- आजमगढ़ से अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव चुनावी मैदान में हैं। उन्हें भाजपा के निरहुवा टक्कर दे रहे हैं।
- रामपुर में आजम खां के दो करीबियों के बीच टक्कर है।
- भाजपा के लिए इन 2 लोक सभा सीटों पर जीत हासिल करने की बड़ी चुनौती है।
Lok sabha By Election: महाराष्ट्र में जारी सियासी घमासान के बीच उत्तर प्रदेश में भी आज चुनावी घमासान चल रहा है। और यह घमासान समाजवादी पार्टी के दो सबसे मजबूत गढ़, आजमगढ़ (Azamgarh) और रामपुर (Rampur) में चल रहा है। लोक सभा की इन 2 सीटों पर उप चुनाव हो रहे हैं। और दोनों सीटें समाजवादी पार्टी के दो सबसे कद्दावर नेताओं के इस्तीफे से खाली हुई हैं। आजमगढ़ से जहां समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) सांसद थे, वहीं रामपुर से आजम खां(Azam Khan) सांसद थे। दोनों नेताओं ने विधान सभा चुनाव जीतने के बाद सीट खाली की है। आजमगढ़ और रामपुर ऐसे संसदीय क्षेत्र हैं, जहां पर 2019 के लोक सभा चुनाव और 2024 के विधान सभा चुनाव में भाजपा की लहर का असर नहीं दिखा। ऐसे में इस बार उप चुनाव में सबसे बड़ा सवाल यही है क्या भाजपा अखिलेश यादव और आजम खान के गढ़ में सेंध लगा पाएगी, खास तौर पर जब चुनाव प्रचार की कमान खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने संभाल रखी थी।
अखिलेश के भाई और निरहुवा में टक्कर
आजमगढ़ से भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर से भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं, समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा है। जबकि बसपा से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली उम्मीदवार हैं। मार्च में हुए विधान सभा चुनाव में आजमगढ़ की सभी 5 सीटों पर समाजवादी पार्टी का दबदबा रहा है। और उसने भाजपा की लहर के बावजूद सभी सीटों पर जीत दर्ज की। 2019 के लोक सभा चुनाव में अखिलेश यादव ने निरहुआ को करीब 2.80 लाख वोटों से हराया था। लेकिन उस बार बसपा ने सपा के समर्थन में कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया था। इस बार गुड्डू जमाली को बसपा को उतार कर मुस्लिम और दलित वोटर को अपने पाले में लाने की कोशिश की है।
हालांकि इस बार समीकरण बदले हुए हैं क्योंकि अखिलेश न तो चुनाव प्रचार के लिए आजमगढ़ आए और न ही इस बार वह मैदान में हैं। जबकि भाजपा ने निरहुआ को पिछले 5 साल से सक्रिय कर रखा है। ऐसे में उनके पास पिछले चुनाव का अनुभव है। आजमगढ़ में 26 फीसदी यादव, 24 मुस्लिम और 20 फीसदी दलित वोटर हैं। ऐसे में अगर पुराना इतिहास देखा जाय तो 1996 से 2019 के बीच यहां पर 4 बार समाजवादी पार्टी, 2 बार बसपा और एक बार भाजपा की जीत हुई है। मामला त्रिकोणीय होने से लड़ाई दिलचस्प हो गई है। अगर बसपा दलित और मुस्लिम वोटर को अपने पाले में खींचने में सफल रही तो आजमगढ़ की लड़ाई काफी रोचक हो सकती है।
रामपुर में आजम खां के दो करीबियों में टक्कर
आजमगढ़ की तरह रामपुर भी सपा के लिए प्रतिष्ठा की सीट है। और यहां पर अखिलेश से ज्यादा 27 महीने बाद जेल से छूटे आजम खान की प्रतिष्ठा दांव पर है। रामपुर से कभी आजम खां के करीबी रहे घनश्याम लोधी को भाजपा ने टिकट दिया है। वह 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले, सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। वहीं, सपा ने आजम के दूसरे करीबी आसिम रजा का मैदान में उतारा है। जबकि बसपा ने रामपुर उपचुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया है। वहीं कांग्रेस ने उप चुनाव में कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा है।
रामपुर लोकसभा में भी पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में पांच में से तीन सीटें सपा ने तो दो सीटें भाजपा ने जीतीं थी। इस सीट पर आजम खां का इतना प्रभाव है कि वह जेल में रहते हुए विधान सभा चुनाव जीत गए थे। जबकि 2019 में उन्होंने भाजपा से चुनाव लड़ी जया प्रदा को हराया था। जिनके साथ उनकी राजनीतिक दुश्मनी हमेशा से चर्चा में रही है। रामपुर में 55 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। ऐसे में अगर पुरान रिकॉर्ड देखा जाय तो यहां पर सपा और कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। हालांकि 1991, 1998 और 2014 में भाजपा भी यहां जीत चुकी है। जहां तक आजम खां की बात है तो यहां से वह 10 बार विधायक का चुनाव जीत चुके हैं।
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भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
रामपुर और आजमगढ़ सीट जीतना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। उप चुनाव में अखिलेश यादव ने चुनाव प्रचार से पूरी तरह से दूरी बनाकर रखी। और प्रचार की कमान दोनों संसदीय सीट पर आजम खान के हाथ में थी। इसी तरह भाजपा के तरफ से खुद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कमाल संभाल रखी थी। ऐसे में देखना होगा कि जिस तरह विधान सभा चुनाव में भाजपा का जादू चला था क्या वैसा ही जादू लोक सभा उप चुनाव में भी दिखेगा, या फिर सपा अपना गढ़ एक बार फिर बचाने में कामयाब रहेगी।