चुनाव सुधार बिल 2021 आज राज्यसभा से पारित हो गया, कल ही इस बिल को लोकसभा से मंजूरी मिली थी। लोकसभा में विपक्ष ने इसका खूब विरोध किया था लेकिन वहां सरकार के बहुमत के कारण ये बिल आसानी से पास हो गया। आज जब ये बिल राज्यसभा में पेश किया गया तो विपक्षी सांसदों ने यहां भी इस बिल को लेकर खूब हंगामा किया। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ-ब्रायन ने तो रूल बुक ही फेंक डाली। विपक्ष ने सदन से वॉकआउट किया और उनकी गैरमौजूदगी में ये बिल राज्यसभा से पारित हो गया।
अंग्रेजी का एक शब्द है.. DELUSION जिसे हिंदी में भ्रम कहा जाता है। लोकसभा और राज्यसभा में चुनाव सुधार बिल का विरोध करते हुए विपक्ष ने जो तर्क रखा उसे हम साफ-साफ DELUSION ही कह सकते हैं। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले संसद से चुनाव सुधार बिल 2021 पास हो चुका है। अब इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। संसद के दोनों सदनों में इस बिल को कानून मंत्री किरन रिजिजू ने पेश किया। लोकसभा में कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी और AIMIM सांसद असद्दुदीन ओवैसी ने इसका खूब विरोध किया तो राज्यभा में तृणमूल कांग्रेस सांसद डेरेक ओ-ब्रायन ने रूलबुक ही फेंक डाली और तमाम विपक्षी सांसद सदन से वॉकआउट कर गए।
चुनाव सुधार बिल है क्या? और इसमें क्या बदलाव किए गए हैं?
मान लीजिए अगर X नाम का व्यक्ति उत्तर प्रदेश के एक गांव का निवासी है और गांव की वोटर लिस्ट में उसका नाम है, लेकिन लंबे समय से वो किसी अन्य शहर में रह रहा है और वहां की वोटर लिस्ट में भी उसका नाम दर्ज है यानि दो जगहों पर एक ही नाम का वोटर है। इस चुनाव सुधार के बाद अगर वोटर-आईकार्ड आधार से लिंक होता है तो X का नाम किसी एक ही वोटर लिस्ट में रहेगा यानी वो दो जगह अपना वोट नहीं दे पाएगा।
बिल में कौन-कौन से चार बड़े बदलाव किए गए हैं
पहला बदलाव
वोटर आईडी को आधार से जोड़ा जाएगा, ये स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं
दूसरा बदलाव
वोटर रजिस्ट्रेशन के लिए एक साल में 4 मौके मिलेंगे
तीसरा बदलाव
महिला सैनिकों के पतियों को भी सर्विस वोटर का दर्जा मिलेगा
चौथा बदलाव
चुनाव आयोग को यह अधिकार मिल जाएगा कि वे चुनाव संचालन के लिए किसी भी परिसर को चुनावों तक ले सकते हैं।
कांग्रेस और तमाम विपक्षी पार्टियां इस बिल का विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि ये बिल निजता के मौलिक अधिकार का हनन है और इसका गलत तरीके से इस्तेमाल हो सकता है। इसी आरोप में विपक्ष ने सदन में हंगामा किया, राज्यसभा से वॉकआउट किया गया और रूल बुल तक फेंक डाली। संसद में सरकार ने इसके पक्ष में क्या कहा और विपक्ष ने विरोध में क्या तर्क दिया अब इसे समझ लीजिए। सरकार ने कहा कि आधार और वोटर आईडी जुड़ेगा तो फर्जीवाड़ा नहीं होगा, लेकिन विपक्ष का कहना है कि ये प्राइवेसी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। सरकार ये कह रही है कि इस सुधार से एक आदमी की एक वोटर आईडी होगी, लेकिन विपक्ष कह रहा है कि इससे गुप्त मतदान का अधिकार नहीं रहेगा। सरकार ने साफ किया कि वोटर कार्ड को आधार से जोड़ना वैकल्पिक है लेकिन विपक्ष कह रहा है कि इसका गलत इस्तेमाल हो सकता है। सरकार का पक्ष है कि वोटर आईडी कार्ड से आधार लिंक करते समय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ध्यान रखा जाएगा, लेकिन विपक्ष कह रहा है कि ये बिल सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन है।
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एक प्रेस नोट 27 अगस्त 2018 का है। उस वक्त चुनाव में सुधार को लेकर राजनीतिक दलों के साथ आयोग ने एक बैठक की थी। उसके बाद आयोग ने एक प्रेस नोट जारी किया था, इसमें नोट में साफ साफ लिखा है कि चुनाव आयोग की इस बैठक में सात राष्ट्रीय दल और 34 क्षेत्रिय पार्टियां शामिल हुईं थीं। इस प्रेस नोट में साफ-साफ लिखा है कि राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग से अपील की कि वोटर्स के आधार नंबर को उनकी सारी जानकारी के साथ जोड़ा जाना चाहिए, इससे चुनाव सुधार में मदद मिलेगी। तो सवाल है कि 2018 में अगर राजनीतिक दल आधार नंबर और वोटर आईकार्ड के साथ जोड़ने की वकालत कर रहे थे तो आज विरोध क्यों करने लगे?
साल 2018 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने चुनाव आयोग से अपील की थी कि वोटर कार्ड को आधार से जोड़ना जरूरी है लेकिन अब वही कांग्रेस कह रही है कि ये निजता के अधिकार का उल्लंघन है। कांग्रेस ने 2018 में कहा था कि फर्जी वोटिंग रोकने के लिए आधार को वोटर कार्ड से जोड़ना जरूरी है, अब वही कांग्रेस कह रही है कि ये फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन है। 2018 में मध्यप्र देश कांग्रेस ने यही सुझाव चुनाव आयोग को दिया था लेकिन अब वहीं कांग्रेस बिल पास होने से पहले उसे स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजने की वकालत कर रही थी।
सवाल है कि चुनाव में सुधार को लेकर विपक्षी दल इतने कंफ्यूज क्यों हैं?
- क्या विपक्षी दल फर्जी वोटर्स को बचाना चाहते हैं?
- चुनाव सुधार को लेकर विपक्ष का दोहरा रवैया क्यों?
- चुनाव में पारदर्शिता से विपक्ष को परेशानी क्यों है?
- पहले आधार से लिंक जरूरी, अब विरोध मजबूरी?