- एकनाथ शिंदे ने एक झटके में ठाकरे परिवार और शिव सेना के वजूद के हिला दिया है
- गावली की तरह शिव सेना के कम से कम 4-5 सांसद हैं जो शिंदे के साथ संपर्क में हैं।
- दल-बदल कानून से बचने के लिए शिंदे गुट में शामिल होने के लिए शिव सेना के 13 सांसदों की जरूरत पड़ेगी।
Maharashtra Political Crisis: एक कहावत है 'बंद मुट्ठी तो लाख की , खुल गई तो खाक की' , महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार के साथ इस समय यही हो रहा है। क्योंकि महाराष्ट्र की राजनीति में किंग मेकर रहे बाला साहेब ठाकरे परिवार के बेटे उद्धव ठाकरे ने जब ढाई साल पहले, किंग मेकर की जगह किंग बनने का रास्ता चुना तो उसी समय ही बंद मुट्ठी खुल गई थी। और जिस तरह से एकनाथ शिंदे ने एक झटके में ठाकरे परिवार और शिव सेना के वजूद को हिला दिया है, उससे तो उन्हें निकलने का रास्ता ही नहीं सूझ रहा है। हालात यह है कि इस्तीफे से पहले ही उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री का आवास छोड़ चुके हैं, और उनकी भावनात्मक अपील के बाद भी बगावत का सिलसिला रूकने की जगह बढ़ता जा रहा है। और यह आंच विधायकों से बढ़कर शिवसेना सांसदों तक पहुंच गई है।
भावना गवली के लेटर दे रहा है सबूत
अभी तक इस बात की ही चर्चा होती रही है कि बागी एकनाथ शिंदे के साथ कितने शिव सेना विधायक हैं। शिंदे का दावा है कि उनके पास 46 विधायकों का समर्थन है। इसमें से 40 विधायक शिव सेना के बताए जा रहे हैं। अगर यह दावा सही है तो साफ है कि उद्धव ठाकरे अपने पार्टी से नियंत्रण खो चुके हैं। और उसी का असर शिव सेना सांसद भावना गवली के लेटर की भाषा से दिखाई दे रहा है। 22 जून को लिखे गए लेटर में गवली ने साफ तौर पर लिखा है कि उद्धव ठाकरे को बागियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करनी चाहिए और कोई भी फैसला हिंदुत्व को ध्यान में रखकर करना चाहिए।
सूत्रों के अनुसार गावली की तरह शिव सेना के कम से कम 4-5 सांसद हैं जो शिंदे के साथ संपर्क में हैं। और आने वाले समय में इनकी संख्या बढ़ सकती है। अगर ऐसा होता है तो उद्धव ठाकरे के लिए एक और चुनौती खड़ी हो सकती है। इस समय शिवसेना के 19 सांसद हैं।
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दल-बदल के लिए इतनी संख्या जरूरी
उद्धव ठाकरे के लिए एकनाथ शिंदे की बगावत से सबसे बड़ा खतरा, शिव सेना पर अधिकार को लेकर हो गया है। क्योंकि शिंदे के दावे के आधार पर उनके पास 37 से ज्यादा शिव सेना के विधायकों का समर्थन है। और इस आधार पर दल-बदल कानून के दायरे में शिंदे गुट नहीं आएगा। और उसे नए दल के रूप में मान्यता भी मिल सकती है। जिस तरह शिंदे बार-बार यह कह रहे हैं कि बाला साहेब ठाकरे की विरासत बढ़ाएंगे, उससे साफ है कि आने वाले समय में असली शिव सेना होने का दावा ठोकेंगे।
इसी तरह 19 सांसदों वाली शिव सेना के नाराज सांसदों को शिंदे गुट में शामिल होने के लिए 13 सांसदों की जरूरत पड़ेगी। और अगर ऐसा होता है तो उद्धव ठाकरे पूरी तरह से शिव सेना से अपना नियंत्रण खो चुके होंगे। और इसकी बानगी विधायक संजय शिरसाट ने उद्धव ठाकरे को 3 पेज के लिए खुले लेटर में पेश कर दी है। उन्होंने लिखा है कि ढाई सालों में हमारे लिए मातोश्री के दरवाजे बंद किए गए। मतोश्री में हमें घंटों तक इंतजार कराया गया है। शिंदे ने कहा कि मंत्रालय में भी आप नहीं मिलते थे। शिंदे ने कहा कि हम ऊब गए और आपका साथ छोड़ दिया।
शिंदे का असर पुराने बागियों से कहीं ज्यादा
ऐसा नहीं है कि शिवसेना में पहली बार बगावत हुई है। बाला साहेब ठाकरे के समय ही उनके भतीजे राज ठाकरे ने शिव सेना से अलग होकर महाराष्ट्र नव निर्माण सेना बनाई थी। इसके अलावा इस समय भाजपा में शामिल नारायण राणे और एनसीपी नेता छगन भुजबल भी शिव सेना से बगावत कर चुके हैं। लेकिन इन पिछली बगावत और शिंदे की बगावत में सबसे बड़ा अंतर संगठन में पकड़ का है। उद्धव ठाकरे के दौर में शिंदे शुरू से पार्टी में नंबर 2 रहे हैं। और वह विधायक दल के नेता भी थे। इसके अलावा बीमारी और राजनीति में कम सक्रिय रहने की वजह से उद्धव ठाकरे की कार्यकर्ताओं से दूरी ने भी शिंदे को संगठन के स्तर पर मजबूत किया है। यही कारण है कि बगावत इस स्तर पर पहुंच गई है, कि ठाकरे परिवार का रसूख घटता दिख रहा है। जिसके जरिए बाला साहेब ठाकरे हर संकट से निकल जाया करते थे।