- उत्तर भारत के बड़े दलित नेता के तौर पर थी रामविलास की पहचान
- गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराया अपना नाम
- हमेशा केंद्र की सत्ता के इर्दगिर्द रहे रामविलास पासवान
नई दिल्ली : बिहार की राजनीति में एक ऐसा समय भी आया जब एक दलित नेता ने किसी भी पार्टी को समर्थन देने के लिए मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग कर दी। वो अपनी इस बात पर अंतिम समय तक कायम रहा। आखिरकार कोई भी पार्टी सरकार नहीं बना पाई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। वो दलित नेता थे पूर्व लोक जनशक्ति पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान।
गुरुवार की शाम दिल्ली के एस्कॉर्ट अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। रामविलास लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनकी मौत के साथ ही बिहार की राजनीति का एक अध्याय खत्म हो गया। उत्तर भारत के एक बड़े दलित नेता के तौर पर अपनी पहचान रखने वाले रामविलास की राजनीतिक पारी करीब पच्चास साल की रही। अपने पूरे सफर में वो ज्यादातर समय केंद्र सरकार में मंत्री रहे।
दलितों के चहेते नेता
रामविलास पासवान ने 1981 में दलित सेना संगठन की स्थापना की। उनकी राजनीतिक शक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अपने पहले ही लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की थी। 1977 में उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार को चार लाख से ज्यादा मतों से हरा कर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया था। 2000 में रामविलास ने लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया। एलजेपी का गठन सामाजिक न्याय, दलितों और पीड़ितों की आवाज उठाने के उद्देश्य से किया गया था। बिहार में दलितों की आबादी करीब 17 प्रतिशत है। इसमें दुसाध जाती की आबादी पांच प्रतिशत है और यही एलजेपी का कोर वोट बैंक है। अपने वोट बैंक पर उनकी इतनी मजबूत पकड़ थी के एक ही सीट से 8 बार चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे।
केंद्र सरकार में हमेशा रहा दबदबा, पांच पीएम के कार्यकाल में रहे मंत्री
रामविलास की पकड़ बिहार में कई मौकों पर जरूर कमजोर पड़ी हो लेकिन केंद्र में हमेशा वो सत्ता के इर्दगिर्द ही रहे। 1977 में पहली बार जनता पार्टी की तरफ से संसद पहुंचे। 1989 में 9वीं लोकसभा में श्रम और कल्याण मंत्री रहे। 1996 से 1998 तक में रेलमंत्री, 1991 से 2001 तक सूचना मंत्री और 2001 से 2002 तक कोयला मंत्री रहे। राविलास कुल पांच प्रधानमंत्रीयों के कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रहे। विश्वनाथ प्रताप सिंह से लेकर एच. डी. देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, मनमोहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेन्द्र मोदी सरकार मे भी वो मंत्री थे। नरेन्द्र मोदी सरकार में वो इस समय उपभोक्ता मामलों के मंत्री थे।
केंद्र में हमेशा मंत्री पद पर बने रहने वाले रामविलास सिर्फ 2009 में राजनीतिक हवाओं को नहीं पहचान सके। 33 साल में पहली बार जनता दल के रामसुंदर दास (पूर्व मुख्यमंत्री) के हाथों उन्हें हाजीपुर सीट से हार का सामना करना पड़ा। उनकी पार्टी 15वीं लोकसभा में एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हुई। रामविलास पासवान ने अपने लगभग पच्चास साल के राजनैतिक जीवन में ज्यादातर समय एक मंत्री के रूप में गुजारा।उनकी इसी कुशलता की वजह से लालू प्रसाद ने उन्हें 'राजनीति का मौसम वैज्ञानिक' का नाम दिया था।
अचानक कर दी थी मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग
यह कहानी भी दिलचस्प है। 2005 में रामविलास यूपीए का हिस्सा थे। तब लालू प्रसाद भी यूपीए के साथ थे। लेकिन 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में रामविलास ने लालू और कांग्रेस से अलग हट कर चुनाव लड़ने का फैसला लिया। लेकिन केंद्र में यह गठबंधन कायम रहा। रामविलास पासवान को इस फैसले का फायदा भी हुआ और उनकी पार्टी 29 सीटें जीतने में कामयाब रही। उधर किसी भी पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हुआ। नीतीश और लालू दोनों को एलजेपी के मदद की दरकार थी। लेकिन रामविलास ने समर्थन के लिए बड़ी ही अजीब शर्त रख दी। उन्होंने कहा कि जो पार्टी किसी मुसलमान को मुख्यमंत्री बनाएगी वो उसका समर्थन करेंगे। रामविलास की इस शर्त पर कोई भी पार्टी तैयार नहीं हुई और राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर दी।
इमरजेंसी के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा
रामविलास पासवान ने समयुक्ता सोशलिस्ट पार्टी से अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 1969 में पहली बार विधायक चुने गए। आश्चर्य की बात यह है कि इसी साल रामविलास का चयन बिहार पुलिस में डीएसपी के पद पर हुआ था। 1974 में उन्होंने लोकदल ज्वाइन कर लिया। राविलास आपातकाल के समय सबसे अधिक सक्रिय यूवा नेताओं में से थे।
आपातकाल के दौरान वो राजनारायण सिंह, कर्पूरी ठाकुर, सत्येंद्र नारायण सिंह के नीजी संपर्क में रहे और जेल भी गए। 1977 में जेल से बाहर आने के बाद वो जनता पार्टी के सदस्य बने। 2000 में एलजेपी के गठन के बाद उन्हें नई मजबूती मिल गई। यूपीए के शासनकाल में भी मंत्री रहे। 16वीं लोकसभा में उन्होंने हाजीपुर से जीत हासिल की और अपने बेटे चिराग पासवान को भी राजनीति में प्रवेश करवा दिया। चिराग पासवान ने भी जमुई सीट से चुनाव लड़ा और आसानी से जीत हासिल की।
रामविलास को एक ऐसे राजनेता के तौर पर याद रखा जाएगा जिन्होंने कांशीराम के उस कथन को चरितार्थ किया कि 'हम कमजोर हैं, हमें सत्ता चाहिए, विचारधारा नहीं। विचारधारा से पेट नहीं भरता, सत्ता से घर भरता है।'