National Pollution Control Day 2021: पर्यावरण का प्रदूषण प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जीवन को प्रभावित करता है। हमें पता नहीं चलता है कि हमारे सेहत के साथ क्या हो रहा है। इसके मुख्य कारण हैं मानवीय गतिविधियां हैं जो एक से अधिक तरीकों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं। प्रदूषण को रोकने के लिए वैश्विक चिंता है क्योंकि पृथ्वी पर हर कोई सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा, पीने के लिए पानी और हरियाली का आनंद लेने का हकदार है। खासकर इस साल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत कई राज्यों और शहरों में पटाखों पर प्रतिबंध के बाद भी दिवाली के दौरान और बाद में प्रदूषण के स्तर में तेज वृद्धि देखी गई है।
National Pollution Control Day क्यों मनाते हैं
भारत भोपाल गैस त्रासदी में अपनी जान गंवाने वाले लोगों की याद में 2 दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस (National Pollution Control Day) मनाता है। औद्योगिक दुर्घटना 1984 में हुई जब 2-3 दिसंबर की रात को गैस मिथाइल आइसोसाइनेट का रिसाव हुआ और हजारों लोगों की मौत हो गई।
National Pollution Control Day का उद्देश्य क्या है
इस दिवस का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक आपदाओं के प्रबंधन और नियंत्रण के बारे में जागरूकता फैलाना, औद्योगिक प्रक्रियाओं या मानवीय लापरवाही से उत्पन्न प्रदूषण को रोकना, लोगों और उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण अधिनियमों के महत्व के बारे में जागरूक करना है। इस दिवस का उद्देश्य एयर, मिट्टी, साउंड और जल प्रदूषण की रोकने के बारे में लोगों को जागरुक करना भी है। अनेक उपायों के बावजूद, भारत में हर साल वायु गुणवत्ता लेवल गिरता जा रहा है। दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों के निवासियों को सर्दियों की शुरुआत में वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर का अनुभव होता है। हरियाणा और पंजाब राज्यों के आस-पास के कृषि क्षेत्रों में जलने वाले पराली के धुएं के साथ-साथ वाहनों और उद्योगों से निकलने वाले धुएं ने प्रदूषण का स्तर बड़ा दिया।
वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत क्या हैं?
जनसंख्या वृद्धि में बढ़ती प्रवृत्ति और वायु गुणवत्ता पर परिणामी प्रभाव भारतीय परिदृश्य में स्पष्ट हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के महानगरों में संयुक्त रूप से बड़ी संख्या में जनसंख्या रहती है। निरंतर जनसंख्या वृद्धि ने ऊर्जा खपत पर अत्यधिक दबाव डाला है, जिससे पर्यावरण और महानगरों की वायु गुणवत्ता प्रभावित हुई है।
- परिवहन/वाहन उत्सर्जन: परिवहन सेक्टर करीब हर शहर में वायु प्रदूषकों का मुख्य योगदानकर्ता है, लेकिन शहरों में यह बहुत अधिक है। वाहनों से होने वाले उत्सर्जन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और कोलकाता जैसे शहरों से आता है। कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), NOX, और NMVOCs वाहनों से होने वाले उत्सर्जन से प्रमुख प्रदूषक हैं।
- कंस्ट्रक्शन और तोड़फोड़ : भारत में वायु प्रदूषण का एक अन्य प्रमुख स्रोत है कंस्ट्रक्शन वर्क और पुराने मकानों और निर्माण को तोड़ना। निर्माण चरण के बाद भी, इन इमारतों में जीएचजी उत्सर्जन के प्रमुख योगदान है। आजकल, हरित भवन टैक्नोलॉजी में बढ़ती रुचि और निर्माण के दौरान हरित बुनियादी ढांचे और सामग्रियों के उपयोग से इस मुद्दे से काफी हद तक निपटा जा सकता है, जिससे हमारी जैव विविधता को संरक्षित किया जा सकता है और स्वच्छ वायु गुणवत्ता को बनाए रखा जा सकता है।
- कृषि: कृषि गतिविधियों से उत्सर्जन होता है, जिसमें पर्यावरण को प्रदूषित करने की क्षमता होती है। अमोनिया (NH3) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) कृषि गतिविधियों से निकलने वाले प्रमुख प्रदूषक हैं। अन्य कृषि उत्सर्जन में एंटरिक किण्वन प्रक्रियाओं से मीथेन उत्सर्जन, पशु खाद से नाइट्रोजन उत्सर्जन, जैसे CH4, N2O, और NH3, मीथेन उत्सर्जन, और कृषि मिट्टी से नाइट्रोजन उत्सर्जन (N2O, NOX, और NH3) शामिल हैं।
- औद्योगिक प्रक्रिया: पिछले कुछ दशकों में, भारत ने बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण देखा है। इसने अधिकांश शहरों में हवा की गुणवत्ता को खराब कर दिया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को 17 प्रकारों में बांटा है, जो छोटे और मध्यम स्तर के अंतर्गत आते हैं। इन कटैगरियों में से सात को 'महत्वपूर्ण' उद्योगों के रूप में चिह्नित किया गया है जिनमें लोहा और इस्पात, चीनी, कागज, सीमेंट, उर्वरक, तांबा और एल्यूमीनियम शामिल हैं। प्रमुख प्रदूषकों में एसपीएम, एसओएक्स, एनओएक्स और सीओ2 उत्सर्जन शामिल हैं।
- पावर प्लांट से प्रदूषण : भारत में वायु उत्सर्जन में बिजली संयंत्रों का योगदान बहुत बड़ा और चिंताजनक दोनों है। एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) के अनुसार, एसओ2, एनओएक्स और पीएम का उत्सर्जन 1947 से 1997 तक 50 गुना से अधिक बढ़ गया। ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हरित और नवीकरणीय संसाधनों सहित वैकल्पिक बिजली सोर्स को अपनाने की जरुरत है।
- बायोमास, पराली जलाना: भारत में करीब 80% नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) अभी भी खुले डंपिंग यार्ड और लैंडफिल में फेंक दिया जाता है, जिससे आसपास के इलाकों में दुर्गंध और खराब पानी के अलावा विभिन्न GHG उत्सर्जन होता है। MSW के उचित उपचार की कमी और बायोमास जलने से शहरों में वायु प्रदूषण हो रहा है।