- अभिषेक रे ने अपने जीवन की सारी बचत एक बंजर पहाड़ी को खरीदने और उसे हरा भरा करने में लगा दिया।
- वन्यजीव अभ्यारण में बाघ के अलावा, चीतल, सांभर, हिरण, सियार, तेंदुए, जंगली बिल्ली, समेत अन्य हिमालय के वन्यजीव हैं।
- इस वन्यजीव से स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल रहा है।
Amazing Indians Awards 2022:अमेजिंग इंडियन्स 2022 में एनिमल वेलफेयर कैटेगरी का अवॉर्ड अभिषेक रे ने जीता है। 38 वर्षीय अभिषेक बॉलीवुड संगीतकार और सीताबनी वन्यजीव अभ्यारण्य के संस्थापक हैं। उन्होंने पिछले दो दशकों में ऐसा काम किया है कि जो कई अन्य लोग एक सदी में भी हासिल करने में सक्षम नहीं हुए होंगे।
पूरी कमाई जंगल बनाने में कर दिया खर्च
अभिषेक रे ने अपने जीवन की सारी बचत एक बंजर पहाड़ी को खरीदने और उसे हरा भरा करने में लगा दिया। बंजर इलाके में बड़ी संख्या में पेड़ लगाए गए, खरपतवारों को खत्म किया गया, मिट्टी को उपजाऊ बनाया गया, जल संचयन कर इसे एक जंगल के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।
पहला निजी वन्यजीव अभ्यारण
अभिषेक रे का मकसद इस बंजर पहाड़ पर वन्यजीवों को वापस लाना और स्थानीय समुदाय को वन्यजीव पर्यटन के माध्यम से स्थायी जीवन देना था। उनकी मेहनत तब सफल हुई जब एक बाघिन ने उनके जंगल में शावकों को जन्म दिया। इसके बाद सीताबनी वन्यजीव अभ्यारण्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जंगली बाघ और तेंदुए की उपस्थिति के साथ, दुनिया की पहली निजी वन्यजीव शरण स्थल के रूप में मान्यता दी गई।
600 से ज्यादा पेड़ की प्रजातियां
आज इस वन्यजीव अभ्यारण्य में बाघ के अलावा, चीतल, सांभर, हिरण, सियार, तेंदुए, जंगली बिल्ली, समेत अन्य हिमालय के वन्यजीव हैं। रिजर्व में हिरणों की 3 प्रजातियां, पक्षियों की 550 प्रजातियां और कई अन्य लुप्तप्राय वन्यजीव प्रजातियां हैं। इसके अलावा, अभिषेक ने 600 अलग अलग प्रजातियों के पेड़-पौधे लगाए हैं। जो इसे पक्षियों के लिए स्वर्ग बनाता है।
स्थानीय लोगों को रोजगार
अभिषेक के इस वन्यजीव से स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल रहा है। उन्होंने वन्यजीव संरक्षण पर्यटन के माध्यम से स्थानीय लोगों को वैकल्पिक राजस्व मॉडल प्रदान किया है। इनका मकसद है कि जो पर्यटक इस वन्यजीव में घूमने के लिए पहुंचे उन्हें भारत की वन्यजीव विविधता से अवगत कराया जाए। साथ ही उनमें जंगल का व्यावहारिक अनुभव और वनों को बचाने में आने वाली चुनौतियों के साथ संरक्षण जागरूकता पैदा करना।
यहां अभिषेक रे ने वर्षा जल संचयन के माध्यम से कई जलाशय बनाए हैं और भूमि को पानी के लिए आत्मनिर्भर बनाया है। वह स्थानीय उपभोग के लिए जड़ी-बूटी और जैविक सब्जियां भी उगाते हैं।