- अखाड़ा परिषद में पड़ी फूट, दो गुटों में हुआ विभाजित
- सात गुटों ने अपने-अपने अध्यक्षों का किया अलग से चुनाव
- पिछले महीने हुई महंत नरेंद्र गिरी की मौत के बाद अखाड़ा परिषद में नहीं चल रहा है सबकुछ ठीक
हरिद्वार: पिछले महीने यानि सितंबर माह के दौरान महंत नरेंद्र गिरि के असामयिक निधन के बाद अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (Akhil Bharatiya Akhara Parishad) का कामकाज पहले जैसा नहीं रहा। उनकी कथित आत्महत्या के बाद अब प्रमुख हिंदू निकाय में फूट पड़ गई है जिसके परिणामस्वरूप 13 में से सात अखाड़ों ने अपने अलग-अलग पदाधिकारी चुने हैं, जिनमें अध्यक्ष और महासचिव शामिल हैं। बड़ा घटनाक्रम गुरुवार को हरिद्वार में हुआ।
25 अक्टूबर को होनी है बैठक
महंत गिरी के उत्तराधिकारी का चुनाव करने के लिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (एबीएपी) की 25 अक्टूबर (सोमवार) को प्रयागराज में बैठक होने वाली है जिसमें महंत नरेंद्र गिरि का उत्तराधिकारी चुना जाएगा, जिनका पिछले महीने निधन हो गया था। सूत्रों के अनुसार, हरिद्वार में हुई बैठक की अध्यक्षता निर्मल अखाड़े के एबीएपी उपाध्यक्ष देवेंद्र सिंह शास्त्री ने की, जिन्होंने महानिरवाणी अखाड़े के महंत रवींद्र पुरी को अध्यक्ष और निर्मोही अखाड़े के महंत राजेंद्र दास को महासचिव बनाने की घोषणा की।
दो गुटों में विभाजित
समाचार एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक, इस आश्चर्यजनक कदम ने 13 सदस्यीय अखाड़ा परिषद को प्रभावी रूप से दो समूहों में विभाजित कर दिया है। पहले समूह में सात अखाड़े निर्मोही, निवार्णी, दिगंबर, महानिरवाणी, अटल, बड़ा उदासिन और निर्मल शामिल हैं। दूसरे समूह में छह अखाड़े निरंजनी, जूना, आवाहन, आनंद, अग्नि और नया उदासिन हैं। दिगंबर अनी अखाड़ा के बाबा हठयोगी असंतुष्टों के पहले समूह का हिस्सा हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्होंने अपने दम पर पदाधिकारियों का चुनाव करने का फैसला किया क्योंकि उन्हें 'एबीएपी निकाय में कम प्रतिनिधित्व दिया गया और अक्सर चुनावों में उनकी उपेक्षा की जाती थी।'
काफी समय से चल रही है तनातनी
सात अखाड़ों के समूह के संत भी चाहते थे कि एबीएपी के मौजूदा महासचिव महंत हरि गिरि को बदला जाए। इस बीच, महंत हरि गिरि ने पदाधिकारियों की घोषणा को 'असंवैधानिक' करार दिया और किसी भी परिस्थिति में वैध नहीं बताया। दिलचस्प बात यह है कि एबीएपी परंपरा के अनुसार, अगर किसी अध्यक्ष की उसके कार्यकाल में मौत हो जाती है, तो उसका उत्तराधिकारी उसके अपने अखाड़े से ही चुना जा सकता है। प्रयागराज में रहस्यमय परिस्थितियों में मरने वाले नरेंद्र गिरि निरंजनी अखाड़े के मुखिया थे। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से अखाड़ों के बीच तनातनी चल रही है।