- बांग्लादेश की आजादी की 50वीं सालगीरह पर हो रहा पीएम मोदी का दौरा
- पीएम की इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हो सकते हैं
- 27 मार्च को है बंगाल में पहले चरण का मतदान, मतुआ समुदाय के मंदिर जाएंगे पीएम
नई दिल्ली : बांग्लादेश की आजादी के 50 साल पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार से अपनी दो दिनों की बांग्लादेश यात्रा पर हैं। इस यात्रा के दौरान भारत और बांग्लादेश के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हो सकते हैं। वह 27 मार्च को ओरकांडी स्थित मतुआ समुदाय के आस्था के केंद्र मतुआ मंदिर जाएंगे। इसी दिन बंगाल में पहले चरण का मतदान है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा को बंगाल चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। टीएमसी नेताओं का कहना है कि इस भाजपा इस यात्रा से बांग्लादेश से आए लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश कर रही है।
कई समझौतों पर हस्ताक्षर हो सकते हैं
इस यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने बताया कि पीएम मोदी की इस यात्रा के दौरान विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए नई घोषणाएं भी की जाएंगी। श्रृंगला ने कहा कि मोदी गोपालगंज जिले के तुंगीपाड़ा में 'बंगबंधु' शेख मुजीबुर रहमान के स्मारक पर भी जाएंगे। वह उस स्थान पर जाने वाले पहले गणमान्य भारतीय व्यक्ति होंगे।
मुतआ समुदाय के मंदिर जाएंगे पीएम
बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मतुआ समुदाय के संस्थापक हरिश्चंद्र ठाकुर के मंदिर भी जाएंगे। ठाकुर का जन्म एकीकृत बंगाल में साल 1812 में हुआ था। मतुआ समुदाय के लोग उन्हें भगवान का अवतार मानते हैं। ठाकुर ने सामाजिक सुधार करते हुए छूआछूत के खिलाफ अभियान चलाया। आगे चलकर समाज में मतुआ समुदाय ने अपनी पहचान बनाई। ठाकुर के निधन के बाद उनके बेटे गुरुचंद ठाकुर इस समुदाय के संरक्षक बने। बांग्लादेश से चलकर बंगाल आए मतुआ समुदाय की आबादी करीब दो करोड़ बताई जाती है। राज्य में इस समुदाय के लोग मतुआ महासंघ के तहत संगठित हैं। यह समुदाय इस बार के चुनाव में करीब 30 सीटों को प्रभावित कर सकता है। मतुआ समुदाय के लोग करीब 70 विधानसभा क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
हरिश्चंद्र ठाकुर का काफी सम्मान
पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय के लोग हरिश्चंद्र ठाकुर का काफी सम्मान करते और आदरदृष्टि के साथ देखते आए हैं। पीएम का इस समुदाय के मंदिर जाना उन्हें भावनात्मक रूप से जोड़ सकता है। मतुआ समुदाय के लोग नार्थ 24 परगना, साउथ 24 परना, नदिया, जलपाईगुड़ी, सिलिगुड़ी, कूच बिहार और वर्धमान जिलों में बड़ी संख्या में हैं।
भाजपा के करीब आया है यह समुदाय
मतुआ समुदाय के नेता बांग्लादेश से आए शरणार्थियों को नागरिकता देने की मांग करते आए हैं। भारतीय जनता पार्टी ने इस समुदाय को नागरिकता देने का वादा किया है। लोकसभा चुनावों से पहले सरकार ने सीएए बिल पारित कर इस समुदाय को अपने साथ जोड़ा जिसका फायदा भी उसे चुनाव में मिला। भाजपा का कहना है कि बंगाल में सत्ता में आने पर वह इस कानून को लागू करेगी। नागरिकता से जुड़ा होने के चलते मतुआ समुदाय के लिए सीएए का एक बड़ा मुद्दा है।
समुदाय के लिए सीएए है एक बड़ा एवं भावनात्मक मुद्दा
लेफ्ट को सत्ता से बेदखल करने के लिए ममता बनर्जी ने साल 2000 में इस समुदाय में अपनी पहुंच बढ़ाई। मतुआ समुदाय और उसके नेताओं ने भी चुनावों में टीएमसी का साथ दिया लेकिन सीएए और ममता की कथित तुष्टिकरण की नीतियों ने इस समुदाय को धीरे-धीरे टीएमसी से दूर किया। इनकी राजनीतिक ताकत को समझते हुए और इन्हें अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा ने इनके हित से जुड़ी कई घोषणाएं की हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में मतुआ समुदाय ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया। हालांकि, इस समय मतुआ समुदाय के वोटों में बिखराव है। समुदाय का एक धड़ा टीएमसी के साथ है तो एक भगवा पार्टी के साथ। भाजपा की नजर पीएम की बांग्लादेश यात्रा से मतुआ समुदाय के वोटों को अपने पक्ष में लामबंद करने की है।