नई दिल्ली: संगम नगरी प्रयागराज शनिवार को सामूहिक विवाह की गवाह बनी वहां के अरैल घाट पर पर इसका आयोजन खासी धूमधाम के साथ किया गया, अरैल घाट पर राम कथा "मानस अक्षयवट" के दौरान विवाह का ये कार्यक्रम आयोजित किया गया वहां पर पूज्य मोरारी बापू की कथा हो रही है और तमाम भक्त राम कथा के श्रवण का आनंद उठा रहे हैं।
इसका आयोजन सन्त कृपा सनातन संस्थान की ओर से किया गया था। इसमें विभिन्न धर्म समाजों के 95 जोड़े विवाह सूत्र में बंधे। यमुना के घाट, त्रिवेणी संगम, अक्षयवट और व्यासपीठ के समक्ष इन दर्जनों जोड़ों ने मोरारीबापू से आशीर्वाद लेकर एक नई जिंदगी की शुरुआत की।
एक-दूसरे के जीवन साथी बनने वाले इन 95 जोड़ों ने मोरारीबापू के समक्ष एक दूसरे को वरमाला डाली और रामचरितमानस को साक्षी मानते हुए व्यासपीठ के फेरे लिए।
अरैल के घाट पर इस तरह के पहले सामूहिक विवाह के कथा में बैठे हज़ारों श्रद्धालु इन दुर्लभ क्षण के साक्षी बने। एक-एक कर जब जोड़े व्यासपीठ पर फेरे ले रहे थे और एक-दूसरे को वरमाला डाल रहे थे तब उनके परिजन भी पास में खड़े होकर अपने बच्चों के व्यासपीठ पर फेरे होते देख मन ही मन परमात्मा को धन्यवाद दे रहे थे।
मिला हज़ारों लोगों का आशीर्वाद, सदा सुखी रहो
व्यासपीठ पर जब जोड़े फेरे लेते हुए अपनी नई जिंदगी की शुरुआत कर रहे थे तब टीवी के माध्यम से 170 देशों के लोग भी इन जोड़ों की शादी में शरीक हो रहे थे। ऐसे में इन जोड़ों को मोरारीबापू के साथ ही कथा में बैठे हजारों श्रोताओं के अलावा विभिन्न देशों के करोड़ों लोगों का भी आशीर्वाद मिल रहा था।
कथा में बैठे श्रद्धालुओं की जोड़ों को निहारती आंखें बता रही थीं मानों वे कह रहे हो कि सदा सुखी रहो, सदा मुस्कुराते रहो, तुमने व्यासपीठ पर फेरे लिए हैं।
सज-धजकर जब आए दूल्हा-दुल्हन, पांडाल बना मंडप
सामूहिक विवाह के लिए जब सभी जोड़े सज-धजकर एक दूसरे को वरमाला डालने और फेरों के लिए पांडाल में पहुंचे तो ऐसा लग जैसे अरैल का घाट विवाह वाला घर और यह पांडाल कोई मंडप हो। दुल्हनें लाल वेश में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी, दूल्हे भी सूट-बूट में बहुत जंच रहे थे। पहली श्रृंखला में 20 जोड़ों ने एक- दूसरे को वरमाला पहनाई।
नजारा ऐसा था कि हर कोई इन जोड़ों की शादी को देखने के लिए लालायित नज़र आ रहा था। हर एक इन जोड़ों को आशीर्वाद दे रहा था। जब मंत्रोच्चार के साथ इन जोड़ों की शादी सम्पन्न हो रही थी तब ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों इस जोड़ों को यमुना की कल-कल करती ध्वनि भी मंत्रोच्चार के नव दंपती को आशीर्वाद दे रही हो।
नाचते-गाते व्यासपीठ पर आई दुल्हन की बारात
सामूहिक विवाह समारोह में बारात आगमन रस्म भी हुई। दुल्हन को लेने दूल्हा बारात के साथ पहुंचा। बाराती भी सज धजकर नाचते-गाते खुशियां मनाते नज़र आए। शादी के दौरान मंत्रोच्चारण भी हुआ। वरमाला और फेरों की रस्म के बाद वर-वधू मोरारीबापू के आगे नतमस्तक हुए। नव दंपती ने परिवारजनों और रिश्तेदारों का आशीर्वाद लिया।
सादगीपूर्ण शादी बनी मिसाल, घर आई खुशियों की बहार
अरैल घाट पर सम्पन्न हुआ यह निःशुल्क सामूहिक विवाह कई मायनों में खास रहा। विवाह की सबसे बड़ी बात शादी का सादगी पूर्ण सम्पन्न होना रहा। समारोह में समस्त शादी के सभी रीति रिवाज न करते हुए सीधे व्यासपीठ पर फेरे करवाए गए और वरमाला डलवाई गई। ऐसे में सादगीपूर्ण समारोह की महत्ता और बढ़ गई।
हालांकि मोरारीबापू के अनुसार अगर कोई परिजन कुछ रस्में अदा करना चाहता है तो वह शादी के बाद घर जाकर भी पूरी कर सकता है। पूरी तरह निशुल्क शादी होने से जरूरतमंद परिवार के घर खुशियों की सौगात आने जैसा माहौल रहा। वे परिवार जो शादी में होने वाला खर्च वहन नहीं कर सकते थे उनके लिए यह सामूहिक विवाह वरदान बनकर आया। निशुल्क सामूहिक विवाह के चलते इन परिवारों के लाखों रुपए खर्च होने से बच गए।
संस्थान ने उठाया समस्त खर्च, कन्यादान भी दिया
सामूहिक विवाह पूरी तरह निशुल्क रहा। इसमें किसी भी परिजन से एक रुपया भी नहीं लिया गया । दूल्हा-दुल्हन के वेश से लेकर वरमाला तक का खर्च संस्थान की ओर से वहन किया गया। साथ ही शादी में आने वाले सभी अतिथियों के भोजन की भी व्यवस्था सन्त कृपा सनातन संस्थान की ओर से की गई थी।
इस अवसर पर संस्थान की ओर से सभी बेटियों को कन्या दान स्वरूप उपहार भेंट किया गया। कथा आयोजन के मुख्य आयोजक मदन पालीवाल,रविंद्र जोशी ,रुपेश व्यास ,विकास पुरोहित,गोपाल कृष्ण व्यास ,मंत्रराज पालीवाल सहित आयोजक परिवार के सभी परिवार जनों ने नव युगल दम्पतियों का स्वागत अभिनन्दन किया
वर-वधू को 50 हजार, घर सामान के लिए 25 हजार
सामूहिक विवाह के अवसर पर संत कृपा सनातन संस्थान की ओर से वर को 25 हज़ार, वधू को 25 हज़ार और घर का सामान लाने के लिए बापू के आशीर्वाद से प्रसाद स्वरूप 25 हज़ार रुपए का सामान भेंट किया गया।
इस प्रकार कुल 75 हज़ार रुपए प्रति जोड़े को प्रसाद स्वरूप उनके नए जीवन की सुखद शुरुआत के लिए प्रदान किए गए। विवाह के बाद सभी जोड़ों ने मानस की आरती की और बापू के आगे नतमस्तक हुए।
मुस्लिम जोड़े ने भी व्यासपीठ पर की शादी
सामूहिक विवाह के दौरान एक मुस्लिम जोड़े ने व्यासपीठ के समक्ष शादी कर धार्मिक सद्भाव की मिसाल पेश की। मुस्लिम दूल्हा-दुल्हन ने व्यासपीठ के समक्ष के दूसरे को कबूल किया और बापू का आशीर्वाद लिया।
इस पर बापू ने मुस्लिम जोड़े को मुबारकबाद दी। साथ ही इस अवसर पर एक गणिका के बेटी की भी शादी व्यासपीठ पर हुई, बापू ने इस पर बहुत खुशी जताई।
शादी के उपलक्ष्य में पांडाल में हुआ गरबा रास
मोरारीबापू की राम कथा "मानस अक्षयवट" के दौरान बापू के आव्हान पर पांडाल में गरबा रास किया गया। बापू ने कहा कि आज 95 बेटियों की शादी होने वाली है, इसलिए सामूहिक गरबा रास होना चाहिए। मंगलगीत गाने चाहिए, हर्षोल्लास हो, खुशियां मनाई जाए।
बापू ने इससे पूर्व व्यासपीठ पीठ पर हुई शादी का जिक्र करते हुए कहा कि तब भी मैंने मंगलाष्टक गया था, आज भी मैं मंगलाष्टक गाऊंगा। बापू ने कहा कि मेरी व्यासपीठ इन जोड़ों का स्वागत करती है और इनके उज्ज्वल और खुशमय जीवन की कामना करती है।
बड़ो की करो सेवा, जो माता-पिता का नहीं वो राष्ट्र का नहीं - मोरारीबापू
अरैल घाट पर चल रही राम कथा "मानस अक्षयवट" का आठवां दिन शनिवार भी भक्ति, उल्लास और जय सिया राम के नाम रहा। सन्त कृपा सनातन संस्थान की ओर से आयोजित राम कथा में मोरारीबापू ने वाल्मीकि आश्रम में स्थित सीता वट की महिमा बताई। मोरारीबापू ने कहा कि तुलसीदासजी उत्तरकाण्ड के कवितावली में बताते हैं कि जिस आश्रम में वाल्मीकि रहा करते थे वहां माँ जानकी का वट वृक्ष सीता वट है।
इस वटवृक्ष की बड़ी महिमा है। हर वट वृक्ष शिव स्वरूप है, लेकिन सीता वट "राम" स्वरूप है। इसके पत्तों में प्रभु सोते हैं। बापू कहते हैं कि कल्पतरू धर्म, अर्थ और काम ही देता है लेकिन सीता वट धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देता है। सीता वट योगपीठ है, प्रेम पीठ है, वैराग्य पीठ है। यह वट राम भक्तों के लिए महिमामयी है।
जो महान है वह अक्षयवट, जो अहंकार नहीं करे, वह अक्षयवट
मोरारीबापू ने कहा कि दोहावली में अंकित है कि वट वृक्ष पर फूल नहीं लगते हैं। वह फूलता नहीं है। वट वृक्ष के सप्तांग में फूल नहीं है। वट वृक्ष वह है जो अहंकार नहीं करता है। अक्षयवट भी अहंकार नहीं करता है, अक्षयवट महान है। इसकी जितनी जड़े ज़मीन के अंदर जाती है, फैलती है उतना ही वह ऊपर उठता है।
बापू कहते हैं कि इसी प्रकार जिस व्यक्ति की जड़ें गहरी होती है, वह कभी अहंकार नहीं करता है। उसकी प्रतिष्ठा बड़ी है। वह अंदर से फूलते नहीं है, उनमें अहंकार नहीं आता है। छोटी जड़ों वाले लोग फूलते है, जिसकी प्रतिष्ठा आसमान को छू रही है, वह अहंकार नहीं करते हैं। बापू कहते हैं कि सीता वट सत्य वट है। वृंदावन का वंशीवट प्रेम वट है और कैलाश का शिव वट करुणा वट है।
हर यंत्र, ग्रंथ उसके मास्टर की प्रतीक्षा करता है, मुझे पढ़ो
मोरारीबापू ने कहा कि हर वाद्य उसके मास्टर की प्रतीक्षा करता है। इसी तरह मानस ग्रंथ भी प्रतीक्षा करते हैं कि आओ मुझे पढ़ों, पढ़ नहीं सकते तो स्पर्श करो और स्पर्श भी नहीं कर सकते हो तो मुझे देखो। बापू कहते हैं कि चौपाइयां मानस के गायकों की प्रतीक्षा करती हैं।
हर घुंघरू कहता है मुझे पहनो और नृत्य करो, हर बंशी कहती है मुझे अधर पर लेकर मुझसे राग छेड़ो। बापू कहते हैं कि इसमें पैसों का लोभ मत करना, यह साधना है।बापू ने कहा कि अगर मैं 10 दिन कथा न करूं तो मानस मुझसे कहती है कब गाओगे।
बापू ने यह भी कहा कि अनुभव एक क्रिया है, अनुभूति सहज क्रिया है। अनुभव आपको करना पड़ेगा, यह क्रिया युक्त का परिणाम है जबकि अनुभूति निजी क्रिया का परिणाम है। बापू कहते हैं कि गंगा सहज योग है, साधु सहज बहता है। विश्व के तमाम सद्गुण हमारे अंदर मौजूद है। अनुभव वर्षों का आता है, अनुभूति क्षणिक है। बापू ने कहा कि अच्छा ग्रंथ, पंथ, स्वर, सूर, वाद्य, नृत्य, आचार-विचार सत्संग के समान है। सद्ग्रन्थ का घराना अलमारी नहीं, हमारा अन्तःकरण है।
भारत का भाग्य, अब राम जन्म भूमि का न्याय हुआ
मोरारीबापू ने कहा कि राम जन्मभूमि के लिए कितने साल निकल गए। अब यह भारत का भाग्य है कि अब जाकर राम जन्मभूमि पर फैसला हुआ है। अब जाकर यह विवाद टला और निर्णय हुआ। बापू ने कहा कि शायद अब जाकर एक-दो महीने में सुनने को मिले कि भूमि पूजन हो रहा है।
बापू ने कहा कि हमें बड़ों का आदर करना चाहिए, वट ब्रह्मचारी है, वट बड़ा है। वट का आदर करो। घर में जो बड़े है, उनका आदर करो। अपने घर में काम करने वालों का आदर करो। बापू ने कहा कि जो अपने माँ-बाप के नहीं है, उनसे राष्ट्र क्या अपेक्षा करेगा।
क्रोध आने पर मुँह धो लो, दर्पण देखो, धीरज रखो, वक्त लो
राम कथा में मोरारीबापू ने कहा कि क्रोध आने पर ठंडे पानी से मुँह धो लेना चाहिए। हमें वक्त लेना चाहिए। शांत रहना चाहिए। क्रोध एक अंधेरा है, जिसमें दिखाई नहीं देता है। थोड़ा वक्त लीजिए, तुम संवर जाओगे, विवेक जाग जाएगा।
क्रोध आने पर थोड़ा रुकिए, यह तपस्या है। बापू कहते हैं कि क्रोध आने पर खुद को दर्पण में देखें, आप खुद में असुर पाओगे। क्रोध में अपने इष्ट को याद करो, हरिनाम लो। क्रोध जिसकी वजह से आ रहा है उसका तिरस्कार मत करो, उसे स्वीकार करो।
बच्चों को मोबाइल नहीं, मम्मी की जरूरत, हिंसा मत करो
मोरारीबापू ने कहा कि अपने बच्चों को एक उम्र तक मोबाइल मत दो। बच्चों को मोबाइल की नहीं, मम्मी की जरूरत है। माँ को किट्टी पार्टी में जाना होता है, बच्चे के लिए वक्त नहीं है, बच्चों को समय दीजिए। हम इतने पाश्चात्य क्यों होते जा रहे हैं। तुम्हारे पास अपनी संस्कृति है। मूल सभ्यता मत भूलो। बच्चों को हिंसा वाले सीरियल मत दिखाओ, बच्चों को रामायण दिखाओ।
बापू ने कहा कि आपके बच्चे इंग्लिश में पढ़ते है, मैं स्वीकार करता हूँ कि इंग्लिश विश्व की भाषा है, लेकिन मातृभाषा को मत भूलो। बच्चों को हिंदी वर्णमाला भी सिखाओ। बापू ने कहा कि बच्चे को सुबह जल्दी उठा दिया जाता है स्कूल जाने के लिए, उसे सोने दो। उस पर हिंसा मत करो। स्कूल वालों को बोलो की स्कूल थोड़ा देर से खोले।
स्वयंवर की सुनाई कथा, सियाराम का हुआ विवाह
"मानस अक्षयवट" के दौरान मोरारीबापू ने श्रोताओं को राम स्वयं वर की कथा सुनाई। बापू ने बताया कि किस प्रकार 9,999 राजाओं के द्वारा प्रयास के बाद धनुष नहीं टूट पाया था। जनक के द्वारा धरती को वीर विहीन कहने पर लक्ष्मण का क्रोधित हो जाना और राम के द्वारा धनुष को तोड़ने, राम-सीता विवाह की कथा को बताया। इससे पूर्व बापू ने सीता के द्वारा राम को बगीचे में घूमते देखना और अपनी माँ से इसकी चर्चा करने के बारे में सुनाया।