- भारतीय राजनीति में पुरुष राजनीति के वर्चस्व को इंदिरा गांधी ने तोड़ा
- जयललिता, सुषमा स्वराज, सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, मायावती, उमा भारती कुछ खास नाम
- भारतीय संसद और राज्यों की विधानसभाओं में अभी भी महिलाओं को 33 फीसज आरक्षण का इंतजार
नई दिल्ली। संसार की रचना में पुरुष और महिला दोनों का बराबर का योगदान है। लेकिन सनातनी परंपरा के शुरुआती दिनों को छोड़ दें तो जैसे जैसे शताब्दी दर शताब्दी आगे बढ़े तो उसमें गिरावट आई। वैदिक युग के दौरान, गार्गी, अपाला जैसी महान विदुषियों ने अपने ज्ञान से पुरुषों को परास्त किया था। लेकिन सामाजिक स्तर पर पुरुषों के साथ बराबरी का सपना एक तरह से सपना ही है।
अगर हम भारतीय राजनीति की बात करें तो आज भी लोकतंत्र के मंदिर में महिलाओं के लिए 33 फीसद आरक्षण किसी सपने की ही तरह है। पुरुषवादी राजनीति में महिलाओं के लिए जगह बनाना आसान नहीं है। लेकिन भारतीय राजनीति में कुछ ऐसे चेहरे हैं जो महिलाओं के लिए आदर्श की तरह सामने आते हैं।भारतीय राजनीति में पुरुषों के वर्चस्व को इन महिलाओं ने तोड़ा और साबित किया कि राजनीतिक का ककहरा न केवल वो सीख सकती हैं, बल्कि वो समाज और देश को नेतृत्व भी प्रदान कर सकती हैं। उन्हीं में से कुछ खास महिलाओं का जिक्र करेंगे।
इंदिरा गांधी
जिस तरह से चांद, तारों और सितारों का अस्तित्व रहेगा शायद इंदिरा गांधी भी उनमें से एक हैं। भारतीय राजनीति में उन्होंने खुद को इस तरह स्थापित कर लिया कि न केवल भारत बल्कि दुनिया उन्हें आयरन लेडी के तौर पर जानती है। उन्होंने भारतीय राजनीति के दो दिग्गजों मोरार जी देसाई और जगजीवन राम के बीच अपनी जगह बनाई बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह साबित कर दिया कि वो किसी विकसित शक्ति के हाथों की कठपुतली नहीं बन सकती है। 1971 की भारत- पाकिस्तान लड़ाई, पहला परमाणु परीक्षण उदाहरण है, हालांकि उनके दामन पर आपातकाल का दाग भी लगा।
जयललिता
दक्षिण भारत की राजनीति में इस चेहरे को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। रूढ़िवादी तमिल राजनीति में जिस तरह से इन्होंने अपनी जगह बनाई वो इनकी राजनीतिक चतुराई का जीता जागता उदाहरण है। फिल्मी स्क्रीन पर अपनी अदाओं से सब पर राज करने वाली जयललिता ने अपने राजनीतिक गुरु एम जी रामचंद्रन ने राजनीति की बारीकियों को सीखा और स्थापित करुणानिधि की पार्टी डीएमके से टक्कर लेती रहीं। जयललिता की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उन्होंने लगातार दो बार तमिलनाडु की सत्ता पर काबिज होकर इस मिथक को तोड़ दिया कि वहां की जनता हर पांच साल बाद बदलाव पर मुहर लगाती है।
सुषमा स्वराज
हमेशा हंसता मुस्कुराता चेहरा एक साल पहले हम लोगों के बीच से अनंत में कहीं विलीन हो गया। लेकिन राजनीति के पन्नों पर इन्होंने जो इबारत लिख दी उसे भुला पाना आसान नहीं होगा। सामाजिक तौर पर पिछड़े हरियाणा से ताल्लुक रखने वाली सुषमा स्वराज ने जब फैसला किया कि वो राजनीति के जरिए समाज की सेवा करेंगी तो वो परिवार को पहले रास नहीं आया।लेकिन संघर्षों के बीच जब उन्होंने कामयाबी की कहानी लिखनी शुरू की तो न केवल देश बल्कि दुनिया भी दंग रह गई।
मायावती
यह सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि संस्था हैं। भारतीय राजनीति में जब महिलाओं की राह में सिर्फ और सिर्फ कांटे बिछे हुए थे। तो दलित समाज से आने वाली मायावती के लिए सफर आसान नहीं थी। लेकिन दृढ़ इरादों के साथ इन्होंने फैसला किया कि अब तो उनकी जिंदगी का सिर्फ एक ही मकसद है कि वो न केवल दलित, वंचित समाज के लिए काम करेंगी बल्कि देश की आधी आबादी को भी यह संदेश देगी कि महिलाएं अगर ठान लें तो बहुत कुछ हासिल कर सकती हैं।
ममता बनर्जी
भारतीय राजनीति में जब कभी वाम दलों की चर्चा होगी तो इस नाम पर भी स्वाभावित तौर पर विचार होगा। ममता बनर्जी कभी कांग्रेस के दिग्गजों में सुमार की जाती थीं। हालांकि बंगाल की पुरुष प्रभाव वाली राजनीति में जगह बनाना आसान नहीं था। कांग्रेस से जब इनका मोह भंग हुआ तो जिंदगी के सबसे बड़े लक्ष्य को तय किया कि बंगाल को अब लाल सलाम यानि वाम दलों को सत्ता से बाहर करना है। ममता बनर्जी ने तमाम कष्टों को सामना करते हुए सच साबित कर दिया। जब कभी सड़कों पर संघर्ष और लड़ाई की चर्चा होती है तो यह नाम मष्तिष्क पर बिना जोर दिए याद आता है।
उमा भारती
इस चेहरे को कोई कैसे भूल सकता है। कम उम्र में ही दुनिया दारी से मोह छूटा और आध्यात्म जिंदगी का हिस्सा बन गया। रामायाण और महाभारत पूरी तरह कंठस्थ लेकिन नियति ने इनके लिए कुछ और तय कर रखा था। राम मंदिर आंदोलन के समय इन्होंने अलग पहचान हो गई और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड तक सीमित रहने वाली उमा भारती भारतीय राजनीति के फलक पर अपनी मौजूदगी दमदार अंदाज में पेश कर रही थीं। न केवल मध्य प्रदेश की सीएम की कमान संभाली बल्कि वाजपेयी और मोदी सरकार कैबिनेट की हिस्सा बनीं और अब आगे की जिंदगी गंगा मिशन के लिए समर्पित कर दिया है।
इन चेहरों ने यह साबित कर दिया कि महिलाओं को सिर्फ घर की चारदीवारियों तक ही नहीं बांध कर रखा जा सकता है। अगर उन्हें बराबरी का मौका मिले तो वो भी इतिहास रच सकती हैं। लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि महिलाओं को खुद को महिला होने की कमजोरी नहीं मानना चाहिए। एक बार दिल में जुनून और दिमाग में मजबूती आ जाए कि वो बहुत कुछ कर सकती हैं जिसे दृढ़इच्छाशक्ति आंधी चट्टान रूपी बाधाओं को भी बिखेर कर रख देगी।