- राजा राम मोहन राज को कहा जाता है आधुनिक भारत का जनक
- राम मोहन राय ने बचपन में ही त्याग दिया दिया रुढ़िवादी विचारधारा को
- जब भाभी को जिंदा जलाने पर विचलित हो गए थे राजा राममोहन राय, ठान लिया था सती प्रथा को खत्म करने का प्रण
नई दिल्ली: आधुनिक भारत के जनक कहने जाने वाले राजा राम मोहन राय के बारे में कौन नहीं जानता है। 22 मई 1772 को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में एक कट्टर ब्राह्मण समाज में जन्मे राजा राम मोहन राय के विचार बचपन से अपने परिवार के विचारों से उलट थे और उन्होंने हिन्दू समाज की रुढ़िवादी विचारधारा को तभी त्याग दिया था। सती प्रथा जैसी कुरीति को खत्म करने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले राम मोहन राय के जीवन में एक ऐसी घटना घटी जिसके बाद उन्होंने प्रण ले लिया कि वो सती प्रथा को खत्म करके ही रहेंगे।
क्या थी वो घटना
दरअसल राजा राम मोहन राय के सामने में एक ऐसी घटना घटी जिससे उनके जीवन को ही बदलकर रख दिया। राम मोहन राय सती प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे और वो इसे खत्म करना चाहते थे। लेकिन एक दिन जब वो किसी काम से विदेश में थे तो इसी दौरान उनके भाई का निधन हो गया। भाई की मौत के बाद सती प्रथा के नाम पर उनकी भाभी को भी जिंदा जला दिया गया। इस घटना के बाद वो इतना आहत हो गए थे कि उन्होंने प्रण ले लिया कि जैसा उनकी भाभी के साथ हुआ है वैसा वो किसी और महिला के साथ नहीं होने देंगे।
क्या थी सती प्रथा
दरअसल एक ऐसी प्रथा थी जिसमें अगर किसी महिला के पति का निधन हो गया तो उसे विधवा जीने का अधिकार नहीं होता था यानि पति के साथ ही उसे जिंदा जला दिया जाता था। कई बार इसमें महिला राजी होती थी तो कई बार नहीं। राजी नहीं होने की स्थिति में महिला को जबरन जला दिया जाता था। सती का मतलब होता था पवित्र, यानि तब कहा जाता था कि पति के साथ जलकर महिला पवित्र हो जाता है।
कई बार हुई रोकने की कोशिश
मुगलों के शासनकाल में भी इसे रोकने की कोशिश हुई थी और हुमायूं ने सबसे पहले इसे रोकने के लिए प्रयास किए थे। लेकिन तब सफलता नहीं मिली। 18वीं सदी के आते-आते इस प्रथा को उन इलाकों में बंद करवा दिया गया जहां यूरोपीय यानि अंग्रेजों का शासन होता था।
राजा राम मोहन राय ने इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और अंतत: इसमें सफलता भी मिली। तत्कालीन ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक द्वारा 4 दिसंबर, 1829 को बंगाल सती रेग्युलेशन पास कर इस प्रथा पर रोक लगा दी गई। रेग्युलेशन में सती प्रथा को इंसानी प्रकृति की भावनाओं के विरुद्ध बताया गया। राजाराम मोहन राय ने ही ब्रह्म समाज की स्थापना की थी ।