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नई दिल्ली: अयोध्या में विवादित राम-जन्मभूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में समूची 2.77 एकड़ जमीन को सर्वसम्मति से राम लला विराजमान को देने का फैसला सुनाया, जिसके मुख्य अंश हैं :
- विवादित जमीन का हक राम लला विराजमान को दिया जायेगा, जो मामले में तीन पक्षकारों में से एक है।
- जमीन केंद्र सरकार के रिसीवर के पास ही रहेगी।
- राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार विवादित भूमि सरकारी जमीन है।
- उच्चतम न्यायालय ने मस्जिद निर्माण के लिये मुस्लिमों को वैकल्पिक भूखंड आवंटित करने का निर्देश दिया।
- प्रमुख स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिये सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ उपयुक्त जमीन दी जाये।
- केंद्र तीन महीने के भीतर योजना बनाये और मंदिर निर्माण के लिये ट्रस्ट की स्थापना करे।
- न्यायालय ने समूची विवादित जमीन पर नियंत्रण का अनुरोध वाली निर्मोही अखाड़ा की याचिका खारिज कर दी।
- केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार अधिकारियों द्वारा भविष्य की कार्रवाई पर एकसाथ नजर रख सकते हैं।
- न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया कि अगर सरकार को ठीक लगे तो वह निर्मोही अखाड़ा को ट्रस्ट में प्रतिनिधित्व दे सकती है।
- न्यायालय ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा का मुकदमा कानून में निर्धारित समयसीमा के बाहर था, जो कोई शेबैती या राम लला का उपासक नहीं था .राम जन्मभूमि कोई कानूनी व्यक्ति नहीं है।
- बाबरी मस्जिद को किसी खाली जमीन पर नहीं बनाया गया था, छह दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद ढहाया गया।
- न्यायालय ने कहा कि पुरातात्विक साक्ष्य को एक विचार के तौर पर पेश करना, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के लिये बहुत नुकसानदेह होगा।
- न्यायालय ने कहा कि तथ्य यह है कि ढहाये गये ढांचे के नीचे एक मंदिर था जिसे एएसआई ने प्रमाणित किया है।
- नीचे का ढांचा कोई इस्लामिक ढांचा नहीं था।
- एएसआई ने हालांकि यह साबित नहीं किया कि मस्जिद निर्माण के लिये मंदिर को ढहाया गया।
- हिंदू इस स्थान को भगवान राम का जन्मस्थल मानते हैं, वहीं मुस्लिम भी विवादित स्थल के बारे में यही कहते हैं।
- हिंदुओं की आस्था कि भगवान राम का जन्म इसी विवादित स्थल पर हुआ था, यह अविवादित है।
- सीता रसोई, राम चबूतरा और भंडार गृह की मौजूदगी स्थान के धार्मिक तथ्य के गवाह हैं।
- सबूत बताते हैं कि हिंदुओं का कब्जा बाहरी अहाते पर था।
- स्थान के बाहरी अहाते पर हिंदुओं की पूजा का व्यापक स्वरूप है।
- सबूत बताते हैं कि मुस्लिम मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करते थे जो यह संकेत है कि उन्होंने अपना मालिकाना हक नहीं खोया।
- मस्जिद में नमाज अदा करने में बाधा के बावजूद सबूत यह भी बताते हैं कि वहां नमाज होती रही।
- 1856-1857 में उस जगह पर लोहे की रेलिंग बनायी गयी, जो यह बताता है कि उस स्थान पर हिंदुओं ने पूजा करना जारी रखा।
- आस्था और धर्म के आधार पर मालिका हक को मान्यता नहीं मिल सकती है, ये ये विवाद निपटाने के लिये संकेत की तरह हैं।
- विवादित स्थल के हक में मुस्लिमों ने कोई सबूत पेश नहीं किया।
- मुस्लिमों का स्थल के बाहरी अहाते पर कब्जा नहीं था।
- उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड अयोध्या विवाद में अपना मामला साबित नहीं कर पाये हैं।
- इसके विपरीत, हिंदुओं ने अपना मामला रखा कि बाहरी अहाते पर उनका कब्जा था।
- बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुंचाना कानून का उल्लंघन है।
- फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए अब्दुल नजीर मौजूद थे।
- सुबह साढ़े 10 बजे से फैसला सुनाना शुरू हुआ, जो करीब 45 मिनट तक चला।
- 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में 14 याचिकाएं दायर की गयीं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चार दीवानी मुकदमों में का निपटारा करते हुए कहा कि अयोध्या में 2.77 एकड़ जमीन तीनों पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दी जाये।
- शुरू में निचली अदालत में पांच मुकदमे दायर किये गये। पहला मुकदमा 1950 में ‘‘राम लला’’ के उपासक गोपाल सिंह विशारद ने दायर किया था, जिसमें विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार दिये जाने का अनुरोध किया गया था।
- उसी साल परमहंस रामचंद्र दास ने भी पूजा करने का अधिकार देने और अब के ढहाये गये ढांचे के मुख्य गुंबद के नीचे मूर्ति की स्थापना के लिये मुकदमा दायर किया।