नई दिल्ली: अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट पर क्या फैसला आएगा इसपर देश ही नहीं बल्कि दुनिया के लोगों की भी निगाहें लगी हुईं थीं और शनिवार की सुबह जैसे-जैसे सुबह 10:30 बजे फैसले की घड़ी नजदीक आ रही थी लोगों की धड़कनें बढ़ रही थीं कि क्या और कैसा फैसला आता है। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली संवैधानिक पीठ ने ये फैसला सुनाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन राम लला को देने का फैसला सुनाया है साथ ही मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक जमीन मुहैया कराने का आदेश दिया। कोर्ट ने 2010 के हाई कोर्ट के फैसले को गलत ठहराते हुए कहा है कि विवादित जमीन को तीन हिस्से में बांटने का फैसला गलत था। कोर्ट ने विवादित जमीन राम जन्मभूमि ट्रस्ट को देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने मस्जिद के निर्माण के लिए मुस्लिमों को पांच एकड़ जमीन देने की बात कही है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हिंदू अयोध्या को भगवान राम की जन्मभूमि मानते हैं। इस स्थान से उनकी धार्मिक भावनाएं जुड़ी हैं। मुस्लिमों का कहना है कि यहां बाबरी मस्जिद थी। अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ, हिंदुओं की यह आस्था अविवादित है।' शीर्ष अदालत ने कहा, 'इस बात के साक्ष्य हैं कि हिंदू राम चबूतरा, सीता रसोई की पूजा अंग्रेजों के आने से पहले से करते आ रहे थे। साक्ष्य यह भी बताते हैं कि विवादित भूमि के बाहरी परिसर पर हिंदुओं का कब्जा था।' सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'टाइटिल पर फैसला मान्यता एवं विश्वास पर नहीं किया जा सकता। ऐतिहासिक साक्ष्य इस विश्वास का संकेत देते हैं कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है।'
अयोध्या पर फैसला देने वाली संवैधानिक पीठ में सीजेआई गोगोई, जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल रहे।अयोध्या केस में अंतिम फैसला देने से पहले कोर्ट ने फैसले का ऑपरेटिव पार्ट पढ़ा। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया गया है। साथ ही निर्मोही अखाड़ा के सेवादार होने के दावे को भी खारिज किया गया।
अखाड़ा ने जन्मभूमि के प्रबंधन की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू समुदाय की मान्यता एवं विश्वास है कि गुंबद के नीचे भगवान राम का जन्म हुआ। इसे खारिज नहीं किया जा सकता और आस्था व्यक्तिगत चीज है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि हम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं लेकिन हम संतुष्ट नहीं हैं। हम आगे क्या करना है, इस पर विचार करेंगे।
कौन हैं रामलला विराजमान
रामलला न तो कोई संस्था और न ही कोई ट्स्ट है। वो खुद भगवान राम के बालरूप हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें वैधानिक शख्सियत मानते हुए उन्हें 2.77 एकड़ विवादित जमीन का मालिकाना हक दे दिया। बता दें कि 22-23 दिसंबर 1949 को बाबरी मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के नीचे कमरे में मूर्तियों के प्रकट होने की बात सामने आई, हालांकि मुस्लिम पक्ष का कहना था कि मूर्तियां प्रकट नहीं हुई थीं बल्कि चोरी छिपे मूर्तियों को रखा गया था।
ये वहीं मूर्तियां थीं जो विवादित जमीन के बाहरी अहाते में रामचबूतरे पर विराजमान थीं और उनके लिए सीता रसोई में भोग बनता था। यहां यह भी जानना जरूरी है कि सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े के कब्जे में था।
22-23 दिसबंर को जब केंद्रीय गुंबद स्थित एक कमरे में रामलला की मूर्तियों को रखा गया तो 23 दिसंबर की सुबह ही इस संबंध में मुकदमा दर्ज हुआ और 6 दिन बाद 29 दिसंबर 1949 को उस जगह को कुर्क कर ताला लगा दिया गया। इन सब कवायद के बीच मूर्तियों के रखरखाव की जिम्मदारी तत्तकालीन नगरपालिका अध्यक्ष को दी गई थी।
यूपी सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड नहीं करेगा अपील
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी से जब पूछा गया कि क्या वो अदालत के फैसले के खिलाफ रिव्यू अपील करेंगे। इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि देखा जाएगा। लेकिन इस संबंध में यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का कहना है कि वो अदालत के फैसले का सम्मान करती है और फैसले के खिलाफ रिव्यू अपील नहीं दायर करेगी।
यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर फारूकी ने कहा कि बोर्ड का इस मुद्दे पर नजरिया साफ है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ बोर्ड क्यूरेटिव पिटीशन भी नहीं लगाएगा। अगर इस संबंध में किसी का बयान आता है तो वो उस शख्स का व्यक्तिगत नजरिया होगा। बोर्ड का उस शख्स या किसी संगठन से लेना देना नहीं होगा। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है उसके लिए वो शुक्रगुजार हैं।
अयोध्या में हिंदू और मुस्लिमों ने एक दूसरे को खिलाई मिठाई, पेश की सौहार्द की अनूठी मिसाल
रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद विवाद में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को प्रमुख पक्षकारों के साथ- साथ पूरे उत्तर प्रदेश ने बेहद सहज भाव से स्वीकार किया और फैसले के बाद हालात बिल्कुल सामान्य रहे। मामले के अहम पक्षकार रहे सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और इकबाल अंसारी ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हुए ऐलान किया कि वह इस फैसले को चुनौती नहीं देंगे।
फैसले के बाद की स्थितियों को लेकर जतायी जा रही तमाम आशंकाओं और अटकलों के विपरीत उत्तर प्रदेश में हालात बिल्कुल सामान्य रहे। शुरू में सड़कों पर सन्नाटा जरूर दिखा, मगर बाद में लोगों और वाहनों का आवागमन सामान्य रहा। अयोध्या में भी सौहार्दपूर्ण माहौल रहा और हिन्दू- मुस्लिम एक- दूसरे को मिठाई खिलाते नजर आये।
अयोध्या फैसले के बाद पीएम मोदी बोले- आइए न्यू इंडिया के निर्माण में जुटें
इस फैसले के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को संबोधित किया। पीएम मोदी ने कहा कि फैसला आने के बाद जिस प्रकार हर वर्ग, हर समुदाय और हर पंथ के लोगों सहित पूरे देश ने खुले दिल से इसे स्वीकार किया है, वो भारत की पुरातन संस्कृति, परंपराओं और सद्भाव की भावना को प्रतिबिंबित करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के पीछे दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई है। इसलिए, देश के न्यायधीश, न्यायालय और हमारी न्यायिक प्रणाली अभिनंदन के अधिकारी हैं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने करीब 130 साल से चले आ रहे इस अतिसंवेदनशील विवाद का पटाक्षेप कर दिया। इस विवाद ने देश के सामाजिक ताने बाने को बिगाड़ दिया था।