- लॉकडाउन का असर केवल आम जनजीवन पर ही नहीं पड़ा है, प्रकृति पर भी पड़ा असर
- पहले से निर्मल हुआ गंगा का पानी, हरिद्वार में सबसे बेहतर हुई गुणवत्ता
- हर की पैड़ी में पिछले एक दशक बाद पीने योग्य हुआ गंगा का पानी
नई दिल्ली: कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में दूसरे चरण का लॉकडाउन लागू है। लॉकडाउन का असर जहां आम जनजीवन पर पर रहा है वहीं इसका दूसरा सकारात्मक पहलू भी नजर आ रहा है। लॉकडाउन की वजह से कोरोना के बढ़ते मामलों पर काबू तो ही रहा है और साथ में प्रकृति भी इससे बेहतर हुई है। हवा हो या पानी दोनों की गुणवत्ता पहले के कई गुना बेहतर हो चली है और इसका असर गंगा के पानी में देखने को भी मिल रहा है।
पीने योग्य हुआ पानी
गंगा पहले के मुकाबले 50 फीसदी से अधिक साफ नजर आ रही है। दरअसल गंगा में होने वाले प्रदूषणों में काफी हिस्सेदारी उद्योगों की होती है और लॉकडाउन की वजह से अधिकांश उद्योग बंद हैं जिससे गंगा के पानी की स्थिति बेहतर हुई है। उत्तराखंड के ऋषिकेश और हरिद्वारा में पानी की गुणवत्ता में तो इतना सुधार हुआ है कि वो पीने योग्य हो गया है। पिछले दशक में यह पहला मौका है जब हर की पौड़ी के पानी की गुणवत्ता पीने योग्य हो गई है।
ये रही वजहें
पर्यावरणविदों का माननात है कि लॉकडाउन की वजह से पहाड़ से लेकर मैदान तक सब जगह उद्योग धंधे बंद है और निर्माण कार्यों पर रोक लगी है जिसकी वजह से अब नदियों की सतरह पर पड़ा रेत, पत्थर और मछलियां साफ दिखाई दे रही हैं। लॉकडाउन की वजह से लोगों का घर से निकलना भी बंद है और इस वजह से नदियों में कूड़ा भी नहीं फेंका जा रहा है और उसका असर साफ देखा जा रहा है।
शहरी इलाकों में पानी हुआ बेहतर
कुल मिलाकर देखा जाए तो मानवीय दखल कम होने की वजह से गंगा पहले से कई गुना निर्मल हो गई है। लोगों का कहना है कि सही मायनों अब गंगाजल पवित्र हुआ है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि ऐसा ही रहा तो गंगा का जल पहले जैसा ही हो जाएगा। पहाड़ी ही नहीं मैदानी इलाकों में भी गंगा के जल की गुणवत्ता बेहतर हुई है। कानपुर जहां आकर गंगा सबसे अधिक प्रदूषित हो जाती है वहां भी पानी पहले की तुलना में काफी स्वच्छ हुआ है।