Political importance of Ayodhya: प्रभु श्री राम की अयोध्या नगरी आज चर्चा के केंद्र में है। ना केवल भारतवर्ष अपितु पूरे विश्व में अयोध्या की चर्चा हो रही है। मनु महाराज ने अयोध्या को बसाया था। मनु महाराज के ही सबसे बड़े पुत्र इक्ष्वाकु के वंश में भगवान श्रीराम ने अवतार लेकर धरती मां को धन्य किया थाप्रभु श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप नए भारत के निर्माण के एक नए युग का आरम्भ हो रहा है। युग जिसमें नवनिर्माण होगा, युग जिसमें नवोन्मेष की चारित्रिक सुदृढ़ता होगी।
सकल आस्था के प्रतिमान भगवान रघुनंदन की जन्मस्थली पर भव्य और दिव्य मंदिर की स्थापना की शुभ घड़ी आ गई है। यही वजह है कि हर तरफ श्रीराम की जय जयकार और अयोध्या की चर्चा हो रही है। अयोध्या के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें बहुत रोचकता देखने को मिलती है। अयोध्या मात्र एक नगर नहीं है। अयोध्या भूत, वर्तमान एवं भविष्य सभी में इस धरा पर धर्म का केंद्र रही है। अयोध्या जीवन है, अयोध्या सभ्यता है, एवं संस्कृति है।
सरयू नदी के किनारे बसी भगवान राम की नगरी अयोध्या को जिले का नाम साल 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिया था। उससे पहले यह फैजाबाद जिले का हिस्सा थी। फैजाबाद लोकसभा सीट थी जिसके अंतर्गत अयोध्या विधानसभा आती थी। अयोध्या विधानसभा 1967 में वजूद में आई थी। इससे पहले अयोध्या नगरी फैजाबाद सदर विधानसभा का हिस्सा हुआ करती थी। भाजपा के वेदप्रकाश गुप्ता वर्तमान में यहां से विधायक हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने हमेशा अपने एजेंडे में भगवान राम को और राम मंदिर को रखा है और लोग समझते होंगे कि इस वजह से यहां भाजपा को जीत मिलती रही होगी। लेकिन आपको बता दें कि अयोध्या ने लेफ्ट से लेकर राइट तक हर पार्टी को विधायक बनाने का मौका दिया है। 1967 के चुनाव में अयोध्या सीट से जनसंघ के बृजकिशोर अग्रवाल ने जीत दर्ज की थी।
1969 में यह सीट कांग्रेस के विश्वनाथ कपूर के हाथ लगी। 1974 में जनसंघ के वेद प्रकाश अग्रवाल जीते। 1977 में जनता पार्टी से जयशंकर पांडेय यहां से विधायक बने और 1980 में कांग्रेस से निर्मल खत्री यहां से जीते।
उसके बाद 1985 में कांग्रेस के सुरेंद्र प्रताप सिंह, 1989 में जनता दल के जयशंकर पांडेय, 1991 से लेकर में 2007 तक लगातार 5 बार बीजेपी से लल्लू सिंह विधायक बने। 2012 में यहां से पहली बार सपा के तेजनारायण पांडेय विधायक बने और 2017 में एक बाद फिर बीजेपी यहां से चुनाव जीती। एक तरह से देखें तो राम मंदिर आंदोलन के बाद बीजेपी यहां से केवल साल 2012 में ही हारी।