- केंद्र सरकार की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट ने की थी तल्ख टिप्पणी
- पिछले 47 दिन से दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं किसान
- कृषि कानूनों को पूरी तरह से खत्म करने की मांग पर अड़े हुए हैं किसान
नई दिल्ली। कृषि कानुनों नों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद सीजेआई एस ए बोबड़े ने कहा कि वो अगले आदेश तक कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाने का आदेश जारी कर रहे हैं। इसके साथ ही चार सदस्यों की कमेटी का गठन भी किया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो कमेटी बनाई गई है उसमें भारतीय किसान यूनियन के भूपिंदर सिंह मान हैं, शेतकारी संगठन के अनिल घनवंत, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के प्रमोद के जोशी शामिल हैं। इन सबके बीच किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि कानून की वापसी तक घर वापसी नहीं होगी।
ट्रैक्टर रैली पर अब सबकी निगाह
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि 26 जनवरी को बड़े पैमाने पर ट्रैक्टर रैली आयोजित करने की योजना है। इस जवाब पर अदालत ने कहा कि कानून व्यवस्था आपकी परेशानी है, अदालत ने कहा कि वो सिर्फ प्रतिबंधित संगठन के बारे में पूछ रहे हैं।इस पर एजी ने कहा कि वो इस बारे में हलफनामा दायर करेंगे। किसानों के वकील ने कहा कि वो 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली नहीं निकालेंगे। लेकिन किसानों का कहना है कि वो वैसा काम करेंगे। हमने इस संबंध में अर्जी लगाई है, इस विषय पर अदालत की तरफ से नोटिस जारी किया गया।
सीजेआई ने क्या कहा
अब हम इस बात पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि जीवन और संपत्ति के विनाश को कैसे रोका जाए।हम कानून को निलंबित करने की योजना बनाते हैं।हम एक समिति बनाना चाहते हैं। यह हमें एक रिपोर्ट सौंपेगा। समस्या के समाधान में रुचि रखने वालों को समिति के समक्ष जाना चाहिए।
हमें बताया गया है कि कि 400 किसान संगठन हैं। जिस तरह से किसानों के संगठन अलग अलग हैं उसी तरह से राय भी जुदा है। सभी पक्षों को समझने के लिए समिति बना रहे हैं कि वास्तविक समस्या क्या है। बार के सदस्यों से न्यायिक प्रक्रिया के प्रति कुछ निष्ठा दिखाने की उम्मीद की जाती है। यह राजनीति का मैदान नहीं बल्कि अदालत हैदवे ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि उनके ग्राहक 26 जनवरी को एक ट्रैक्टर रैली नहीं निकालेंगे। यह वही है जो बातचीत के लिए सही माहौल बनाने की उम्मीद है ... इस तरह के सहयोग की उम्मीद है।
सीजेआई ने कहा कि कोर्ट कानूनों को सस्पेंड करने के हक में है। लेकिन अनिश्चित काल के लिए नहीं। कुछ इस तरह का काम होना चाहिए जिससे पता चले कि कुछ हो रहा है। अब पूरा ध्यान कमेटी बनाए जाने पर होना चाहिए। कमेटी के गठन के दौरान सभी पक्षों का होना जरूरी है। इर पर हरीश साल्वे ने कहा कि यह एक अच्छा कदम होगा। इसके बाद सीजेआई ने पूछा कि दवे कहां गए। उन्होंने कहा था कि वो किसानों से मिलकर वापस आएगें।
दवे और फुल्का की गैरमौजूदगी का मुद्दा उठा
सीजेआई ने कहा कि यह बड़े आश्चर्य की बात है कि दवे और फुल्का इस सुनवाई में नहीं हैं। साल्वे ने कहा कि इस तरह का स्पष्ट आदेश होना चाहिए कि 26 जनवरी को किसी तरह की बाधा नहीं आएगी। इस सवाल के जवाब में सीजेआई ने कहा कि दवे ने इस संबंध में भरोसा दिया है। सीजेआई ने कहा कि कांट्रैक्ट फार्मिंग में इस तरह की व्यवस्था होनी चाहिए कि किसानों की जमीन पर कोई दूसरा कब्जा ना कर सके। इस सवाल पर साल्वे ने कहा कि कृषि कानूनों में इस तरह की व्यवस्था नहीं है।
जब सीजेआई का रुख हुआ सख्त
किसानों के वकील एम एल शर्मा: किसानों की शिकायत है कि पीएम किसानों से बात नहीं कर रहे हैं।
सीजेआई: हम पीएम से कुछ भी करने के लिए कहने के लिए तैयार नहीं हैं।हम एक समिति बना रहे हैं। यह न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा होगा। हम इसकी रचना तय करेंगे।हम कानूनों को निलंबित करने के लिए तैयार हैं, लेकिन अनिश्चित काल के लिए नहीं..क्योंकि गतिरोध को निपटाने के लिए कुछ गतिविधि होनी चाहिए।अब ध्यान समिति पर होना चाहिए।सभी पक्ष समिति के समक्ष अपना मामला प्रस्तुत करें
हरीश साल्वे: जबकि अदालत समिति का गठन करने जा रही है यह एक स्वागत योग्य कदम है
सॉलिसिटर जनरल: कृषि मंत्री वार्ता की अध्यक्षता कर रहे हैं।
एजी ने क्या कहा
अगर अदालत इस विषय पर समिति बनाती है तो खुशी की बात है। क्या किसानों ने दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए इजाजत है। इस पर किसानों के वकील ने कहा कि उन्हें दिल्ली में आने की इजाजत नहीं दी गई। लेकिन अदालत ने कहा कि कोई भी शख्स इजाजत लेने के लिए आ सकता था। सीजेआई ने वैंकुवर आधारित संगठनों के समर्थन के बारे में अटॉर्नी जवरल से सवाल किया।
क्या कहते हैं जानकार
कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी गई है। हाालांकि यह रोक अनिश्चित काल के लिए नहीं है। इसके साथ ही समिति भी गठित की गई है तो सवाल उठता है कि क्या इसे मोदी सरकार की हार मानी जाए। इस सवाल के बारे में जानकार कहते हैं कि जब नौवें दौर की बातचीत हुई तो सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट जाने का मुद्दा उठा। वो एक ऐसा बिंदु था जिसके बाद ऐसा लगने लगा कि कम से कम इस विषय पर अदालत की तरफ से कुछ फैसला आता है तो सरकार किसानों के एक पक्ष को समझाने में कामयाब होगी कि वो तो चाहते ही थे कि एक बीच का रास्ता निकले और वो समिति बनाए जाने का था।