दो की कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह के पास रही है। ज्योतिरादित्य और दिग्विजय दोनों ग्वालियर और ऱाघोगढ़ के पूर्व शाही परिवारों से हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया ने राजनीति में कांग्रेस के अच्छे दिनों के राजीव गांधी के दौर में संघर्ष किया था। ऐसा कहा जाता है कि माधवराव सिंधिया के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते नहीं थे। दिलचस्प बात यह है कि दिग्विजय सिंह के पूर्वजों की पूर्व रियासत ऱाघोगढ़ ने एक बार ग्वालियर के महाराजा सिंधिया के लिए राजस्व एकत्र करने के लिए काम किया था।
सदियों पुरानी प्रतिद्वंद्विता से सिंधिया बिरादरी और दिग्गी राजा का संबंध टूट गया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी से अलग हो चुके हैं। इस बीच दिग्विजय सिंह ने बयान दिया कि कांग्रेस में कभी भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की आवाज को दबाने की कोशिश नहीं की गई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्यप्रदेश में सरकार बनने का मौका आने के बाद सीएम पद के लिए पूछे जाने की उम्मीद की थी लेकिन कुर्सी कमलनाथ के हाथ आ गई। तब से ही सिंधिया रह रह कर अपने बागी तेवर दिखाते रहे हैं साथ ही दिग्विजय सिंह को कमलनाथ सरकार का समर्थक माना जाता रहा है।
मध्यप्रदेश राज्य कांग्रेस समिति के पद को लेकर भी सिंधिया को नजर अंदाज करने की बात सामने आई। कथित तौर पर इस दौरान दिग्विजय सिंह ने अहमद पटेल के साथ मिलकर पूर्व केंद्रीय मंत्री भूरिया का नाम आगे बढ़ाने पर जोर दिया था।
ग्वालियर बनाम ऱाघोगढ़: ऱाघोगढ़ शाही परिवार बनाम ग्वालियर शाही परिवार का इतिहास अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी का है। ज्योतिरादित्य के पूर्वज महादजी शिंदे (सिंधिया) मराठा सेनाओं के एक हिस्से के रूप में लड़ाई लड़ चुके हैं। वह अफगान आक्रमणकारी अम्हेड शाह अब्दाली के खिलाफ पनवा के तीसरे युद्ध में पेशवा के साथ थे। महादजी सिंधिया लड़ाई में घायल हो गए थे, लेकिन लड़ाई में मराठाओं की हार के बाद जीवित रहे। 'पानीपत’ के 10 साल बाद महादजी शिंदे ने 1771 में दिल्ली पर कब्जा कर लिया और मराठा आत्म-प्रतिष्ठा के तहत कमजोर मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को सिंहासन पर बैठाया।
बाद में महादजी के उत्तराधिकारी दौलतराव सिंधिया ने 1802 में ऱाघोगढ़ के 7वें राजा बने हिंदूपत राजा जय सिंह (1797-1818) से लड़ाई लड़ी थी और उनको हरा दिया था। साथ ही उनकी रियासत को ग्वालियर का जागीरदार राज्य बना लिया था। अंग्रेजों के समय भी ऱाघोगढ़ की शान बनी रही और बाद में आजादी के बाद सभी रियासतों की तरह लोकतांत्रिक व्यवस्था में ग्वालियर का भी विलय हो गया। इस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया का राज घराना ग्वालियर और दिग्विजय सिंह का शाही घराना ऱाघोगढ़ आमने सामने रह चुके हैं।