- कश्मीरी पंडितों के पलायन में 14 सितंबर और 19 जनवरी का दिन बेहद अहम है।
- कश्मीरी पंडितों को पुनर्वास में 2008 में मनमोहन सिंह सरकार के समय अहम पैकेज का ऐलान किया गया था।
- इसके बाद 2015 में मोदी सरकार ने भी कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए पैकेज का ऐलान किया।
Kashmir Files: द कश्मीर फाइल्स फिल्म ने एक बार फिर कश्मीरी पंडितों के जख्म को हरा कर दिया है। और एक बार फिर से यह बहस छिड़ गई है कि पिछले 30 से कश्मीरी पंडित अपने ही देश में क्यों शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं। और 3 लाख से ज्यादा लोगों का वापस कश्मीर में अभी तक पुनर्वास को क्यों नहीं पाया। जबकि इस बीच सभी प्रमुख राजमनीतिक दलों की केंद्र और राज्य में सरकारे रहीं।
कितने लोगों ने किया पलायन
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के प्रेसिडेंट संजय टिक्कू टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल ले बताया कि हमें आरटीआई के जरिए पता चला कि दिसंबर 1989 के वक्त लगभग 77 हजार कश्मीरी पंडित परिवार रहते थे। जिनकी करीब 3.35 लाख आबादी थी। इसमें अब केवल 808 परिवार यानी 3000 लोग बचे हुए हैं।' साफ है कि 1989 से अब तक करीब 3.30 लाख कश्मीरी पंडित पलायन कर चुके हैं। टिक्कू उस वक्त के दौर को याद करते हुए कहते हैं कि कश्मीरी पंडितों के खिलाफ माहौल की शुरूआत 1986 में अनंतनाग में शिवरात्रि के दिन दंगे से हुई थे। उसके बाद कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और आईएसएल ने 1987 में एक रेकी की, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारियों में कश्मीरी पंडितों की संख्या आदि का आंकलन किया गया। जिसके बाद से घटनाएं बढ़ने लगी।
इस सवाल पर कि क्या कश्मीरी पंडितों की केंद्र और राज्य सरकार के कार्यालयों में बहुत ज्यादा संख्या थी। इस वजह से भी वह आतंकवादियों का निशाना बने तो इस पर पलायन कर जम्मू में रहने वाले और रिसर्चर डॉ रमेश तामिरी का दावा है कि 1989-90 के दौरान 4.5 लाख सरकार कर्मचारी थे। जिसमे से 13 हजार कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारी थे। उसमें से 8000 कर्मचारी सरकारी स्कूल में टीचर थे।
क्यों अभी तक नहीं हो पाया पुनर्वास
तामिरी कहते हैं 'कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद से पिछले 30 साल से कई सरकारों ने वादा किया कि वह पंडितों का फिर से पुनर्वास कराएंगे। लेकिन अभी तक कुछ हजार लोगों के पुनर्वास के अलावा कुछ नहीं हुआ है। पलायन क्यों नहीं हो पाया इस पर तामिरी कहते हैं, देखिए अभी तक किसी सरकार को यह पूरी तरह से भरोसा नहीं हो पाया है कि अगर कश्मीरी पंडितों को वापस भेजा गया तो वह सुरक्षित रहेंगे। और इसके लिए क्या कदम उठाने चाहिए, उसको लेकर पूरी समझ विकसित नहीं हो पाई है।
मनमोहन सिंह सरकार के समय 2008 में पैकेज दिया था, जिससे कि कश्मीर पंडित वापस अपने घर लौट सकें। लेकिन उसमें ऐसी शर्तें रखी गई,जो पूरा करना आसान नहीं था। जिसमें नौकरी देने के नाम पर ट्रांसफर नहीं हो सकेगा, जैसे प्रावधान थे। इसके अलावा समुदाय आधारित कम्युनिकेशन होना जरूरी है। दूसरा मांग यह है कि कश्मीरी पंडितों को पनुन कश्मीर में बसाया जाना चाहिए। जिसका प्रशासन केंद्र शासित प्रदेश के रूप होना चाहिए। जिससे कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा का अहसास हो सके। पनुन कश्मीर एक ऐसा एरिया होगा जहां पर सीधे केंद्र का शासन होगा।'
वहीं टिक्कू का कहना है कि देखिए जहां तक पुनर्वास की बात है तो इसके लिए सबसे पहले राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए। जो अभी तक किसी सरकार में नहीं दिखी है। इसके अलावा सभी कश्मीरी पंडितों के बीच तालमेल नहीं है। मेरा मानना है कि पलायन कर चुके लोगों में केवल 15-20 फीसदी लोग ही वापस आना चाहेंगे। दूसरा सुरक्षा बड़ा मुद्दा है। जिसकी वजह से अभी तक पुनर्वास नहीं हो पाया है।'
प्रमुख कदम
कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए पिछले 30 साल में दो प्रमुख पहल की गई हैं। पहली अहम पहल 2008 में मनमोहन सिंह सरकार के समय दिया गया पैकेज थी। जिसमें तीन हजार कश्मीरी पंडितों को पहले चरण में सरकारी नौकरी देने का वादा किया गया। हालांकि नवंबर 2015 तक महज 1963 पंडितों को ही राज्य सरकार की नौकरी मिल पाई थी।
इसी तरह 2015 में मोदी सरकार ने पैकेज के तहत 6000 नौकरी देने का ऐलान किया था।सरकार का कहना है कि कश्मीर में 5 अगस्त 2019 के बाद अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद अब तक 1700 कश्मीरी पंडितों को सरकारी नौकरियां मिली हैं। राज्यसभा में दिए लिखित जवाब में गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि कश्मीरी प्रवासी परिवारों को 2015 के बाद से अब तक 3800 से ज्यादा प्रवासी नौकरियों के लिए घाटी लौट चुके हैं।