- कृषि कानूनों पर विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक समिति गठित
- किसान संगठनों को समिति से सदस्यों के नाम पर ऐतराज
- कृषि कानून की वजह से उपजे गतिरोध को खत्म कराना हमारी पहली प्राथमिकता
नई दिल्ली। किसान आंदोलन के संबंध में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में जबरदस्त जिरह हुई। जिरह के दौरान सीजेआई एस एस बोबड़े की पीठ ने सरकार को किसान संगठन के वकीलों को फटकार लगाई और स्पष्ट किया कि इस मसले का समाधान निकलना चाहिए और उस दिशा में दो अहम फैसले किये। पहले फैसले में कृषि कानूनों के अमल पर अंतरिम रोक लगाने का फैसला किया गया और दूसरे फैसले में चार सदस्यों की कमेटी बना दी गई। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर किसान संगठनों से खुशी का इजहार किया। लेकिन कमेटी के गठन के मुद्दे पर नाखुशी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सभी तरह के विरोध को दरकिनार करते हुए कमेटी पर मुहर लगा दी।
कमेटी गठन के सवाल पर सीजेआई का दिलचस्प जवाब
सुनवाई के दौरान जब किसान संगठनों की तरफ से कहा गया कि कमेटी की संरचना इस तरह से की जाए जो हर किसी को मान्य हो तो इस तरह की मांग पर सीजेआई ने दिलचस्प जवाब दिया। एस ए बोबड़े ने कहा कि अदालत अच्छी कमेटी के गठन के बारे में किसी से विचार नहीं मांग रही है। हम एक कमेटी का गठन करेंगे जो कृषि कानूनों के संबंध में जो कुथ भ्रांतियां हैं उसे समझकर दूर करने का सुझाव देगी जिसके बाद हम किसी सार्थक निर्णय पर पहुंच सकेंगे।
मामले को सुलझाना पहली प्राथमिकता
अदालत ने साफ कर दिया कि नए कृषि कानूनों को लागू किए जाने से पहले एमएसपी की जो व्यवस्था है वो अगले आदेश के आने तक प्रभावी रहेगी। इसके साथ जमीनों पर किसानों के अधिकार को सुरक्षित बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकार की होगी। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि जमीनों का मालिकाना हक किसी तरह से प्रभावित ना हो। अदालत ने साफ किया कि इस विषय से जुड़े जितने भी पक्ष हैं उनके कंधे पर जिम्मेदारी है। विवाद की वजह से जो हालात पैदा हुए हैं उसे खत्म करने के सिए सभी पक्षों को आगे आने की आवश्यकता है।