- संविधान सभा के सदस्य के.टी.शाह ने प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द को शामिल करने का प्रस्ताव दिया था।
- संविधान सभा के कई सदस्यों का मानना था कि भारत के सामाजिक परिवेश को देखते हुए इसे शामिल करने की जरूरत नहीं है।
- इंदिरा गांधी सरकार ने 42 वें संविधान संशोधन के जरिए सेक्युलर शब्द को प्रस्तावना में जोड़ा गया।
Republic Day 2022: देश आज अपना 73 वां गणतंत्र दिवस समारोह मना रहा है। आज ही के दिन (26 जनवरी) 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था। लेकिन भारतीय राजनीति में आज जिस शब्द का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है, उसको संविधान बनाते वक्त हमरी संविधान सभा ने प्रस्तावना में शामिल ही नहीं किया था। जी हां हम धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) शब्द की बात कर रहे हैं। असल में इस शब्द को प्रस्तावना में शामिल करने का प्रस्ताव, संविधान सभा के सदस्य प्रोफेसर के.टी.शाह ने दिया था।
उन्होंने 15 नवंबर 1948 को यह प्रस्ताव रखा कि संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द को इस्तेमाल किया जाय। इसके तहत उन्होंने प्रस्ताव दिया कि क्लॉज (1) में सेक्युलर, फेडरलिस्ट और सोशलिस्ट को शामिल किया जाय और लिखा जाय 'भारत एक सेक्युलर, फेडरलिस्ट और सोशलिस्ट, संघ गणराज्य होगा।' हालांकि धर्म निरपेक्षता (सेक्लुयरिज्म) की मूल भावना को संविधान सभा ने स्वीकार तो किया लेकिन उसे प्रस्तावना में लिखित रूप से जगह नहीं दी। और करीब 25 साल बाद इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने 42 वें संविधान संशोधन के साथ धर्म निरपेक्ष (सेक्युलर) शब्द को संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया।
उस वक्त संविधान सभा ने क्यों नहीं शामिल किया
6 दिसंबर 1948 को प्रोफेसर के.टी.शाह के प्रस्ताव पर बहस के दौरान संविधान सभा के सदस्य लोकनाथ मिश्रा ने कहा 'हमें यह बार-बार कहा गया है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष राज्य होंगे। मैंने इस धर्मनिरपेक्षता को इस अर्थ में स्वीकार किया कि हमारा राज्य धर्म से अलग रहेगा,क्या हम वास्तव में मानते हैं कि धर्म को जीवन से अलग किया जा सकता है, या यह हमारा विश्वास है कि कई धर्मों के बीच हम यह तय नहीं कर सकते कि किसे स्वीकार किया जाए? यदि धर्म हमारे राज्य के अधिकार से परे है, तो आइए हम स्पष्ट रूप से ऐसा कहें और धर्म से संबंधित अधिकारों के सभी संदर्भों को हटा दें।'
डॉ भीम राव अंबेडकर ने क्या कहा- श्रीमान्, मुझे खेद है कि मैं प्रो के.टी.शाह के संशोधन को स्वीकार नहीं कर सकता। संविधान केवल राज्य के विभिन्न अंगों के कार्य को रेग्युलेट करने के उद्देश्य से बनाया गया एक सिस्टम है। यह कोई ऐसा सिस्टम नहीं है जिसके द्वारा विशेष सदस्यों या विशेष दलों को ऑफिस में स्थापित किया जाता है। राज्य की नीति क्या होनी चाहिए, समाज को उसके सामाजिक और आर्थिक पक्ष में कैसे संगठित किया जाना चाहिए, यह ऐसे मामले हैं जो समय और परिस्थितियों के अनुसार लोगों को स्वयं तय करने होंगे। इसे संविधान में ही निर्धारित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह लोकतंत्र को पूरी तरह से नष्ट कर रहा है।
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने क्या कहा- धर्मनिरपेक्ष राज्य के लिए एक और अच्छा शब्द है। मैं पूरी विनम्रता के साथ उन सज्जनों से कहता हूं जो इस शब्द का उपयोग करने से पहले किसी शब्दकोश का उद्धहरण लेते हैं। सेक्युलर शब्द का बहुत महत्व है, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन, इसे सभी संदर्भों में लाया जाता है, यह कहकर कि हम एक धर्मनिरपेक्ष राज्य हैं, हमने आश्चर्यजनक रूप से कुछ उदार काम किया है, जैसे कि बाकी दुनिया को अपनी जेब से कुछ दिया है। हमने केवल वही किया है जो दुनिया के बहुत कम पथभ्रष्ट और पिछड़े देशों को छोड़कर हर देश करता है। आइए हम उस शब्द का इस अर्थ में उल्लेख न करें कि हमने कोई बहुत शक्तिशाली काम किया है।
इसके बाद संविधान सभा ने के.टी.शाह के प्रस्ताव को सभा ने पारित कर दिया था।
इंडिरा गांधी सरकार ने 25 साल बाद जोड़ा
संविधान सभा की विचारधारा के अलग आपातकाल के दौरान 1976 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने 42 वें संविधान संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी (सोशलिस्ट), धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) शब्द जोड़े गए। और भारत 'संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य' से 'संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य' बन गया।
संविधान सभी में हुई बहस को विस्तार के साथ यहां पढ़ा जा सकता है..
https://eparlib.nic.in/bitstream/123456789/763023/1/cad_15-11-1948.pdf