- पश्चिम बंगाल में 42 , महाराष्ट्र में 48, तमिलनाडु में 39, तेलंगाना में 17 लोक सभा सीटें हैं।
- ममता बनर्जी गैर भाजपा दलों पर दांव लगाकर करीब 200 लोकसभा सीटों को साधने की रणनीति पर काम कर रही हैं।
- हालकि ममता बनर्जी के रास्ते में सबसे बड़ी अड़चन कांग्रेस हैं, जो उन्हें विपक्ष का चेहरा नहीं बनने देना चाहती है।
नई दिल्ली: एक तरफ 5 राज्यों के चुनाव की सरगर्मियां है, दूसरी तरफ दक्षिण भारत से एक नई हवा बह रही है। नई राजनीतिक हवा के जरिए गैर भाजपा दलों को एक छतरी के नीचे लाने की कवायद है। और इसकी वजह संघीय ढांचे को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच उपजा मतभेद बन रहा है। इस नई हवा की सूत्रधार ममता बनर्जी हैं। और इनका एजेंडा है दिल्ली चलो, असल में गैर भाजपा दलों के मुख्यमंत्री दिल्ली पहुंचकर एक बार फिर से तीसरे मोर्चे की कवायद शुरू करने की कोशिश में हैं। जिससे कि 2024 के लिए भाजपा को चुनौती देने के लिए नया विकल्प खड़ा हो सके।
कौन हैं शामिल
असल में कुछ दिनों पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को फोन करके गैर बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक की कवायद शुरू की है। और बीते रविवार को तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने भी ममता बनर्जी के साथ फोन पर हुई बात को सार्वजनिक किया । और उम्मीद जताई कि जल्द ही गैर बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक होगी।
इसके बाद आज यानी 16 फरवरी को तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर के ऑफिस ने ट्वीट कर बताया कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव 20 फरवरी को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात करेंगे। कार्यालय के अनुसार दोनों मुख्यमंत्रियों के बीच संघीय ढांचे को लेकर बातचीत होगी। इसके पहले मंगलवार को तेलंगाना के मुख्यमंत्री कार्यालय ने यह जानकारी दी थी कि पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने भी के चंद्रशेखर राव को फोन करके उनका समर्थन जताया है।
किन मुद्दों पर एक जुट करने की कवायद
असल में चाहे ममता बनर्जी हो या फिर उद्धव ठाकरे, एम.के.स्टालिन या फिर चंद्रशेखर राव सभी संघीय ढांचे के कमजोर होने की चिंता जता रहे हैं। और उनका दावा है कि केंद्र द्वारा मनोनीत राज्यपाल इस काम में केंद्र सरकार की मदद कर रहे हैं। इस समय पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का राज्यपाल जगदीप धनखड़ के साथ टकराव अपने चरम पर पहुंच गया है। इसी तरह उद्धव ठाकरे के साथ महाराष्ट्र के राज्य पाल भगत सिंह कोश्यारी के साथ 36 आंकड़ा चल रहा है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के.स्टालिन बीते शनिवार को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को लेकर ट्वीट किए थे। जिसमें उन्होंने कहा था इतने ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति से इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती और यह स्थापित नियमों और परंपराओं के खिलाफ है। स्टालिन ने यह ट्वीट बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ की ओर से राज्य विधानसभा का अचानक सत्रावसान करने के फैसले पर किया था।
स्टालिन इसके पहले 5 फरवरी को तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि पर आरोप लगा चुके हैं कि उन्होंने राज्य के नीट विरोधी विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए तुरंत केंद्र सरकार के पास नहीं भेजा। और इस तरह उन्होंने अपने संवैधानिक कर्तव्य को नहीं निभाया।
केसीआर के भी बदले सुर
भाजपा और टीआरएस के बीच 2020 मे हुए हैदराबाद निकाय के समय से बिगड़ने शुरू हो गए थे। जब भाजपा के अमित शाह, योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं ने जाकर निकाय चुनावों में प्रचार किया था। और चंद्रशेखर राव की टीआरएस को कई सीटें गंवानी पड़ी थी। असल में भाजपा तेलंगाना में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही है। जिसका सबसे बड़ा खतरा टीआरएस को है। इसीलिए कभी भाजपा के प्रति नरम रूख रखने वाले चंद्रशेखर राव अब काफी कड़ा रूख अपना रहे हैं।
पहले वह 5 फरवरी को रामानुजाचार्य की मूर्ति के अनावरण पर हैदराबाद पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रिसीव करने वाले एयरपोर्ट नहीं पहुंचे। उसके बाद उन्होंने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को निशाना पर लिया। केसीआर ने सरमा के राहुल गांधी पर की गई विवादास्पद टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई थी और उनसे माफी मांगने को कहा था।
इसके बाद केसीआर ने पुलवामा हमले की बरसी पर सर्जिकल स्ट्राइक पर राहुल गांधी के सबूत मांगने वाले रूख का समर्थन करते हुए कहा कि केंद्र सरकार को सबूत दिखाना चाहिए। भाजपा झूठा प्रोपेगैंडा फैलाती है इसलिए लोग सबूत मांग रहे हैं।
ममता की नई सिरे से भूमिका
मई 2021 में पश्चिम बंगाल में भाजपा को पटखनी देने के बाद से ही ममता बनर्जी केंद्र में नरेंद्र मोदी के साथ खुद को विपक्ष का चेहरा बनने की कोशिश कर रही है। पहले उन्होंने कांग्रेस के साथ चलने की कोशिश की, लेकिन इस कवायद में कांग्रेस खुद की तिलांजलि दे उन्हें विपक्ष का चेहरा नहीं बनने देना चाहती थी। ऐसे में उन्होंने नई रणनीति के तहत कमजोर होती कांग्रेस को पूर्वोत्तर भारत और गोवा में झटका देना शुरू किया । और राहुल गांधी की कार्यशैली पर भी सार्वजनिक बयान देकर, गैर कांग्रेसी विपक्षी नेताओं को जुड़ने की कवायद शुरू की है। ताजा कवायद दक्षिण भारत के गैर भाजपा क्षत्रपों को लेकर चलने की है।
कितनी मजबूत है नई कवायद
ममता जिन नेताओं को अपने साथ जोड़ने में सफल होती दिख रही हैं। उनकी राजनीतिक ताकत अपने राज्यों में बेहद मजबूत है। वे करीब 146 लोकसभा सीटों पर असर रखते हैं। पश्चिम बंगाल में 42 लोक सभा सीटें हैं, महाराष्ट्र में 48, तमिलनाडु में 39, तेलंगाना में 17 सीटें हैं। इसके अलावा झारखंड, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और केरल ऐसे अहम राज्य हैं, जहां पर गैर भाजपाई मुख्यमंत्री हैं। ममता इन्हीं राज्यों के दलों को जोड़कर करीब 200 लोकसभा सीटों को साधना चाहती है।
क्या ये मुख्यमंत्री छोड़ेंगे कांग्रेस का साथ
लेकिन इस कवायद में सबसे बड़ी अड़चन ममता के सामने कांग्रेस ही है। क्योंकि तमिलनाडु में डीएमके, महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी सरकार और झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चल रही सरकार में कांग्रेस शामिल हैं। ऐसे में इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए कांग्रेस के बिना कोई गठबंधन बनाना आसान नहीं होगा। इसके अलावा केरल में वामदलों की सरकार है। जिसका ममता बनर्जी को अभी तक साथ नहीं मिला है। और उड़ीसा में नवीन पटनायक ने अभी तक कई मौके पर भाजपा का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से साथ देते आए हैं।
इस कवायद में केवल चंद्रशेखर राव और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ऐसे हैं, जिनकी अपने राज्य में कांग्रेस से सीधी टक्कर है और उनके लिए कांग्रेस से अलग तीसरे मोर्चे में शामिल होना आसान होगा।
खैर पांच राज्यों के चुनाव परिणाम भी इस हवा के रूख को तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे। इसलिए भले ही ममता अभी गैर भाजपा मुख्यमंत्रियों को जोड़ने की कोशिश में हैं लेकिन असली हवा का रूख 10 मार्च के 5 राज्यों के नतीजों से तय होगा।