- साल 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर एएसआई ने की थी विवादित स्थल की खुदाई
- रिपोर्ट में बताया ढहाए गए ढांचे की नीचे था हिंदू मंदिर
- रिपोर्ट ने मामले के निराकरण में निभाई अहम भूमिका
नई दिल्ली: जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने शनिवार को अयोध्या राम मंदिर विवाद पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपना फैसला राममंदिर न्यास के पक्ष में दिया। इसके साथ ही भारतीय राजनीति के सबसे विवादित मुद्दों में से एक का अंत हो गया। 70 साल से लोगों को इस मामले में फैसले का इंतजार था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले में साल 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान द्वारा विवादित स्थल की खुदाई के जो रिपोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष पेश की थी वह इस मामले में रीढ़ की हड्डी साबित हुई और अंत में फैसला राममंदिर न्यास के पक्ष में गया। आईए जानते हैं कि एएसआई ने कब शुरू की थी जांच और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उससे निकाले थे क्या निष्कर्ष।
23 अक्टूबर 2002 को इलाहाबाद हाइकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान यानी एएसआई को विवादित ढांचे के आसपास के इलाके की साइंटिफिक जांच ग्राउंड पेनिट्रेटिंग टेक्नोलॉजी और जिओ रेडियोलॉजी(जीपीआर) के जरिए करने का निर्देश दिया था। जिसकी रिपोर्ट 17 फरवरी 2003 को कोर्ट के समक्ष पेश की गई। इसके बाद 5 मार्च 2003 को हाइकोर्ट ने और स्पष्ट जानकारी हासिल करने के लिए एएसआई को विवादित स्थल की खुदाई करने का निर्देश दिया। इसके लिए 14 सदस्यीय टीम का गठन किया गया था। इसके बाद 22 अगस्त 2003 को एएसआई ने अपनी अंतिम रिपोर्ट हाईकोर्ट में दाखिल की।
रिपोर्ट में पाया गया कि वहां गोलाकार मंदिर था। पत्थरों पर हिंदू देवी देवताओं से जुड़े चिन्ह मिले। खासकर मकर का चिन्ह विवादित ढांचे की दीवार नंबर पांच पर मिला। इसके अलावा अलौकिक जोड़ा और अन्य साक्ष्य मिले जिससे यह सिद्ध होता है कि विवादित स्थल के नीचे हिंदू मंदिर रहा होगा।खुदाई से संबंधित गवाहों के बयान से यह साबित हुआ कि विवादित स्थल की खुदाई स्थापित मापदंडों के अनुरूप हुई है। इस दौरान संबंधित पक्षों के लोग मौजूद, विशेषज्ञ और पर्यवेक्षक मौजूद थे। खुदाई के दौरान थ्री डायमेंशनल फोटोग्राफी, प्रत्येक गड्ढे की खुदाई और इस दौरान स्ट्रक्चर की वीडियोग्राफी भी की गई। खुदाई के दौरान प्रत्येक गतिविधि का रजिस्टर मेंटेन किया गया।
हाइकोर्ट के दौरान यह सवाल एएसआई की रिपोर्ट के बारे में उठा कि इस रिपोर्ट में ऐसा नहीं कहा गया है कि विवादित ढांचे या मस्जिद का निर्माण पहले से बने मंदिर या किसी अन्य ढांचे को तोड़कर किया गया था। इसके जवाब में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट तौर कहना संभव नहीं है कि विवादित ढांचे के निर्माण से पहले इस जगह बने ढांचे के गिरने की क्या वजह थी। लेकिन इस बात के पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं कि विवादित ढांचे की अपनी नींव नहीं थी। यदि कोई भवन पहले नहीं था और तो ऐसे में उस जगह पहले से बने भवन की नींव का उपयोग वो दोबारा भवन निर्माण उसकी मजबूती और भार सहने की क्षमता का आकलन किए बगैर नहीं कर सकता। इसके अलावा विवादित ढांचे के फर्श का निर्माण पूर्व में बने ढांचे का फर्श के ठीक ऊपर हुआ है। इसके अलावा कई पिलर बेस या खंबों के आधार को देखकर यह कहा जा सकता है कि विवादित ढांचे से पहले इस जगह पर उससे बड़ा या उसके बराबर का स्ट्रक्चर खड़ा था।
एएसआई द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट और बहस के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कई निर्णायक निष्कर्ष निकाले थे। जो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के दौरान भी आधार बने। वो इस प्रकार हैं...
1. विवादित ढांचे को किसी खाली या खुली जमीन पर नहीं बनाया गया था।
2. विवादित ढांचे के निर्माण से पहले उस जगह पर एक स्ट्रक्चर था यदि वो उससे बड़ा नहीं था तो उससे कम आकार का भी नहीं था।
3. विवादित ढांचे का निर्माण करने वाले को पूर्व में बने स्ट्रेक्चर की मजबूती, क्षमता, दीवारों के आकार के बारे में सटीक जानकारी थी। यदि ऐसा नहीं होता तो वो पुराने ढांचे की दीवार में किसी तरह का बदलाव किए बगैर नए ढांचे में उसका उपयोग बेझिझक नहीं करता।
4. जो ढांचा विवादित ढांचे से पहले था वो पूरी तरह धार्मिक और गैर-इस्लामिक था।
5. खुदाई के दौरान पुराने ढांचे से संबंधित जो भी साक्ष्य मिले उनमें से अधिकांश गैर इस्लामिक थे। जो कि हिंदू धार्मिक स्थल होने का संकेत करते हैं।
6. अंत में यह मान भी लिया जाए कि कुछ साक्ष्य एएसआई को खुदाई को दौरा मिले वो अन्य धर्मों से संबंधित थे। लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उनका उपयोग केवल इस्लामिक धार्मिक स्थलों में होता है।