- पीएफआई ने नागरिकता कानून के विरोध में केरल औऱ पश्चिम बंगाल में आयोजित किए बड़े प्रदर्शन
- सीएए, एनआरसी और एपीआर के विरोध में पांच जनवरी को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में होना है पीएफआई का बड़ा प्रदर्शन
- सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के एक सांसद अबू ताहिर की फोटो पीएफआई के पोस्टर में, ताहिर ने किया किनारा
नई दिल्ली: नागरिकता कानून के खिलाफ असम से लेकर उत्तर प्रदेश में हुए हिंसक प्रदर्शनों में सबसे ज्यादा हिंसा यूपी में हुई। अब इस हिंसा के पीछे जिस संगठन को सबसे जिम्मेदार बताया जा रहै है वह संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) है। पीएफआई ने नागरिकता कानून के विरोध में केरल औऱ पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में भी प्रदर्शन किए। बंगाल में 5 जनवरी को पीएफआई का एक बड़ा प्रदर्शन और होना है।
यूपी में हुए हिंसक प्रदर्शनों के पीछे पीएफआई
उत्तर प्रदेश में हुए प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के कई मामलों में पीएफआई नेताओं के खिलाफ मिले सबूतों के आधार पर अभी तक यूपी से पीएफआई के 25 सदस्यों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इनमें पीएफआई की राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) का प्रदेश अध्यक्ष नूर हसन भी शामिल है। यूपी सरकार ने तो पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज दिया है।
बंगाल में 5 जनवरी को पीएफआई का बड़ा प्रदर्शन
इस प्रदर्शन से पहले पीएफआई ने एक रैली निकाली जिसमें नागरिकता कानून और एनपीआर के विरोध में पोस्टर दिखे और इन पोस्टर्स पर राज्य की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के एक सांसद अबू ताहिर की भी तस्वीर दिखी। पोस्टर में बताया गया कि 5 जनवरी को सांसद भी इस प्रदर्शन में शामिल होंगे। इसे लेकर राजनीति शुरू हो गई और विपक्षी दलों ने टीएमसी को घेरना शुरू कर दिया जिसके बाद खुद अबू ताहिर ने कहा कि इस बारे में मुझे कुछ पता नहीं हैं।
पीएफआई की तरफ से पहली प्रतिक्रिया
पीएफआई ने अपने ऊपर लगे सारे आरोपों को खारिज किया है। पीएफआई के राष्ट्रीय सचिव अनीस अहमद ने कहा है कि सभी आरोप बेबुनियाद हैं। अनीस ने कहा, 'हमारे सभी आधिकारिक पोस्टर्स और बैनर्स हमारी वेबसाइट्स पर हैं। हम धार्मिक नारेबाजी के आरोपों को भी खारिज करते हैं। ये आरोप नए नहीं हैं। हमें हमेशा से ही टारगेट किया जाता रहा है क्योंकि हम मजबूती से फासीवादी शासन के खिलाफ खड़े हुए हैं। जिस सांसद का नाम पोस्टर में दिख रहा है वह उनकी सहमति के बाद डाला गया था। अब राजनीतिक मजबूरी की वजह से वह पीछे हट रहे हैं।'