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Ram Vilas Paswan Family: यहां जाने रामविलास पासवान के पूरे परिवार के बारे में

Updated Oct 08, 2020 | 22:24 IST

रामविलास पासवान की राजनीतिक जिंदगी जितनी रोचक थी उतनी ही रोचक उनकी निजी जिंदगी थी। यहां पर हम विस्तार से उनके परिवार के बारे में बताएंगे।

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भरा पूरा परिवार छोड़ गए रामविलास पासवान
मुख्य बातें
  • रामविलास पासवान ने दो शादी की थी, पहली पत्नी का नाम राजकुमारी देवी और दूसरी पत्नी का माम रीना पासवान है
  • दूसरी पत्नी रीना पासवान से एक बेटा चिराग पासवान और एक बेटी है
  • रामविलास पासवान मे पहली पत्नी राजकुमारी देवी से 1981 में तलाक लिया था

लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रहे राम विलास पासवान का जन्म 5 जुलाई 1946 बिहार से वर्तमान के खगड़िया एक दलित परिवार में हुआ था। राजनीति में आने से पहले वो बिहार पुलिस में दारोगा थे। लेकिन नियति ने उनके लिए अलग रास्ता चुना था। पढ़ाई और नौकरी के समय में भी उनका मन समजावादी आंदोलन में रमता था। समाजवादी आंदोलन के प्रति दिवानगी कुछ इस कदर बढ़ी कि उन्होंने नौकरी को त्याग दिया और राज्य से लेकर केंद्र की राजनीति में अहम ओहदों को संभाला। 

रामविलास पासवान तीन भाइयों में सबसे बड़े थे
जामुन पासवान की तीन संतान थीं जिसमें रामविलास पासवान सबसे बड़े थे, उसके बाद पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान। शहरबन्नी की झोपड़ी में गरीबी का आलम यह था कि पिता को अपने तीनों बेटों को पालने में दिक्कत होती थी। लेकिन तीनों भाइयों में से एक रामविलास शुरू से ही जुझारु थे, उन्होंने शहरबन्नी से स्कूली पढ़ाई करने के बाद एमए और एलएलबी कर लिया। 

1960 में रामविलास पासवान की हुई थी पहली शादी
रामविलास पासवान ने दो शादी की थी। उनकी पहली शादी 1960 में राजकुमारी देवी से हुई थी।  पहली शादी से दो बेटियां ऊषा और आशा हैं। लेकिन पहला रिश्ता सिर्फ 21 साल तक चला। आपसी मनमुटाव की वजह से 1981 में राजकुमारी देवी को  तलाक दे दिया ।

पहली पत्नी से तलाक के बाद 1983 में की दूसरी शादी
तलाक लेने के दो साल बाद 1983 में अमृतसर की एयरहोस्टेस रीना शर्मा से दूसरी शादी की। दूसरी शादी से एक बेटा और एक बेटी है। बेटा चिराग पासवान अभी जमुई से सांसद हैं। चिराग पासवान ने एमए एलएलबी की पढ़ाई की।


रामविलास पासवान की राजनीतिक पारी

रामविलास पासवान की  राजनीतिक पारी 1969 में शुरू की। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (युनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी) के टिकट पर चुनाव लड़कर बिहार विधानसभा पहुंचे। 1974 में राज नारायण और जय प्रकाश नारायण से प्रभावित होकर उनसे जुड़ गए। राजनीतिक सफर में पहले वो लोकदल का महासचिव बने और राजनीतिक सफर में वो नित नए मुकाम पर पहुंचते गए।

आपातकाल के दौरान के दौर में वे राजनाराण, कर्पूरी ठाकुर, सत्येंद्र नारायण सिन्हा के करीब आ गए। फिर मोरारजी देसाई के साथ आ गए और लोकबंधु राज नारायण के नेतृत्व वाली जनता पार्टी एस में शामिल हो गए।  1977 में जेल से रिहा किए गए और वे जनता पार्टी से सदस्य बने। पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े और सर्वाधिक अंतर से चुनाव जीतने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। उसके बाद वे 1980, 1989, 1996, 1998, 1999, 2004 और 2014 में हाजीपुर से लोकसभा चुनाव जीते। 

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