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Swami Vivekanand Death Anniversary: जब स्वामी विवेकानंद बोले, शादी तो संभव नहीं, मैं आपका बेटा बन जाता हूं

Updated Jul 04, 2021 | 06:30 IST

119 साल पहले स्वामी विवेकानंद इस नश्वर संसार को छोड़ कर चले गए। लेकिन अपनी 31 साल की जिंदगी में देश और दुनिया को जिन विचारों को दे गए वो आज भी प्रासंगिक हैं।

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चार जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद का हुआ था निधन
मुख्य बातें
  • 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद का हुआ था निधन
  • महज 31 साल में देश और दुनिया के बहुमूल्य संदेश दिए
  • स्वामी विवेकानंद के विचार आज भी प्रासंगिक

19वीं सदी में नरेंद्र नाथ के रूप में एक ऐसी शख्सित ने भारतीय भूधरा पर जन्म लिया जो इतिहास रचने के लिए ही बना था। महज 31 साल की उम्र में उन्होंने वैचारिक तौर क्रांति लाई जिस समय भारत अंग्रेजों गुलामी में था। नरेंद्र नाथ से विवेकानंद बनने के क्रम में उन्होंने वैचारिक फलक को विस्तार दिया जिसे दुनिया की चारों ओर मान्यता मिली है। पीएम नरेंद्र मोदी अक्सर अपने भाषणों में स्वामी जी के विचारों की जिक्र करते हैं। स्वामी विवेकानंद के बारे में कहा जाता है कि जिस किसी भी शख्स से वो मिले उसे अपना बना लिया। 

शादी की जरूरत नहीं अपना बेटा बना लो
एक विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद के करीब आकर बोली कि वो उनसे शादी करना चाहती है। इस तरह के आग्रह पर विवेकानंद बोले कि आखिर मुझसे ही क्यों। प जानती नहीं की मैं एक सन्यासी हूं? औरत बोली कि मैं आपके जैसा ही गौरवशाली, सुशील और तेजोमयी पुत्र चाहती हूं और इसकी संभावना तभी है जब आप मुझसे विवाह करें।विवेकानंद बोले कि हमारी शादी तो संभव नहीं है। लेकिन एकउ उपाय है आज से मैं ही आपका पुत्र बन जाता हूं, आप मेरी मां बन जाओ आपको मेरे रूप में मेरे जैसा बेटा मिल जायेगा.औरत विवेकानंद के चरणों में गिर गयी और बोली की आप साक्षात् ईश्वर के रूप है। .

आप का चरित्र दर्जी और मेरा चरित्र मेरी संस्कृति करती है
इसी तरह  स्वामी विवेकानन्द  विदेश गए तो उन्हें भगवा वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा, - आपका बाकी सामान कहां है ? स्वामी जी बोले कि बस मेरे पास इतना ही सामान है, इस तरह के जवाब पर कुछ लोगों ने मजा लेते हुए कहा कि यह कैसी संस्कृति है आपकी तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है। कोट पतलून जैसा कुछ भी पहनावा नहीं है ?इस पर स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराए और बोले कि हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है। आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते है। जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है.

मातृ भाषा का सम्मान जरूरी
एक बार स्वामी विवेकानंद विदेश गए जहां उनके स्वागत के लिए कई लोग आये हुए थे उन लोगों ने स्वामी विवेकानंद की तरफ हाथ मिलाने के लिए हाथ बढाया और इंग्लिश में हेलो कहा जिसके जवाब में स्वामी जी ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते कह कि उन लोगो को लगा की शायद स्वामी जी को अंग्रेजी नहीं आती है तो उन लोगो में से एक ने हिंदी में पूछा आप कैसे हैं?? तब स्वामी जी ने कहा  कि आई एम फाइन थैंक यू।उन लोगो को बड़ा ही आश्चर्य हुआ उन्होंने स्वामी जी से पूछा की जब हमने आपसे इंग्लिश में बात की तो आपने हिंदी में उत्तर दिया और जब हमने हिंदी में पूछा तो आपने इंग्लिश में कहा इसका क्या कारण है।

इस सवाल के जवाब में स्वामी जी ने कहा कि जब आप अपनी मां का सम्मान कर रहे थे तब मैं अपनी मां का सम्मान कर रहा था और जब आपने मेरी मां का सम्मान किया तब मैंने आपकी मां का सम्मान किया। यदि किसी भी भाई बहन को इंग्लिश बोलना या लिखना नहीं आता है तो उन्हें किसी के भी सामने शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं है बल्कि शर्मिंदा तो उन्हें होना चाहिए जिन्हें हिंदी नहीं आती है क्योंकि हिंदी ही हमारी राष्ट्र भाषा है हमें तो इस बात पर गर्व होना चाहिए। 

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