- धर्म संसद में दिए गए बयान 'हिंदुओं के शब्द’ नहीं : भागवत
- भागवत ने कहा कि अगर मैं कभी कुछ गुस्से में कहता हूं, तो यह हिंदुत्व नहीं है
- एक संस्था के स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में बोले भागवत
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि हाल ही में 'धर्म संसद' नामक एक कार्यक्रम में दिए गए कुछ बयान, जो एक विवाद को जन्म देते हैं वे "हिंदू शब्द" नहीं थे और हिंदुत्व का पालन करने वाले कभी भी उनसे सहमत नहीं होंगे। संघ प्रमुख लोकमत मीडिया समूह द्वारा अपने लोकमत नागपुर संस्करण की स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित एक व्याख्यान श्रृंखला में 'हिंदुत्व और राष्ट्रीय एकता' विषय पर बोल रहे थे।
धर्म संसद के बयानों की आलोचना
उन्होंने कहा, 'धर्म संसद से निकले बयान हिंदुओं के शब्द, काम या दिल नहीं हैं। अगर मैं कभी-कभी गुस्से में कुछ कहता हूं, तो वह हिंदुत्व नहीं है। आरएसएस या हिंदुत्व का पालन करने वाले इस पर विश्वास नहीं करते हैं। संघ लोगों को विभाजित नहीं करता है, पर मतभेदों को दूर करता है, हम इस हिंदुत्व से चलते हैं। यहां तक कि वीर सावरकर ने भी कहा था कि अगर हिंदू समुदाय एकजुट और संगठित हो जाता है, तो वह भगवद् गीता के बारे में बोलेगा न कि किसी को खत्म करने या नुकसान पहुंचाने के बारे में।'
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हिंदू राष्ट्र पर कही ये बात
क्या देश 'हिंदू राष्ट्र' बनने की राह पर है? इसके जवाब में भागवत ने कहा, 'यह हिंदू राष्ट्र बनाने की बात नहीं है। (चाहे) आप इसे स्वीकार करते हैं या नहीं। हमारे संविधान का प्रतिनिधित्व करने वाला लोकाचार हिंदुत्व था, जो राष्ट्रीय एकीकरण के समान था। राष्ट्रीय एकता की अवधारणा को एकरूपता की आवश्यकता नहीं है क्योंकि अलग होने का मतलब अलग होना नहीं है।' आरएसएस प्रमुख जाहिर तौर पर छत्तीसगढ़ में आयोजित धर्म संसद और पिछले साल दिसंबर में उत्तराखंड के हरिद्वार में आयोजित 'धर्म संसद' की तरफ इशारा कर रहे थे।
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