- 20 सितंबर को चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के मुख्यमंत्री बने थे और सिद्धू ने उनके साथ मिलकर पंजाब के लिए काम करने की बात कही थी।
- मंत्रिमंडल गठन में अनदेखी, नए एडवोकेट जनरल और डीजीपी की नियुक्ति भी नाराजगी की बड़ी वजह बताई जा रही है।
- कैप्टन अमरिंदर को हटवाने के बाद भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की कसक थी।
नई दिल्ली: नवजोत सिंह सिद्दधू का महज 72 दिनों में ही पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से मोहभंग हो गया है। पहले उन्हें मुख्यमंत्री के रुप में कैप्टन अमरिंदर सिंह पसंद नहीं आ रहे थे। फिर नए-नए मुख्यमंत्री बने चरणजीत सिंह चन्नी का काम-काज उन्हें समझ में नहीं आया। ऐसे में नाराज सिद्धू ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर इस्तीफा दे दिया है। और इसकी घोषणा उन्होंने ट्विटर पर इस्तीफे को शेयर करते हुए कर डाली । ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि जब सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटवा दिया, तो पिछले एक हफ्ते में ऐसा क्या हो गया, कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। बीते 20 सितंबर को ही चरणजीत सिंह चन्नी ने पंजाब के मुख्यमंत्री के रुप में शपथ ली थी, और सिद्धू ने उनके साथ मिलकर पंजाब के लिए काम करने की बात कही थी।
मंत्रियों के विभागों के बंटवारे के तीन घंटे के बाद इस्तीफा
वैसे तो सिद्धू ने अपने इस्तीफे के कोई खास वजह नहीं बताई है लेकिन उनके इस्तीफे की टाइमिंग को देखा जाय, तो उनके नाराजगी की वजहें समझी जा सकती है। असल में सिद्धू ने आज (28 सितंबर) पंजाब में बनाए गए नए मंत्रियों के विभागों का ऐलान होने के बाद इस्तीफा दिया है। उनका यह इस्तीफा विभागों का बंटवारा होने के करीब 3 घंटे बाद आया है। जाहिर है सिद्धू नए मंत्रिमंडल में विभागों के बंटवारे से खुश नहीं होंगे। ऐसा माना जा रहा है कि सिद्धू , कैप्टन अमरिंदर के हटने के बाद जिस तरह अपने अपने करीबियों को मंत्री बनवाना चाहते थे। वैसी मनमानी , नए मुख्यमंत्री चन्नी ने चलने नहीं दी। मसलन चरणजीत सिंह चन्नी के कैबिनेट में कैप्टन अमरिंदर के करीबी रहे ब्रह्म मोहिंदरा, विजय इंदर सिंगला को जगह मिल गई।
सुपर सीएम की चाहते थे भूमिका ?
एक करीबी सूत्र का कहना है 'सिद्धू, कैप्टन के रहते ही यह चाह रहे थे कि 2022 का चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा जाय। ऐसे में जब कैप्टन की विदाई हुई, तो उन्होंने आलाकमान पर इस बात का दबाव बनाया था कि पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री बनाए। लेकिन पार्टी ने चरणजीत सिंह चन्नी पर दांव लगाया। ऐसे में वह हाथ मलते रह गए। नए मुख्यमंत्री की रेस से , सिद्धू के कारण सुनील जाखड़ और सुखजिंदर रंधावा पत्ता कटा। ऐसे में जब चन्नी मुख्यमंत्री बने तो सिद्धू को लगा कि वह सुपर सीएम के रूप में काम करेंगे। लेकिन जिस तरह नए मुख्यमंत्री ने सिद्धू से अलग होकर फैसले लेने शुरू किए तो, सिद्धू को झटका लगा। यही नहीं सुखजिंदर रंधावा को गृह मंत्री बना दिया गया।'
एडवोकेट जनरल की नियुक्ति को लेकर विवाद
मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने राज्य के नए एडवोकेट जनरल के रुप में अमरप्रीत सिंह देओल को नियुक्त किया था। उनकी नियुक्ति को लेकर भी बताया जा रहा है कि सिद्धू नाराज थे। असल में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी मामले के बाद हुए कोटकपूरा गोलीकांड में आरोपियों के वकील अमरप्रीत सिंह देओल थे। ऐसे में उनकी नियुक्ति को लेकर पार्टी का एक धड़ा सवाल उठा रहा है। इसी तरह राज्य के डीजीपी दिनकर गुप्ता के छुट्टी पर जाने के बाद उनकी जगह इकबाल प्रीत सिंह सहोता को डीजीपी बनाने से भी सिद्धू खुश नहीं थे।
प्रोटोकॉल का पालन नहीं करने पर मिली हिदायत ?
पंजाब की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले एक सूत्र का कहना है कि मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी के साथ सिद्धू का सार्वजनिक तौर पर व्यवहार भी सवालों के घेरे में रहा है। मसलन वह प्रेस कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री की पीठ पर हाथ रख देते थे। कुछ जगहों पर उनकी मुख्यमंत्री का हाथ खींचते हुए तस्वीर भी सामने आई। इस बात पर आलाकमान ने उन्हें हिदायत भी दी थी, कि उन्हें मुख्यमंत्री के प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए।
क्या कर रहे प्रेशर पॉलिटिक्स
सूत्रों के अनुसार सिद्धू इस्तीफे का दांव चलकर प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि इस भूचाल के बाद पार्टी, मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को ताल-मेल बैठाकर काम करने की सलाह देगी। हालांकि एक सूत्र का यह भी कहना है कि अगर सिद्धू ऐसा कुछ करना चाहते तो इस्तीफे की घोषणा ट्विटर पर नहीं करते। खैर एक बात तो साफ है कि राजनीति में सिद्धू कब क्या कर दें, इसका शायद उन्हें भी अंदाजा नहीं है।