- गैर बीजेपी, गैर कांग्रेस दलों के साथ गठबंधन के लिए तैयार- ओवैसी
- ओम प्रकाश राजभर और शिवपाल यादव से इस मुद्दे पर बातचीत हुई
- 'बीजेपी के खिलाफ लोगों में गुस्सा, मिलकर लड़े चुनाव तो करेंगे परास्त'
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 बीजेपी, एसपी, बीएसपी, कांग्रेस और दूसके छोटे दलों के लिए कई मायनों में अहम है। चुनाव से पहले की अगर बात करें तो बीजेपी के खिलाफ समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस अलग अलग लड़ती हुई नजर आ रही हैं हालांकि अंदरखाने छोटे दलों के साथ गठबंधन की कवायद भी जारी है। इन सबके बीच यूपी विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने भी एंट्री करने का फैसला किया है और जमीन पर गठबंधन की कवायद में जुटा है।
ओवैसी और चंद्रशेखर रावण के दो बड़े बयान
पहला बयान एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी की तरफ से आया उन्होंने कहा कि गैर बीजेपी गैर कांग्रेस दल के साथ गठबंधन करने में परहेज नहीं है इसका अर्थ यह है कि उनका इशारा समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी की तरफ था। दूसरा बड़ा बयान भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर रावण ने दिया उन्होंने कहा कि अगर मायावती 2022 में उनका समर्थन करती हैं तो 2024 में वो उन्हें पीएम बनाने में मदद करेंगे।
मिलकर लड़े तो बीजेपी को हरा देंगे
ओवैसी कहते हैं कि उनकी मुलाकात शिवपाल यादव से हुई है। उन्होंने ओम प्रकाश राजभर और शिवपाल यादव दोनों से कहै है कि अगर वो लोग चाहें तो एआईएमआईएम, गैर कांग्रेस और गैर बीजेपी दल के साथ गठबंधन कर सकती है। इस समय बीजेपी सरकार के खिलाफ लोगों में बहुत गुस्सा है। अगर हम सब एक साथ मिलकर चुनाव लड़े तो बीजेपी को ना सिर्फ कड़ी टक्कर दे सकते हैं बल्कि हरा भी सकते हैं लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या शिवपाल यादव,अखिलेश यादव के साथ आएंगे या अखिलेश यादव अपने चाचा को पर्याप्त संख्या में सीट देंगे।
क्या कहते हैं जानकार
2022 चुनाव के मद्देनजर विरोधी दलों को लगता है कि अगर गैरयादव समाज से जुड़े दल एसपी या बीएसपी के साथ आए तो एक ऐसा समीकरण बनेगा जो बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ा करेगा। बीजेपी ने 2017, 2019 के चुनाव में गैर यादव ओबीसी जातियों को लुभाने के लिए तरह तरह के गठबंधन को जमीन पर उतारा था। लेकिन योगी आदित्यनाथ को जब सीएम बनाया गया तो विपक्षी दलों ने राग अलापना शुरु किया कि बीजेपी के लिए पिछड़ी जाति सिर्फ वोटबैंक हैं, अगर ऐसा ना होता तो केशव प्रसाद मौर्या को सीएम क्यों नहीं बनाया गया। इस तरह के नारे को 2019 के आम चुनाव में भी उछाला गया लेकिन नतीजों में बीजेपी को उतना नुकसान नहीं हुआ। यूं कहें तो बीएसपी और एसपी एक साथ चुनावी मंच पर आकर भी सामाजिक समीकरणों को ईवीएम तक ले जाने में कामयाब नहीं हुए। यह बात सच है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में स्थानीय कारण प्रभावी भूमिका में होंगे। इन सबके बीच बीजेपी की भी तरफ से छोटे छोटे दलों के साथ गठबंधन को जमीन पर उतारने की तैयारी जारी है।