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Padma Sri Award: अयोध्या के मोहम्मद शरीफ को आज भी है पद्म श्री पुरस्कार मिलने का इंतजार

Updated Feb 20, 2021 | 22:22 IST

अयोध्या के मोहम्मद शरीफ को आज भी पद्मश्री पुरस्कार पाने का इंतजार है। ये वो शख्स हैं जो लावारिश शवों का अंतिम संस्कार करते रहे हैं

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मोहम्मद शरीफ लावारिश शवों का अंतिम संस्कार करते रहे हैं
मुख्य बातें
  • अयोध्या के रहने वाले मोहम्मद शरीफ करीब 25 हजार लावारिश शवों का कर चुके हैं अंतिम संस्कार
  • पिछले साल पद्म श्री पुरस्कार दिए जाने की हुई थी घोषणा
  • एक साल बीत जाने के बाद भी नहीं मिल सका पदक और प्रशस्ति पत्र

अयोध्या। किसी कथावाचक का कहना है कि अंग्रेजी के दो अक्षर B और D ही सच हैं। यानी कि जन्म और मौत। जब किसी शख्स की मौत होती है तो उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। अयोध्या के रहने वाले मोहम्मद शरीफ लावारिश शवों का अंतिम संस्कार करते रहे हैं और उनकी इस सेवा के लिए उन्हें पद्म श्री के लिए चयन किया गया। वो कहते हैं कि पद्म श्री पुरस्कार के बारे में उन्हें न्यूज के जरिए जानकारी मिली। लेकिन उन्हें आज भी पुरस्कार मिलने का इंतजार है। वो कहते हैं कि करीब दो महीने पहले वो बीमार पड़ गए और अभी भी तबीयत खराब है।

करीब 25 हजार लावारिश शवों का अंतिम संस्कार करने रिकॉर्ड
83 वर्ष के मोहम्मद शरीफ को खुद भी याद नहीं है कि उन्होंने कितने लावारिश शवों को अंतिम संस्कार किया होगा। परिवार का कहना है कि  अब तक 25,000 से ज्यादा लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। 2020 में गणतंत्र दिवस पर पद्म पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई थी। लेकिन एक वर्ष से ज्यादा समय बीतने के बाद भी ना तो उन्हें पदक मिला और ना ही प्रशस्ति पत्र। उनके परिवार के मुताबिक वो पदक की एक झलक पाने को तरस रहे हैं और वो कहते हैं कि कहीं ऐसा ना हो कि बिना पदक मिले ही वो दुनिया को अलविदा ना कह दें। 


परिवार की माली हालत बेहद खराब
मोहम्मद शरीफ का परिवार का कहना है कि माली हालत बेहद ही खराब है, उन लोगों के पास इतने पैसे नहीं है कि वो उनका इलाज करा सकें। वो बेसुध बिस्तर पर पड़े रहते हैं। वो पहले टिनशेड में साइकल की मरम्मत का काम करते थे। लेकिन अशक्त होने की वजह से वो बंद है। घरवालों पर अलग अलग तरह के कर्जें हैं,जहां से वो दवाई लेते हैं अब वहां से दवा भी नहीं मिलती है। उनका बेटा गाड़ी चलाकर परिवार को पालता है लेकिन उसकी आमदनी इतनी नहीं है कि वो अपने पिता का बेहतर इलाज करा सके।  

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