नई दिल्ली : असम में विधानसभा की 126 सीटों के लिए अब तक आए रुझानों यदि नतीजों में तब्दील हुए तो यहां सर्वानंद सोनोवाल की सरकार सत्ता में वापसी करेगी। अभी तक के 126 सीटों के रुझान सामने आए हैं जिनमें से भाजपा गठबंधन 80 सीटों और कांग्रेस गठबंधन 46 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। सत्ता विरोधी लहर होने के बावजूद भाजपा यहां सत्ता में वापसी करती दिख रही है। रुझानों से जो ट्रेंड सामने आए हैं उसके आधार पर चुनाव विश्लेषकों को भाजपा की इस जीत के पीछे कुछ ठोस कारण दिखे हैं। चुनावी रणनीतिकार असम में भाजपा की इस जीत के पीछे वोटों का ध्रुवीकरण मान रहे हैं।
वोटों का ध्रुवीकरण
असम चुनाव के जानकारों का कहना है कि इस चुनाव में वोटों का खूब ध्रुवीकरण हुआ। खासकर ऊपरी असम में भाजपा विरोधी वोट पूरी तरह से बंट गए। वोटों का यह विभाजन दो हिस्सों में हुआ। भाजपा विरोधी वोटों का एक हिस्सा क्षेत्रीय दलों के साथ गया तो एक हिस्सा कांग्रेस गठबंधन के साथ रहा। हिंदी बहुल ज्यादातर सीटें भाजपा के हिस्से में जाती दिख रही हैं। निचले असम और बराक घाटी में भी वोटों का ध्रुवीकरण हुआ। इन दोनों क्षेत्रों में बांग्लादेशी और असम के हिंदू भाजपा के साथ खड़े दिखाई दिए हैं। इसी तरह से इस क्षेत्र के मुस्लिम वोटों का भी ध्रुवीकरण हुआ। मुस्लिम वोटों का एक हिस्सा क्षेत्रीय दलों के साथ गए और एक हिस्सा कांग्रेस गठबंधन के साथ रहा।
एआईयूडीएफ की वजह से कांग्रेस को नुकसान
विश्लेषकों का मानना है कि निचले असम और बराक घाटी के हिंदू वोटर एआईयूडीएफ की वजह से कांग्रेस के साथ नहीं गए। इन दोनों इलाकों में कांग्रेस की स्थिति अच्छी रहती आई है लेकिन इस बार ऐसा लगता है कि बदरूद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ की वजह से उसे सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। असम में करीब 30 फीसदी मुस्लिम आबादी है। राज्य में कम से कम 33 सीटें ऐसी हैं जहां के चुनाव नतीजे मुस्लिम मतदाता तय करते हैं। चुनाव से पहले जानकार ऐसा मानते थे कि मुस्लिम वोटों में यदि इस बार बंटवारा नहीं हुआ तो कांग्रेस-एआईयूडीएफ गठबंधन कम से कम 40 सीटें आसानी से जीत सकता है।
कांग्रेस पर हमलावर रही बीजेपी
वहीं, एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन को लेकर कांग्रेस हमेशा ही भाजपा के निशाने पर रही। अजमल को लेकर भाजपा ने कांग्रेस पर तीखे हमले किए। मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने अजमल को असम की संस्कृति के लिए 'खतरा' बताया। सरमा ने कहा कि असम की संस्कृति एवं पहचान के लिए जो 'खतरा' है उसके लिए कांग्रेस अपना दरवाजा खोल रही है और लाल कालीन बिछा रही है।
भाजपा को मिला चाय बागान कर्मियों का साथ
राज्य में चाय बागान कर्मी चुनाव नतीजों को प्रभावित करते हैं। चाय बागान के कर्मी विधानसभा की 126 सीटों में से करीब 40 सीटों के चुनाव नतीजों को प्रभावित करते हैं। यानि यह समुदाय अगर एकजुट होकर यदि किसी राजनीतिक दल के पक्ष में मतदान करता है तो उसे करीब इन सभी 40 सीटों पर जीत मिल जाती है। पूरे राज्य में 800 से ज्यादा चाय के बाग हैं। चुनावी रुझानों को देखने से लगता है कि भाजपा को इस बार चाय बागान कर्मियों का पूरा साथ मिला है।