कारगिल युद्ध में मिली विजय को 22 साल पूरे हो गए हैं। देश कारगिल विजय दिवस की 22वीं वर्षगांठ मना रहा है। ऐसे में उन वीरों को भी याद कर रहा है, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। यहां हम बात करेंगे कैप्टन सौरभ कालिया की। भारतीय सेना में 22 साल का ये अधिकारी कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना द्वारा युद्ध बंदी के रूप में मारा गया था। उन्हें और उनके गश्ती दल के पांच सैनिकों को पकड़ लिया गया था और मारे जाने से पहले उन्हें प्रताड़ित किया गया था।
मई 1999 में कारगिल जिले के काकसर लंगपा इलाके में कई गश्ती अभियान चलाए गए थे ताकि यह पता लगाया जा सके कि गर्मियों के स्थानों पर फिर से कब्जा करने के लिए बर्फ कम हुई है या नहीं। कालिया, जो तब लेफ्टिनेंट के पद पर थे, कारगिल में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के भारतीय हिस्से में पाकिस्तानी सैनिकों की बड़े पैमाने पर घुसपैठ का निरीक्षण करने और रिपोर्ट करने वाले पहले भारतीय सेना अधिकारी थे। उन्होंने काकसर क्षेत्र में घुसपैठ को रोकने के लिए 13000-14000 फीट की ऊंचाई पर बजरंग पोस्ट का गार्ड संभाला।
दुश्मन का पता लगाया
15 मई 1999 को कालिया और पांच अन्य सैनिकों- सिपाही अर्जुन राम, भंवर लाल बगरिया, भीका राम, मूल राम और 4th जाट रेजिमेंट के नरेश सिंह लद्दाख के पहाड़ों में काकसर सेक्टर में बजरंग पोस्ट की नियमित गश्त पर थे। उन्हें जानकारी मिली कि दुश्मन सेना के लोग भारतीय सीमाओं की ओर बढ़ रहे थे। सौरभ ने इसको गंभीरता से लेते हुए अपनी तफ्तीश शुरू कर दी। वह जल्द ही वहां पहुंच गये जहां दुश्मन के होने की खबर थी। दुश्मन की हलचल ने जानकारी पर मुहर लगा दी। वह तेजी से आगे की ओर बढ़े। तभी उन पर हमला शुरू हो गया। दुश्मन संख्या में बहुत ज्यादा थे। पाकिस्तानी सैनिकों के पास भारी मात्रा में हथियार थे। इधर सौरभ और उनके साथियों के पास ज्यादा हथियार नहीं थे।
सौरव ने के साथ हुईं काफी यातनाएं
सौरभ ने सबसे पहले दुश्मन की सूचना अपने आला अधिकारियों को दी। फिर अपनी टीम के साथ दुश्मन का सामना करने लगे। गोलाबारी में सौरभ और उनके साथी बुरी तरह जख्मी हो गए। चारों तरफ से सौरभ को उनकी टीम के साथ घेर लिया गया। उनकी गोलियां और बारुद खत्म हो चुके थे, दुश्मन ने इसका फायदा उठाया और उन्हें बंदी बना लिया। पाकिस्तान ने लगभग 22 दिनों तक उन्हें अपनी हिरासत में रखा। उसकी लाख कोशिशों के बावजूद कैप्टन सौरभ ने एक भी जानकारी नहीं दी। उनके साथ काफी यातनाएं की गईं। सौरभ कालिया के कानों को गर्म लोहे की रॉड से छेदा गया। उनकी आंखें निकाल ली गईं, हड्डियां तोड़ दी गईं। यहां तक की उनके निजी अंग भी दुश्मन ने काट दिए थे। 9 जून का उनका शव सौंप दिया गया।
पिता ने अंतरराष्ट्रीय स्तर तक उठाया मुद्दा
कालिया के परिवार ने पाकिस्तान की इस हरकत के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र से लेकर जिनेवा कन्वेंशन तक में अभियान चलाया। कालिया के पिता ने कथित रूप से जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान करने और उन्हें दंडित करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से संपर्क किया। 2004 तक ब्रिटेन ने यह कहकर जवाब दिया था कि उसने भारतीय सेना से पूरी रिपोर्ट मांगी थी, जो नहीं मिली। जबकि इजराइल ने कहा कि उसके पाकिस्तान के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं थे। जर्मनी ने कहा कि उसके पास विदेश मंत्रालय से की गई पूछताछ का कोई जवाब नहीं है, और पाकिस्तान ने आरोपों को खारिज कर दिया।
पिता ने 2009 में कहा था कि वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहे हैं। उन्होंने अब कहा है कि मैं देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को नमन करता हूं। सरकार के कदम पाकिस्तानी सेना की क्रूर यातना के लिए पर्याप्त नहीं थे। भारत को इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना चाहिए।