Parijat's plant: पारिजात या हरसिंगार या रात की रानी ये सारे नाम एक ही पौधे के हैं मनमोहक और सुगंधित फूल का पेड़ खूबसूरत होता है, पारिजात के फूल को भगवान हरि के श्रृंगार और पूजन में प्रयोग किया जाता है, इसे हरसिंगार के नाम से भी जाना जाता है यानि हरि का श्रृंगार, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 अगस्त को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का भूमि पूजन करने के साथ ही पारिजात का पौधा विराजमान रामलला से चंद कदमों की दूरी पर ही अपने हाथों से लगाएंगे, बेहद दिव्य इस पौधे की खासियतें भी तमाम हैं।
इस पौधे का हिंदू धर्म में बेहद महत्व है और अपनी कुछ और खासियतों की वजह से ही इसे राम जन्म भूमि पूजन समारोह का हिस्सा बनाया जा रहा है, कहा जाता है कि पारिजात को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान दूर हो जाती है।
आइए इस पौधे के बारे में जानते हैं कि और क्या-क्या खासियतें अपने में समाए है ये पौधा-
- पारिजात या हरसिंगार यह पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है
- हिन्दू धर्म में इस वृक्ष का बहुत महत्व माना जाता है, ऐसी भी मान्यता है कि पारिजात को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है
- कहा जाता है कि मां लक्ष्मी को पारिजात के फूल अत्यंत प्रिय हैं और पूजा-पाठ के दौरान मां लक्ष्मी को ये फूल चढ़ाने से वो प्रसन्न होती हैं
- पूजा के लिए इस वृक्ष से फूल तोड़ना पूरी तरह से निषिद्ध है, यानि जो फूल पेड़ से गिर जाते हैं उन्हीं को पूजा में चढ़ाया जाता है
- एक मान्यता ये भी है कि 14 साल के वनवास के दौरान सीता माता हरसिंगार के फूलों से ही अपना श्रृंगार करती थीं
- परिजात एक पुष्प देने वाला वृक्ष है इसे हरसिंगार, शेफाली, शिउली आदि नामो से भी जाना जाता है इसका वृक्ष 10 से 15 फीट ऊँचा होता है
- इसका वानस्पतिक नाम 'निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस' है। पारिजात पर सुन्दर व सुगन्धित फूल लगते हैं
- इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है, यह पूरे भारत में पैदा होता है
- यह विशेषकर मध्यभारत और हिमालय की नीची तराइयों में ज्यादातर पैदा होता है
- इसके फूल बहुत सुगंधित, सफेद और सुन्दर होते हैं जो रात को खिलते हैं और सुबह मुरझा कर गिर जाते हैं
पारिजात का एक बेहद प्राचीन वृक्ष उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के किंतूर गांव में
पारिजात (Parijat) का एक बेहद प्राचीन वृक्ष प्रदेश के उत्तर प्रदेश के बाराबंकी (Barabanki) जिले के किंतूर गांव में स्थित है, जो महाभारतकालीन बताया जाता है,अति प्राचीन इस वृक्ष को भारत सरकार ने संरक्षित कर रखा है,अज्ञातवास के दौरान पांडव माता कुंती के साथ इसी वन रहे थे और उसी दौरान किंतूर ग्राम में में कुंतेश्वर महादेव की स्थापना की गई थी, भगवान शिव की पूजा करने के लिए माता कुंती ने स्वर्ग से पारिजात पुष्प लाने की इच्छा जाहिर की थी कहते हैं कि माता की इच्छा पर उनके पुत्र अर्जुन ने स्वर्ग से इस वृक्ष को लाकर यहां स्थापित किया था तभी से इस वृक्ष की पूजा की जा रही है।