- इस समय जद(यू) के पास 45 विधायक हैं। और अगर वह भाजपा से अलग होती है तो उसे सरकार बनाने के लिए 77 विधायकों की जरूरत पड़ेगी।
- अगर राजद नीतीश कुमार को समर्थन देता है राजद के 79 विधायक मिलकर,आसानी से बहुमत का आंकड़े को हासिल कर लेंगे।
- पिछले 21 दिन में केंद्र की 4 बैठकों और आयोजनों से बनाई दूरी।
Nitish Kumar JD (U) And BJP:क्या राजनीतिक करियर के आखिरी दौर में पहुंच चुके, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करियर का फाइनल दांव चलने जा रहे हैं ? और यह दांव विपक्ष की राजनीति का है, जिसमें वह पहली बार सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से टक्कर लेंगे। यह कुछ ऐसी अटकलबाजियां हैं जो एक बार फिर चर्चाओं में है। क्योंकि जिस तरह आरसीपी सिंह के जद (यू) से इस्तीफे के बाद सियासी घमासान बिहार की राजनीति में दिख रहा है। उससे यह साफ है कि अगले एक-दो दिनों में बिहार में नीतीश कुमार कोई बड़ा राजनीतिक फैसला ले सकते हैं। ऐसे में अगर वह भाजपा से नाता तोड़ते हैं तो ऐसा दूसरी बार होगा जब नीतीश, भाजपा से नाता तोड़ेंगे। पिछली बार 2013 में लोक सभा चुनावों के ठीक पहले उन्होंने भाजपा से 17 साल पुराना नाता तोड़ा था। और इस बार गठबंधन टूटने पर 5 साल का नाता टूटेगा।
नीतीश करेंगे विपक्ष की राजनीति
अगर नीतीश भाजपा का साथ छोड़ते हैं और राजद सहित दूसरे विपक्षी दलों के साथ सरकार बनाते हैं, तो वह विपक्षी खेमे में चले जाएंगे। जहां तक बिहार में विधानसभा चुनाव की बात है तो वह 2025 में होंगे। जबकि उसके पहले 2024 के लोक सभा चुनाव होंगे। ऐसे में नीतीश नई भूमिका में दिख सकते हैं और 2024 के लोक सभा चुनाव में विपक्ष को लामबंद करने से लेकर भाजपा के खिलाफ रणनीति बनाने में सक्रिय दिख सकते है। 71 साल के नीतीश कुमार इस बार जो दांव चलेंगे, वह निश्चित तौर पर इस बात को ध्यान रखकर चला जाएगा, कि शायद यह उनके राजनीतिक करियर का आखिरी सबसे बड़ा दांव होगा।
राजद के साथ मिलकर बनाएंगे सरकार !
इस समय जद(यू) के पास 45 विधायक हैं। और अगर वह भाजपा से अलग होती है तो उसे सरकार बनाने के लिए 77 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में अगर राजद नीतीश कुमार को समर्थन देता है राजद के 79 विधायक मिलकर, आसानी से बहुमत का आंकड़े (122) को हासिल कर लेंगे। और अगर नीतीश को कांग्रेस के 19 और कम्युनिस्ट पार्टी के 12 और जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के 4 विधायकों का साथ मिल जाता है तो नीतीश के पास 159 विधायकों का समर्थन हासिल हो जाएगा। जो सरकार चलाने के लिए काफी होगा।
क्यों टूट सकता है गठबंधन
नीतीश कुमार के भाजपा से मोहभंग होने की ताजा वजह, उनके पुराने साथी और मोदी सरकार में मंत्री रहे आरसीपी सिंह बताए जा रहे हैं। राज्य सभा से टिकट कटने के बाद से ही आरसीपी को लेकर जनता दल (यू) में उनके भविष्य को लेकर अटकलें शुरू हो गईं थी। उसके बाद, अब पार्टी ने, एक समय नीतीश कुमार के बेहद करीब रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह पर बेहिसाब संपत्ति बनाने के आरोप लगाए गए। इस मामले में उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। इसके बाद शनिवार शाम आरसीपी सिंह ने जेडीयू से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद आरसीपी सिंह ने जद (यू) को डूबता हुआ जहाज तक कह दिया।
इसके पहले भाजपा और जद(यू) के अग्निपथ स्कीम को लेकर राज्य के नेताओं में काफी खींचतान चली थी। इसी तरह विधान सभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा और नीतीश की दूरियां भी जगजाहिर है। लेकिन भाजपा के तरह से सकारात्मक पहल नहीं होना उनकी नाराजगी की वजह बना है। जातिगत जनगणना पर नीतीश कुमार भाजपा से ज्यादा विपक्ष के करीब दिखे। और दबाव में भाजपा की राज्य इकाई को भी जातिगत जनगणना का समर्थन करना पड़ा। इसके पहले 2019 में केंद्र में जद (यू) कोटे से एक ही मंत्री बनाए जाने से भी नीतीश की नाराजगी रही है। इसके अलावा पिछले 21 महीने से भाजपा के सहयोग वाली सरकार में छोटे भाई की भूमिका भी नीतीश को रास नहीं आ रही है।
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21 दिन में 4 मीटिंग से नीतीश ने बनाई दूरी
नीतीश के कुछ चौंकाने वाला कदम उठाने की वजह पिछले 21 दिनों से उनका केंद्र के साथ रवैया रहा है। वह पहले गृहमंत्री अमित शाह द्वारा तिरंगा यात्रा पर मुख्यमंत्रियों की बुलाई बैठक से दूर रहे। इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के विदाई समारोह में उपस्थित नहीं हुए और फिर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह से भी दूर थे। इसके बाद 7 अगस्त को नीति आयोग की मीटिंग से भी नीतीश ने दूरी बना ली। हालांकि इस बीच वह कोविड से भी पीड़ित थे। और उनकी मीटिंग से दूरी के लिए यही वजह बताई जा रही है। लेकिन जिस तरह बयानबाजी का दौर शुरू हुआ है। कहानी कुछ और ही लगती है। क्योंकि पिछले कुछ समय से शांत रहे चिराग पासवन भी अब सीधे नीतीश पर हमला कर रहे हैं, पासवान ने ट्वीट किया कि साल 2024 में हार का डर ऐसा घर कर गया है कि मामा कंस की तरह मां देवकी के हर पुत्र को मार देना चाहते हैं। पहले मुझ पर हमला और अब आरसीपी सिंह पर। नहीं जानते कि सियासी वध के लिए कृष्ण ने अवतार ले लिया है। इसबार पाला बदलना भी काम नहीं आएगा।
कब-कब बदल चुके हैं पाला
- साल 1994 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव का साथ छोड़कर,जॉर्ज फर्नान्डिस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया था ।
- 1996 में बिहार में भाजपा से हाथ मिलाया और 2013 तक साथ चले। इस बीच वह बिहार के दो बार मुख्यमंत्री बने और दोनों दलों ने मिलकर सरकार चलाई।
- साल 2013 में , जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया तो उन्होंने 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ लिया।
- 2015 में पुराने सहयोगी लालू यादव और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया।
- 2017 में फिर महागठबंधन से नाता तोड़ भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई ।