- 17 सितंबर 1950 को आज ही के दिन गुजरात के वडनगर में हुआ था पीएम मोदी का जन्म
- सोशल मीडिया के जरिए लगातार सुबह से ही मिल रही है पीएम मोदी को बधाई
- पीएम मोदी ने बचपन में चुनी थी सन्यास की राह
नई दिल्ली: पीएम मोदी का आज जन्मदिन है। 17 सितंबर 1950 को गुजरात में उनका जन्म हुआ था। कुल 6 भाई-बहनों में पीएम मोदी तीसरे नंबर के हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से लेकर भारत के प्रधानमंत्री बनने तक का उनका सफर कई कठिन राहों से होकर गुजरा है। यहां हम पीएम मोदी के जीवन के कुछ अनछुए पहलों पर नजर डाल रहे हैं कि कैसे उन्होंने एक सामान्य परिवार में जन्म लेकर देश के सबसे ताकतवर शख्स होने तक का फासला तय किया।
एक साधु ने 50 साल पहले की थी एक बड़ी भविष्यवाणी
एक सन्यासी ने बचपन में ही उन्हे लेकर बड़ी भविष्यवाणी कर दी थी। जब पीएम मोदी बाल्यावस्था में थे तो एक सन्यासी उनके घर आया था और उनकी मां हीराबेन को बताया कि आपका बच्चा या तो देश का कोई बड़ा नामचीन आध्यात्मिक गुरु या सन्यासी बनेगा या फिर एक ऐसा मुकाम हासिल करेगा जो सर्वोच्च होगा। 18 साल की उम्र में मोदी ने घर छोड़ दिया। पीएम मोदी पर 'द मैन ऑफ द मोमेंट' नाम की किताब लिखने वाले एम वी कामथ लिखते हैं, '18 साल की उम्र में जब पीएम मोदी ने अध्यात्मिक ज्ञान की तलाश में अपना घर छोड़ दिया था और उसके बाद वह कहां गए और कहां रहे इसके बारे में किसी को ज्यादा पता नहीं है।'
सन्यासी बनना चाहते थे मोदी
लेकिन खुद मोदी ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि वह 3 साल तक हिमालय में चले गए थे। इस दौरान उन्होंने बंगाल के बेलूर मठ में अपना काफी समय व्यतीत किया था। कहा जाता है कि पीएम मोदी बेलूर में सन्यासी बनने गए थे लेकिन तत्कालीन मठ के प्रमुख माधवानंद महाराज ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि आपकी उम्र अभी कम है और आप पढ़ाई करो। इस मठ की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने की थी। इसके बाद पीएम मोदी उत्तराखंड के अल्मोडा स्थित रामकृष्ण मठ के दूसरे कार्यालय चले गए।
सेना में शामिल होने की चाह
पीएम मोदी के अचानक चले जाने से पूरे परिवार में गमगीन माहौल था, एक दिन अचानक जब उनकी मां ने घर का दरवाजा खोला तो वह हैरान रह गईं क्योंकि दरवाजे पर मोदी खड़े थे। मोदी को दरवाजे पर देखकर मां फफक-फफक कर रो पड़ी। दो साल बाद मोदी वडनगर लौटे थे। 'द मैन ऑफ द मोमेंट' में कहा गया है कि मोदी वडनगर के गिरपुर स्थित महादेव मंदिर में रोज परिक्रमा करते थे और जप करते थे। कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी हमेशा से ही भारतीय सेना में जाना चाहते थे इसलिए वे जामनगर के पास बने सैनिक स्कूल में पढ़ना चाहते थे। लेकिन उनके परिवार के पास स्कूल की फीस देने के लिए पैसे नहीं थे।
धरा था सरदार का रूप
5 भाई-बहनों में से दूसरे नंबर की संतान हैं। उनके स्कूल की टीचर के अनुसार मोदी एक शख्स थे जो दूसरों से इंप्रेस होने की बजाय दूसरों को खुद इंप्रेस करते थे। बाद में मोदी घर छोड़कर संघ के प्रचारक बन गए।1975 में इमरजेंसी के दौरान पीएम मोदी ने सरकार को छकाने के लिए नया तरीका निकाला था। नरेंद्र मोदी भूमिगत रूप से संघ-जनसंघ और विरोधी नेताओं के बीच संपर्क तथा सरकार के दमन संबंधी समाचार की सामग्री गोपनीय रूप से पहुंचाने का काम कर रहे थे। दैनिक भास्कर के एक आर्टिकल के मुताबिक, इस दौरान उन्होंने सरदार का रूप धर लिया था और किसी दिन वो सीधे साधे सरदार बन जाते थे तो किसी दिन दाढ़ी वाले बुजुर्ग।