- दो तिहाई बहुमत का दावा करने वाले शिंदे गुट अगर मनसे में विलय कर लेता है। तो वह कानूनी रूप से कहीं ज्यादा सुरक्षित हो जाएगा।
- राज ठाकरे इस समय भाजपा और शिंदे गुट के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकते हैं।
- शिंदे गुट का मनसे में विलय से राज ठाकरे की राजनीतिक हैसियत में भी इजाफा होगा।
Raj Thackeray And Eknath Shinde Talk: करीब एक हफ्ते से महाराष्ट्र में चल रहे सियासी ड्रामे में उद्धव ठाकरे (Udhhav Thackeray) के भाई राज ठाकरे (Raj Thackeray) की एंट्री हो गई है। महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे और शिव सेना के बागी विधायक और मंत्री एकनाथ शिंदे की राज्य में जारी सियासी संकट के बीच 2 बार बात हो चुकी है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या शिंदे और राज ठाकरे के बीच कोई खिचड़ी पक रही है। क्योंकि जिस तरह, अब यह सियासी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है, उसे देखते हुए शिंदे और राज ठाकरे की बातचीत कई नए सियासी समीकरण का रास्ता खोल सकती है।
सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंची लड़ाई
शिंदे और उनके बागी विधायकों की बगावत के बाद से ही उद्धव ठाकरे गुट बागी विधायकों को कानूनी दाव पेंच में उलझाना चाह रहा था। और इसी कड़ी में उद्धव गुट ने डिप्टी स्पीकर से बागी 16 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग कर डाली। और उस पर कार्रवाई करते हुए शनिवार को डिप्टी स्पीकर ने 16 विधायकों को नोटिस भेजकर , इस मामले पर जवाब देने के लिए आज विधानसभा में हाजिर होने को कहा था। डिप्टी स्पीकर को नोटिस के खिलाफ शिंदे गुट ने अदालत का रुख कर लिया।
शिंदे गुट ने कोर्ट में मांग की है कि 16 बागी विधायकों के खिलाफ डिप्टी स्पीकर की कार्रवाई पर रोक लगाई जाए और इसके अलावा अजय चौधरी को शिव सेना विधायक दल का नेता बनाने के फैसले पर भी रोक लगे, क्योंकि उद्धव गुट के पास विधायकों का समर्थन नहीं है। शिंदे गुट के पास इस समय शिव सेना के 39 विधायकों का समर्थन है।
ठाकरे से शिंदे को क्या फायदा
असल में शिंदे गुट की बगावत का मामला जिस तरह अदालत में पहुंच चुका है। उसमें राज ठाकरे, शिंदे को कानूनी और संवैधानिक दांव-पेंच से बचा सकते है। दो तिहाई बहुमत का दावा करने वाले शिंदे गुट अगर मनसे में विलय कर लेता है। तो वह कानूनी रूप से कहीं ज्यादा सुरक्षित हो जाएगा। इसके अलावा शिंदे गुट का मनसे का साथ जाना राजनीतिक रूप से भी सहज होगा। क्योंकि जिस बाला साहेब ठाकरे के हिंदुत्व की बात एकनाथ शिंदे लगातार कर रहे हैं, उसी आक्रामक हिंदुत्व के लिए राज ठाकरे जाने जाते हैं। और राज ठाकरे ने भी एकनाथ शिंदे की तरह उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ बगावत की थी। हालांकि अभी तक दोनों पक्षों के तरफ से यह बयान दिया जा रहा है कि शिंदे ने राज ठाकरे की तबियत के बारे में जानने के लिए फोन किया था।
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राज ठाकरे की 2005 में शिवसेना से बगावत
राज ठाकरे एक समय अपने चाचा बाला साहेब ठाकरे के चहेते हुआ करते थे। और उनके तेवरों और बाला साहेब ठाकरे द्वारा दिए जाने वाले अहमियत से वह शिव सेना में नंबर-2 कहे जाते थे। ऐसे में राज ठाकरे को यह उम्मीद थी कि चाचा बाला साहेब ठाकरे उन्हें राजनीतिक विरासत देंगे। लेकिन जब बाला साहेब ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव ठाकरे को शिव सेना को कमान सौंपी तो उसके बाद 2005 में राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना बना ली। नई पार्टी के बाद राज ठाकरे ने भी चाचा की तरह मराठी और हिंदुत्व की राजनीति शुरू की, लेकिन अभी तक वह, राज्य की राजनीति में उम्मीद के मुताबिक मुकाम नहीं बना पाए है। 2019 के विधान सभा चुनाव में मनसे को एक सीट मिली थी।
भाई उद्धव ठाकरे को पटखनी देने के लिए उठाएंगे कदम
भले ही राज ठाकरे के पास इस समय एक ही विधायक हैं। लेकिन इस समय वह भाजपा और शिंदे गुट के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकते हैं। इसके अलावा अगर उनके पार्टी में 39 विधायक शामिल हो जाते हैं, तो उनका राजनीतिक रसूख भी बढ़ जाएगा। और महाराष्ट्र की राजनीति में वह किंग मेकर के रूप में स्थापित हो सकेंगे। हालांकि इसके लिए उन्हें अपने भाई उद्धव ठाकरे को सियासी झटका देना होगा। ऐसे में राज ठाकरे और शिंदे की गुफ्तगु क्या गुल खिलाएगी, इसके लिए उनके अगले कदम का इंतजार करना होगा।