- फिल्म अभिनेता मनोज बाजपेयी के जीवन पर आधारित पुस्तक दे रही है बाजार में दस्तक
- वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पांडे ने लिखी 'कुछ पाने की जिद, मनोज बाजपेयी'
मनोज बाजपेयी नए जमाने के गिनेचुने कलाकारों में से हैं जिन्होंने कम उम्र में ही हिंदी सिनेमा में एक बड़ा कद हासिल कर लिया था। दिग्गज कलाकार और फिल्म समीक्षक उनके अभिनय का लोहा मानते हैं। दर्शक उनके नाम पर थियेटर जाते हैं और वे जानते हैं कि बाजपेयी सिर्फ अपने मन की फिल्में करते हैं।मनोज बाजपेयी की यह जीवनी अभिनय को लेकर उनके जिद और जुनून की कहानी है जिसमें पाठकों को कई नई बातें पता लगेंगी।
कम ही लोगों को पता होगी ये बात
इस पुस्तक में आपको पता चलेगा कि बाजपेयी के पिता भी पुणे के फिल्म इंस्टिट्यूट में ऑडिशन का टेस्ट देने गए थे, उनके पूर्वज अंग्रेजी राज के एक दमनकारी किसान कानून की वजह से उत्तर प्रदेश के रायबरेली से चंपारण आए थे और ये भी कि मनोज बाजपेयी का बचपन उस गांव में बीता है जहाँ ने महात्मा गांधी ने अपने प्रसिद्ध चंपारण सत्याग्रह दौरान एक रात्रि विश्राम किया था और फिल्म सत्या के भीखू म्हात्रे का चरित्र मनोज के गृहनगर बेतिया के एक शख्स से प्रेरित था, वगैरह-वगैरह।
मनोज बाजेपेयी की यह जीवनी वरिष्ठ टीवी पत्रकार पीयूष पांडे ने लिखी है जो उनसे एक दशक से ज़्यादा से जुड़े रहे हैं और ऐसी घटनाओं और किस्सों के गवाह हैं जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। मनोज बाजपेयी और उनके सिनेमाई सफ़र को जानने के लिए यह एक ज़रूरी पुस्तक है।
लेखक के बारे में
पीयूष पांडे ने आजतक, एबीपी न्यूज़ और जी न्यूज़ समेत कई मीडिया संस्थानों में काम किया है। इससे पहले उनकी तीन पुस्तकें छिछोरेबाजी का रिजोल्यूशन, धंधे मातरम् और कबीरा बैठा डिबेट में से प्रकाशित हो चुकी है। उन्होंने स्टार प्लस के सीरियल महाराज की जय हो के संवाद भी लिखे और वह फिल्म ब्लू माउंटेंस के एसोसिएट डायरेक्टर भी रह चुके हैं।