राजीव श्रीवास्तव। राजनीति में प्रतीकों का बहुत महत्व है। छोटे छोटे संकेतों में अक्सर बड़े राजनैतिक मायने देखे जाते हैं। बात अगर उत्तर प्रदेश और बिहार सरीखे राज्यों की करें तो यहाँ पर आमजन में जिस तरह की राजनैतिक सजगता देखने को मिलती है वैसी शायद ही किसी और राज्य में मिलती है। बात करेंगे उत्तर प्रदेश की। उत्तर प्रदेश अपने पड़ोसी राज्य उत्तराखंड समेत कुछ अन्य राज्यों को साथ 2022 में चुनावों का रुख करेगा।
ऐसे में राजनैतिक सरगर्मियाँ इन राज्यों में तेजी पर है। उसमे भी उत्तर प्रदेश सदैव से अग्रणी भूमिका निभाता रहा है। इस बार भी निभा रहा है। जो गतिविधियों कोविड महामारी के प्रकोप के चलते धीमी पड़ी थी केसेस के कम होते ही तेजी पकड़ने लगी हैं। विशेषकर के बीजेपी जैसी पार्टियों में। बीजेपी के नेता वैसे भी ये दावा करते हैं की पार्टी और कार्यकर्ता हमेशा चुनाव की तैयारी के मोड में रहते हैं जो उन्हे और पार्टियों से आगे रखता है।
पिछले सात-आठ दिनों से राजनैतिक सरगर्मियाँ पार्टी में काफी तेज होगई है। इस हद तक की कई पत्रकारों ने कैबिनेट में बदलाव से लेकर संगठन में बदलाव के दावे भी किये हैं। तमाम अटकलें जो लगाई जा रही हैं उसमे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी आईएएस से यूपी विधान परिषद में एमएलसी बने एके शर्मा के उपमुख्यमंत्री बनने की बात की जा रही है तो। इसके अलावा एक तबका तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक की कुर्सी छिनने तक की बात कह रहा है तो कुछ बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी, स्वाति सिंह आदि के हटाए जाने की बात कर रहा है तो कुछ ने केशव मौर्य को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का दावा कर रहे है। राजनीति में कयासों पर विराम नहीं लगाया जा सकता है। ना ही कयासों के हकीकत में बदलने या ना बदलने पर पूर्ण विराम लगाया जा सकता है।
असल में उत्तर प्रदेश बीजेपी और यूपी सरकार को लेकर कयासों की शुरुआत उस खबर से हुई जिसमे यह कहा गया की दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, उत्तर प्रदेश संगठन मंत्री सुनील बंसल की दिल्ली में बैठक आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के साथ हुई।
राजनैतिक विश्लेषकों की माने तो इस प्रोटोकॉल में कैबिनेट बदलाव की चर्चा बहुत सार्थक नहीं लगती। खासतौर पर ऐसी बैठकों में उस सूबे की सरकार के मुखिया या उसके किसी प्रतिनिधि का ना होना। उस तथाकथित बैठक के बाद कुछ और गतिविधियां भी हुई जिनके कारण तमाम अटकलों को काफी बल मिला जो की अभी भी मिल रहा है।
गतिविधियों में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले का लखनऊ आना, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से एक घंटे की मुलाकात करना और उसके बाद प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह और राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष का लखनऊ में प्रवास करना और अलग-अलग बैठके करना शामिल है। जानकार बताते हैं कि होसबोले का चूंकि केंद्र लखनऊ है इसलिए उनका यहाँ आना जाना लगा रहता है वहींं मुख्यमंत्री का राज्यपाल से भी मिलने को एक शिष्टाचार भेंट बताया।
बी एल संतोष और प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह हालांकि उन सभी अटकलों को हवा देने के लिए काफी प्रतीत होती हैं। इसी कड़ी में बी एल संतोष का वरिष्ठ मंत्रियों से मिलना, मुख्यमंत्री एवं अन्य पार्टी के कोर ग्रुप के साथ बैठना और उसके बाद दोनों उपमुख्यमंत्रियों के साथ अलग बैठने अटकलों को और तूल ही दिया है।
जानकार बताते हैं कि इन सब गतिविधियों के बावजूद किसी बहुत बड़े स्तर पर बदलाव की उम्मीद रखना सही नहीं जान पड़ता है। जहां पार्टी और सरकारें कोविड की दूसरी लहर से उत्पन्न हुए रोष को संभालने को प्राथमिकता पर रख रही है ऐसे समय पर कोई बड़ा बदलाव लाभप्रद कम और हानिकारक ज्यादा जान पड़ता है। वहीं दूसरी ओर बदल कर आए व्यक्ति के पास 6 महीने के करीब ही समय मिलेगा कुछ कर पाने के लिए जो कि यूपी जैसे विशाल प्रदेश में खासा मुश्किल भरा कार्य है।
शायद बीएल संतोष के द्वारा कल रात्री में किया गया ट्वीट इस बात के ओर संकेत भी देता है की उत्तर प्रदेश में ऐसा कुछ गड़बड़ भी नहीं है जैसा की माहौल बनाया जा रहा है। संतोष ने अपने ट्वीट में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा किये गए कोविड नियंत्रण के प्रयासों की जमकर तारीफ की। एक दूसरे ट्वीट में बीएल संतोष ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फिर से तारीफ की और कहा कि 12 वर्षों तक के बच्चों के मा-बाप का प्राथमिकता के आधार पर टीकाकरण एक समझदारी भरा कदम है। इन ट्वीटों के साथ ही मुख्यमंत्री बदलने के अरमान सँजोये एक वर्ग की राष्ट्रीय संगठन मंत्री ने कहीं न कहीं हवा निकाल दी है।
बैठकों का विश्लेषण करते हुए जानकार बताते हैं कि हद से हद कुछ नए चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है क्योंकि कोविड और अन्य कारणों से कई मंत्रियों का निधन हो चुका है और ऐसे में जगह फिलहाल खाली है। हालांकि ऐसा ही होगा यह भी अभी तय नहीं है।
सूत्र बताते हैं कि राष्ट्रीय संगठन मंत्री और प्रदेश प्रभारी असल में एक विशेष मिशन पर उत्तर प्रदेश आए थे। मिशन है कि यहाँ क्या हुआ है अब तक, क्या किया जाए और कैसे किया जाए इसके इर्दगिर्द ही फीडबैक भी लिया गया है और इस रिपोर्ट को ही वो केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष रखेंगे। उसके पश्चात ही इस पर फैसला लिया जाएगा की उत्तर प्रदेश में चुनाव में कैसे उतर जाए और क्या कार्ययोजना बनाए जिससे लोगों की नाराजगी को कम किया जा सके। फिलहाल आगे आने वाले हफ्ते-दो-हफ्ते बीजेपी और उत्तर प्रदेश सरकार की दृष्टि से खासे महत्तपूर्ण होंगे ये तो तय है।
(लेखक राजीव श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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