- निर्भया के दोषियों को सुबह 5.30 बजे तिहाड़ जेल में दी गई फांसी
- निर्भया की तरफ से कानूनी जंग को मुकाम तक पहुंचाने में सीमा समृ्द्धि का अहम रोल
- निर्भया के दोषियों की शातिर चालों को एक एक कर किया नाकाम
नई दिल्ली। करीब सात साल तीन महीने के बाद निर्भया के परिवार को अंतिम इंसाफ मिला। अंतिम इसलिए कि तिहाड़ जेल की फांसी घर में चारों दोषियों पवन गुप्ता, विनय शर्मा, मुकेश सिंह और अक्षय ठाकुर को सूली पर लटकाया जा चुका है। फांसी दिए जाने के तुरंत बाद निर्भया की मां अपनी बेटी की तस्वीर से लिपटीं और बोलीं कि अंत में न्याय और सत्य की जीत हुई है।
निर्भया के पिता के वो शब्द
निर्भया के पिता ने भी कहा कि तमाम अड़चनों के बाद बराबरी की लड़ाई में इंसाप जीत चुका है। इन सबके बीच एक और चेहरा सीमा समृद्धि कुशवाहा का भी है जिन्होंने दोषियों को फांसी के फंदे तक ले जाने में अहम भूमिका निभाई जो निर्भया की तरफ से केस को शिद्दत के साथ अदालतों के सामने रख रही थीं। वो कहते हैं कि लंबी और थकाऊ कानूनी प्रक्रिया में शरीर भले ही थका हो। लेकिन उत्साह और आत्मविश्वास में किसी तरह की कमी नहीं आई। उन्हें उम्मीद थी कि भले ही इंतजार लंबा होगा न्याय जरूर मिलेगा।
कौन हैं सीमा समृद्धि कुशवाहा
- सीमा समृद्धि सुप्रीम कोर्ट की वकील हैं और निर्भया ज्योति ट्रस्ट में कानूनी सलाहकार भी हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा हासिल करने वाली सीमा ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू की थी। वह 24 जनवरी, 2014 को निर्भया ज्योति ट्रस्ट से जुड़ीं।
- केस लेने के बाद से ही वे निर्भया के माता-पिता के साथ अंत तक चट्टान की तरह खड़ी रहीं।
- आईएएस अधिकारी बनना चाहती थीं इसके लिए तैयारी भी कर रही थीं ।
- मूल रूप से उत्तर प्रदेश के इटावा की रहने वाली हैं सीमा ।
सीमा समृद्धि का क्या कहना है
निर्भया आपको न्याय दिला कर एक सुकून है,लेकिन आपके दर्द को कम नहीं कर सके थे। और देश हजारों बेटियाँ आज भी इसी दर्द में जी रही हैं। सिस्टम कब सक्रिय रूप से कार्य करेगा? उन्होंने कहा कि इंसाफ की लड़ाई आसान न थी। लेकिन एक उम्मीद थी कि देर भले ही हो न्याय जरूर मिलेगा विरोधी पक्ष भी बहुत मजबूत था। वो इस केस में अड़चन डालने की लगातार कोशिश करता रहा। लेकिन उनकी इस हरकतों से अदालतों को भी यकीन हो चला था कि मामले को सिर्फ उलझाने की कवायद थी।
उम्मीद जगी कि 20 मार्च दोषियों के लिए आखिरी दिन होगा
सीमा समृद्धि कहती हैं कि निर्भया के लिए लड़ना आसान बात नहीं थी, बल्कि कई तरह की चुनौतियां आईं। तीन दफा डेथ वारंट का कैंसिल हो जाना उनमें से एक था। लेकिन दिल और दिमाग में एक बात साफ थी कि दोषी किसी भी सूरत में नहीं बच सकेंगे। बचाव पक्ष की दलीलें अंतिम रूप से नकार दी जाएंगी। आप सबने देखा होगा कि किस तरह से उन बातों को न्यायिक बहस के आलोक में लाया जा रहा था जिसका कोई आधार नहीं था। दिल्ली हाईकोर्ट में जब बचाव पक्ष की तरफ से आखिरी दलीलें पेश की जा रहीं थी तो अभियोजन के तर्क बेदम साबित हो रहे थे और उम्मीद कामयाबी में बदल गई कि अब 20 मार्च का दिन दोषियों के लिए आखिरी दिन साबित होगा।