नई दिल्ली: एक साल पहले 14 फरवरी को पुलवामा में हुई आतंकी घटना ने पूरे देश को झखझोर कर कर दिया था। सीआरपीएफ के काफिले में हुए आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे। हमला इतना भयानक था कि सीआरपीएफ की जिस बस पर हमला हुआ उसके परखच्चे उड़ गए और जवानों के शरीर के चीथड़े उड़ गए। जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर मानव अंग बिखरे पड़े थे। इन तस्वीरों को देखकर हर भारतीय का दिल पसीज गया और उसका खून बदले की भावना से भरकर खौल गया।
देश ने उस दिन 40 वीर सपूतों को खोया था। देश के साथ-साथ शहीदों के परिवारों के लिए भी यह एक बड़ी व्यक्तिगत क्षति हुई थी जिसकी भरपाई शायद ही कभी हो सके। शहीद होने वाले एक जवान हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के रहने वाले तिलक राज भी थे। जंदरोहा धेवा गांव में रहने वाले तिलक शहादत से 22 दिन पहले पिता बने थे। 11 फरवरी को बेटे को देखने घर आए थे लेकिन बेटे के नामकरण संस्कार से पहले वापस ड्यूटी पर लौट गए।
बेटे का सिर चूमकर लौटे थे ड्यूटी पर
घर से ड्यूटी पर लौटने से पहले उन्होंने अपने 18 दिन के बच्चे का सिर चूम कर गए थे। बेटे विहान के सिर से पिता का साया 22 दिन की उम्र में ही उठ गया। घर से वतन की सेवा में जाने के तीन दिन बाद ही पत्नी का सुहाग उजड़ गया। पिता जिस बेटे का माथा चूमकर वतन की रखवाली करने निकले थे पिता निकले थे बेटा उनकी शहादत से अनजान है। चार साल पहले पिता ने जिस बेटे के सिर पर सेहरा सजाया था उसकी अर्थी को कांधा देने का दर्द भी पिता को सहन करना पड़ा।
कबड्डी खेलने का और लोक गीत गाने का था शौक
तिलक राज कबड्डी के राज्यस्तरीय खिलाड़ी थे। वह छुट्टी पर घर आने के बाद गांव में आयोजित होने वाली कबड्डी प्रतियोगिता में शिरकत करते थे। हाल ही में उन्होंने गांव के अन्य साथियों के साथ मिलकर एक कबड्डी प्रतियोगिता की शुरुआत भी की थी। इसके साथ ही उन्हें लोकगायकी का भी शौक था। तिलक छुट्टी पर गांव आने के बाद लोकगीत रिकॉर्ड करते थे। उन्होंने कई पहाड़ी गाने गाए थे। शहादत से सात महीने पहले रिलीज हुए उनके गाने 'सिधु मेरा बड़ा ओ शराब हो भ्यागा ही इचि रंदा ठेके' और 'प्यारी मोनिका' बहुत चर्चित हुए थे।
10वीं के बाद छोड़ दी थी पढ़ाई
परिवार की परिस्थतियां अच्छी नहीं थी। गरीबी के कारण 10वीं में छोड़ दी थी पढ़ाई। साल 2007 में वो सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे। 2 मई 1988 को जन्मे तिलक के पिता मजदूरी करते थे। घर से डेढ़ किलोमीटर दूर धेवा में स्थित स्कूल में हुई। इसके बाद माध्यमिक पाठशाला परगोड़ा में पढ़ाई की। लेकिन घर की खराब आर्थिक परिस्थितियों के कारण 10वीं के बाद उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी और फोटोग्राफी का काम शुरू कर दिया था। फोटोग्राफी का काम सीखने के बाद उन्होंने अपनी दुकान खोल ली थी। लेकिन इसके बाद वो सीआरपीएफ में भर्ती हो गए और देशसेवा की राह पर निकल पड़े।