- सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं में देशद्रोह कानून को चुनौती दी है
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अंग्रेजों द्वारा और हमारी आजादी का गला घोंटने के लिए किया गया इस कानून का इस्तेमाल
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने इसे "भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाने वाला औपनिवेशिक कानून" करार देते हुए केंद्र सरकार से सवाल भी किया और कहा कि इस कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है। कोर्ट ने कहा, 'राजद्रोह कानून एक औपनिवेशिक कानून है और इसका इस्तेमाल अंग्रेजों द्वारा और हमारी आजादी का गला घोंटने के लिए किया गया था। इसका इस्तेमाल महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ किया गया था।'
केंद्र से सवाल
यह कहते हुए कि कोर्ट देशद्रोह कानून की वैधता की जांच करेगा, कोर्ट ने इस पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया मांगी, शीर्ष अदालत ने पूछा, 'क्या आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून की जरूरत है?' अदालत ने कहा कि कई याचिकाओं में देशद्रोह कानून को चुनौती दी है और सभी पर एक साथ सुनवाई होगी। अदालत ने कहा कि हमारी चिंता कानून का दुरुपयोग पर है। दरअसल कोर्ट ने राजद्रोह संबंधी ‘औपनिवेशिक काल’ के दंडात्मक कानून के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की और प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ की याचिका समेत याचिकाओं के समूह पर केंद्र से जवाब मांगा।
कानून का हो रहा है दुरुपयोग- कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजद्रोह कानून का मकसद स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और अन्य को चुप कराने के लिए किया था। इस बीच, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने प्रावधान की वैधता का बचाव करते हुए कहा कि राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश बनाए जा सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उसकी मुख्य चिंता ‘‘कानून का दुरुपयोग’’ है और उसने पुराने कानूनों को निरस्त कर रहे केंद्र से सवाल किया कि वह इस प्रावधान को समाप्त क्यों नहीं कर रहा।