देहरादून : उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर फटने की घटना ने कई जिंदगियां समाप्त कर दी हैं और सैकड़ों लोग अभी भी लापता हैं। इनमें से कई लोग ऐसे भी हैं अपने सगे संबंधियों को इस प्राकृतिक आपदा के भेंट चढ़ते देखा। इस त्रासदी को लोग बयां कर रहे हैं। रैनी गांव के ग्राम पंचायत पूर्व सदस्य संग्राम सिंह रावत का कहना है कि रविवार की सुबह खिली हुई थी। जुगजू गांव की महतामी देवी (42) लकड़ी और पशुओं के लिए चारा की व्यवस्था करने के लिए अपने घर से बाहर निकली थी। उनके तीन बच्चों में से एक अंकित (17) घर पर थाा। संग्राम सिंह ने कहा, 'मेरी सुबह आठ बजे उनसे मुलाकात हुई। रैनी गांव में मैं तीन लोगों के साथ एक पगडंडी बनाने के लिए जा रहा था। वह नीचे की तरफ आ रही थीं। वह जल्दी में दुआ-सलाम कर आगे बढ़ गईं।'
'नीला आसमान भूरे रंग में बदल गया था'
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक सिंह ने बताया, 'एक घंटे बाद, काफी तेज बिजली की गड़गड़ाहट की आवाज सुनाई दी। जब हमने सिर उठाकर देखा तो साफ नीला आसमान भूरे रंग में तब्दील हो गया था। तभी हमने अंकित की चिल्लाने की आवाज सुनी। वह तेज आवाज में बोल रहा था 'मेरी मां को बचा लो।' पहाड़ों की चट्टानों से टकराती हुई पानी की एक लंबी दीवार नीचे की ओर आती दिखाई दी। इसने अपने रास्ते में आने वाले लोगों, मवेशियों, पेड़ों सभी को अपने साथ बहाकर ले गई। हम कुछ भी नहीं कर सके।'
'नीचे लोग दहशत में चिल्ला रहे थे'
रैनी के कुंदन सिंह (42) का कहना है कि मलबे के साथ बाढ़ का पानी जब धौलीगंगा से गुजरा तब रैनी चुकसा गांव की अनीता देवी (70) वहां अपने मवेशियों को चरा रही थीं। उन्होंने कहा, 'अनीता अपने पोते गोलू और बहू तनुजा के साथ थीं। ग्लेशियर फटने की आवाज सुनकर तुनुजा अपने बेटे को लेकर वहां से निकलने में कामयाब हो गई लेकिन अनीता देवी पीछे रह गईं। हमने देखा कि वह बाढ़ में समा गईं। वह कुछ नहीं कर पाईं।' संग्राम का कहना है कि रैनी में जो लोग ऊंचाई पर थे उन्होंने नीचे पहाड़ी पर मौजूद लोगों को दहशत में चिल्लाते हुए देखा। लोग चिल्ला रहे थे 'भागो'। सिंह का कहना है कि हवा में धूल भरी थी, लोगों की सांस नहीं ले पा रहे थे। लोग तेजी से भाग भी नहीं पा रहे थे।
गांवों का संपर्क टूटा
संग्राम ने आगे बताया कि आधे घंटे के बाद रैनी के बुजुर्गों ने लापता लोगों को तलाशने की बात कही। उन्होंने कहा, 'हमने जो देखा वह भयावह था। घंटे भर पहले हमने जहां पर लोगों को लकड़ी काटते और मवेशियों को चारा खिलाते हुए देखा था वहां पर मलबे का ढेर लगा था। गांव का एक आदमी भी वहां दिखाई नहीं पड़ा।' इनमें कुंदन का भतीजा भी था। वह करीब 150 बकरियों को चराने के लिए गया हुआ था। अब वह लापता है। बाढ़ अपने साथ नदी पर बने पुलों को बहा ले गई है। ऐसे में गांवों का संपर्क टूट गया है।