- समिति के चारों सदस्य कृषि कानूनों के पक्षधर: कांग्रेस
- उच्चतम न्यायालय की समिति के सदस्य सरकार समर्थक: किसान संगठन
- कानूनों को रद्द करने की बजाए उनमें संशोधन होना चाहिए: समिति के सदस्य घनवट
नई दिल्ली: 3 नए कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसानों के बीच उठ जारी तनाव को कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 4 सदस्यों की समिति का गठन किया है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक तीनों कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी है। वहीं आंदोलनकारी किसानों ने समिति के गठन पर सवाल उठाए हैं। किसानों का कहना है कि कमेटी में शामिल सभी चारों सदस्य नए कृषि कानून के पैरोकार हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई इस समिति में कृषि अर्थशास्त्री एवं कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी, कृषि विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद कुमार जोशी के अलावा दो किसान नेता भी शामिल हैं। समिति में शामिल किसान नेताओं में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सदस्य भूपिंदर सिंह मान और महाराष्ट्र के किसान संगठन शेतकरी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवट शामिल हैं।
पद्म अलंकरण से सम्मानित अशोक गुलाटी जानेमाने कृषि अर्थशास्त्री हैं। डॉ. जोशी कृषि अनुसंधान के क्षेत्र के जाने-पहचाने नाम हैं। भूपिंदर सिंह मान और अनिल घनवट कृषि सुधारों के पक्षधर रहे हैं।
तीनों कानूनों के समर्थक हैं समिति के सदस्य: किसान
समिति के सभी सदस्यों पर सवाल उठाते हुए किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित समिति के सदस्य विश्वसनीय नहीं हैं क्योंकि वे लिखते रहे हैं कि कृषि कानून किसानों के हित में है। हम सिद्धांत तौर पर समिति के खिलाफ हैं। प्रदर्शन से ध्यान भटकाने के लिए यह सरकार का तरीका है।' भारतीय किसान संघ के नेता राकेश टिकैत ने आरोप लगाए कि शीर्ष अदालत की तरफ से गठित समिति के सदस्य खुली बाजार व्यवस्था या तीन कृषि कानूनों के समर्थक हैं। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने एक बयान में कहा, 'यह स्पष्ट है कि अदालत को विभिन्न ताकतों ने गुमराह किया है और यहां तक कि समिति के गठन में भी उसे गुमराम किया गया है। ये लोग तीनों कानूनों का समर्थन करने के लिए जाने जाते हैं और इसकी सक्रियता से वकालत की है।'
इसलिए उठ रहे सदस्यों पर सवाल
वहीं कांग्रेस ने भी समिति के सदस्यों पर सवाल उठाते हुए कहा कि समिति के चारों सदस्य 'काले कृषि कानूनों के पक्षधर' हैं और इस समिति से किसानों को न्याय नहीं मिल सकता। कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई ने गुलाटी और जोशी की ओर से लिखे गए लेख तथा घनवत और मान के हवाले से छपी खबरों को टैग किया जिनमें ये लोग कानूनों को रद्द करने के खिलाफ अपना पक्ष रखते नजर आ रहे हैं। घनवट ने मंगलवार को कहा कि इन कानूनों के माध्यम से उनकी संगठन की पुरानी मांगों को आंशिक रूप से लागू किया गया है और ऐसे में उनका प्रयास होगा कि कानूनों में सुधार हो। हालांकि, उन्होंने अनुबंध आधारित खेती समेत कई सुधारों का समर्थन किया। इसके अलावा गत 14 दिसंबर को एक बयान जारी कर कृषि मंत्रालय ने कहा था कि भूपिंदर सिंह मान की अगुवाई में किसान नेताओं ने कानूनों के समर्थन में ज्ञापन दिया है।
'किसानों को विश्वास दिलाना पड़ेगा कि MSP और APMC रहेगा'
समिति के सदस्य अनिल घनवट ने कहा है, 'ये आंदोलन कहीं रूकना चाहिए और किसानों के हित में एक कानून बनना चाहिए। कानूनों को रद्द करने की बजाए उनमें संशोधन होना चाहिए। आंदोलनकारी किसान नेताओं को कमेटी के साथ कार्य करके अपनी बात रखनी चाहिए। पहले किसानों का कहना सुनना पड़ेगा, अगर उनकी कोई गलतफहमी है तो वो दूर करेंगे। किसानों को विश्वास दिलाना पड़ेगा कि MSP और APMC रहेगा। जो कुछ भी होगा वो पूरे देश के किसानों के हित में होगा। जब तक सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस हमारे पास नहीं आ जाती हैं तब तक हम काम शुरू नहीं कर सकते हैं। गाइडलाइंस आने के बाद हम सब किसान नेताओं से मिलकर उनकी राय जानेंगे कि उनको क्या चाहिए और वो कैसे किया जा सकता है।