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Bihar Cabinet Expansion:नीतीश सरकार की कमजोर कड़ी उपेंद्र कुशवाहा ! मंत्री पद का कटा पत्ता

Updated Aug 16, 2022 | 17:09 IST

Bihar Cabinet Expansion: उपेंद्र कुशवाहा का मंत्रियों के शपथ ग्रहण में शामिल नहीं होना, कही सारे कयासों को जन्म दे रहा है। ऐसा बताया जा रहा है कि कुशवाहा नाराज होकर बिहार से बाहर चले गए हैं। हालांकि इस मामले में कुशवाहा का भी बयान आया है। उन्होंने नाराजगी का न केवल खंडन किया है बल्कि ट्वीट कर नए मंत्रियों को सलाह भी दी है।

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उपेंद्र कुशवाहा का बार-बार पाला बदलने का रिकॉर्ड
मुख्य बातें
  • उपेंद्र कुशवाहा के राजनीतिक करियर को देखा जाय तो वह कभी खास विचारधारा से नहीं जुड़े रहे हैं।
  • साल 2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (RLSP) का गठन किया
  • 2020 के विधानसभा चुनाव के पहले उपेंद्र कुशवाहा ने ओवैसी के साथ मिलकर 'ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट' बनाया था।

Bihar Cabinet Expansion:बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी कैबिनेट का गठन कर लिया है। नई कैबिनेट में 31 मंत्रियों को जगह मिली है। राजद-जद (यू)-कांग्रेस और HAM से मिलकर बनी महागठबंधन सरकार में राजद के 16 मंत्रियों ने शपथ ली है। जबकि जद (यू) से 11 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई। वहीं कांग्रेस से दो , HAM से एक और एक निर्दलीय विधायक को मंत्री बनाया गया है। लेकिन इस लिस्ट में एक शख्स का नाम न होना कइयों कौ चौंका रहा है। नीतीश कुमार के करीबी उपेंद्र कुशवाहा को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है।

क्या नाराज हैं कुशवाहा

इस बीच उपेंद्र कुशवाहा का मंत्रियों के शपथ ग्रहण में शामिल नहीं होना, कही सारे कयासों को जन्म दे रहा है। ऐसा बताया जा रहा है कि कुशवाहा नाराज होकर बिहार से बाहर चले गए हैं। हालांकि इस मामले में कुशवाहा का भी बयान आया है। उन्होंने नाराजगी का न केवल खंडन किया है बल्कि ट्वीट कर नए मंत्रियों को सलाह भी दी है। लेकिन कुशवाहा के पुराने रिकॉर्ड को देखा जाय तो वह कभी भी पाला बदल सकते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार जद (यू) के अंदर कुशवाहा समाज के नेताओं के विरोध के चलते, उपेंद्र कुशवाहा का पत्ता कटा है। 

 

कभी एनडीए,कभी महागठबंधन तो कभी जद (यू) में

उपेंद्र कुशवाहा के राजनीतिक करियर को देखा जाय तो वह कभी खास विचारधारा से नहीं जुड़े रहे हैं। समय के साथ-साथ वह मौके को देखते हुए पाला बदलते रहे हैं। मसलन 2020 के विधानसभा चुनाव के पहले उपेंद्र कुशवाहा ने 'ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट' बनाया था। इस गठबंधन में कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के अलावा बहुजन समाज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM शामिल थी। कुशवाहा इस फ्रंट के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी थे। 

हालांकि चुनावों में हार के बाद उन्होंने पाला बदल लिया। मार्च 2021 में राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी का जद (यू) में विलय हो गया। और इस समय वह जद (यू) के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हैं।

इसके पहले साल 2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (RLSP) का गठन किया और 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए का हिस्सा बने। चुनाव में एनडीए की जीत के बाद कुशवाहा केंद्र में शिक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री बने। हालांकि 2017 में नीतीश कुमार के दोबारा एनडीए में आने के बाद कुशवाहा यहां से अलग हो गए और अपनी RLSP को महागठबंधन का हिस्सा बना लिया।

नीतीश के साथ समता पार्टी के दौर में जुड़े

जब साल 1995 में जॉर्ज फर्नांडिज और नीतीश कुमार के नेतृत्व में समता पार्टी का गठन हुआ, तो उस समय उपेंद्र कुशवाहा भी समता पार्टी में शामिल हो गए थे। लेकिन जब 2005 में जद(यू) की सरकार बनी तो उपेंद्र कुशवाहा मंत्री नहीं बन पाए। उसके बाद वह जद (यू ) से अलग हो गए। हालांकि 4 साल बाद फिर वह 2009 में कुशवाहा जेडीयू में आए और 2010 में सांसद बन गए। और फिर नीतीश कुमार से दूरी को देखते हुए उन्होंने 2013 में आरएलएसपी का गठन कर लिया।

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आरसीपी सिंह विवाद से जद (यू) में सब-कुछ ठीक नहीं

भले ही नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग होकर राजद के साथ सरकार बना ली है। लेकिन जद (यू) में भी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। आरसीपी सिंह को लेकर पार्टी में जिस तरह घमासान हुआ और उसके बाद उनके करीबी अजय आलोक सहित दूसरे नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया । उससे यह तो साफ है कि जद (यू) में सब-कुछ सामान्य नहीं है। और कुशवाहा का जैसा रिकॉर्ड रहा है, ऐसे में वह कब क्या कदम उठा लें, इसकी किसी को भनक नहीं है।

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