नई दिल्ली : अफगानिस्तान में तालिबान राज की वापसी ने भारत सहित कई देशों के लिए चिंता पैदा की है। भारत का जोर बार-बार इस बात के लिए रहा है कि अफगानिस्तान की सरजमीं का इस्तेमाल भारत के खिलाफ न हो। भारत ने एक बार फिर ऐसी की बात कही है। साथ ही अफगानिस्तान की नई सरकार में सभी वर्गों को शामिल नहीं किए जाने और महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों के अधिकारों व उनके हालात को लेकर भी चिंता जताई।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया के साथ टू प्लस टू वार्ता के बाद कहा कि दोनों देशों के बीच 'टू-प्लस-टू' वार्ता में स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर दृष्टिकोण साझा किया गया तो बिना किसी समझौते के आतंकवाद से मुकाबले के महत्व पर भी जोर दिया गया। ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री एम पायन के साथ हुई एक बैठक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जयशंकर ने तालिबान की अंतरिम सरकार की रूपरेखा को लेकर भी चिंता जताई।
क्या हैं भारत की चिंताएं?
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में भारत की चिंता आतंकवाद के अतिरिक्त वहां की व्यवस्था के स्वरूप, महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार को लेकर भी है। भारतीय विदेश मंत्री ने एक बार फिर कहा कि अफगानिस्तान की भूमि का इस्तेमाल किसी अन्य देश के खिलाफ आतंकी गितिविधियों को प्रश्रय व प्रोत्साहन देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सुरक्षा परिषद के 2593 प्रस्ताव के तहत एकजुट रुख अपनाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के इस प्रस्ताव को भारत की अध्यक्षता में 30 अगस्त को मंजूरी मिली थी। इसमें साफ किया गया है कि अफगानिस्तान की सरजमीं का इस्तेमाल किसी अन्य देश को धमकाने या उस पर हमला करने या उसे आतंकियों को पनाह अथवा प्रशिक्षण देने या आतंकी हमलों के वित्त पोषण के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पायन ने कहा कि उनका देश इसमें काफी दिलचस्पी रखता है कि अफगानिस्तान फिर कभी आतंकवादियों की पनाहगाह और प्रशिक्षण केंद्र न बने। उन्होंने कहा कि यही अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता हे। उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया हिंसा के प्रभावों और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर भी सचेत है।