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मुख्तार अंसारी पर POTA लगाने वाले DSP पर दर्ज मुकदमा 16 साल बाद वापस लिया, दबाव में दिया था इस्तीफा

Updated Mar 31, 2021 | 16:37 IST

2004 में गैंगस्टर मुख्तार अंसारी पर POTA लगाने वाले पूर्व डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह के खिलाफ दायर मुकदमा वापस ले लिया गया है। उन्हें तब इस्तीफा देना पड़ा था।

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शैलेंद्र सिंह

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश सरकार ने वाराणसी में पूर्व डिप्टी एसपी रहे शैलेंद्र सिंह के खिलाफ दर्ज मामला वापस ले लिया है। शैलेंद्र सिंह ने 2004 में गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी पर आतंकवाद निरोधक अधिनियम (POTA) लागू किया था। सीजेएम वाराणसी ने पूर्व डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह के खिलाफ मुकदमा वापस लेने का आदेश दिया है। 

सोशल मीडिया पर बयां किया दर्द

आदेश के बाद शैलेंद्र कुमार सिंह ने फेसबुक पर लिखा, '2004 में जब मैंने माफिया मुख्तार अंसारी पर  LMG केस में POTA लगा दिया था, तो मुख्तार को बचाने के लिए तत्कालीन सरकार ने मेरे ऊपर केस खत्म करने का दबाव बनाया। जिसे न मानने के फलस्वरूप मुझे Dy SP पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। इस घटना के कुछ महीने बाद ही तत्कालीन सरकार के इशारे पर राजनीति से प्रेरित होकर मेरे ऊपर वाराणसी में अपराधिक मुकदमा लिखा गया और मुझे जेल में डाल दिया गया। लेकिन जब मा. योगी जी की सरकार बनी तो उक्त मुकदमे को प्राथमिकता के साथ वापस लेने का आदेश पारित किया गया, जिसे मा. CJM न्यायालय द्वारा 6 मार्च, 2021 को स्वीकृति प्रदान की गई। मा. न्यायालय के आदेश की नकल आज ही प्राप्त हुई। मैं और मेरा परिवार मा. योगी जी की इस सहृदयता का आजीवन ऋणी रहेगा। संघर्ष के दौरान मेरा साथ देने वाले सभी शुभेक्षुओं का, हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।' 

कौन हैं शैलेंद्र सिंह और क्या है मामला?

2004 में शैलेंद्र सिंह उत्तर प्रदेश के स्पेशल टास्क फोर्स (STF) की वाराणसी यूनिट के प्रभारी थे। लखनऊ के कैंट इलाके में कृष्णानंद राय और मुख्तार अंसारी के बीच गोलीबारी की घटना हुई थी। तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार ने मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय गिरोह के खिलाफ सतर्क रहने के लिए यूपी एसटीएफ को सक्रिय किया। वाराणसी एसटीएफ ने कुछ संदिग्ध फोन नंबरों को सर्विलांस पर लगाया। जनवरी 2004 में एक कॉल से एक लाइट मशीन गन (LMG) की डील के बारे में पता चला। वॉइस कॉल के आधार पर शैलेंद्र सिंह ने दावा किया था कि मुख्तार अंसारी 35 राइफल्स जम्मू के भगोड़े सैनिक बाबू लाल के साथ एक करोड़ रुपए में LMG दिलाने का सौदा कर रहा था। इस बंदूक का सौदा मुख्तार अंसारी के गनर मुन्नार यादव द्वारा किया गया था, जो बाबू लाल के चाचा थे।

छापेमारी और गिरफ्तारी की

कॉल इंटरसेप्ट होने के बाद शैलेंद्र सिंह ने अपनी टीम के साथ 25 जनवरी, 2004 को वाराणसी के चौबेपुर इलाके में छापा मारा और बाबू लाल यादव, मुन्नार यादव को मौके से गिरफ्तार किया और 200 जिंदा कारतूस के साथ LMG भी बरामद की। शैलेंद्र सिंह ने चौबेपुर पुलिस स्टेशन में दो मामले दर्ज किए। पहला आर्म्स एक्ट के तहत था और दूसरा पोटा के तहत। प्राथमिक जांच के दौरान, यह पता चला कि जिस मोबाइल नंबर पर एलएमजी सौदा किया गया था, वह मुख्तार अंसारी के करीबी गुर्गे तनवीर उर्फ तनु को जारी किया गया था, लेकिन उसका फोन मुख्तार अंसारी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था। 

राजनीति में रखा कदम

इसके बाद खूब बवाल मचा। एफआईआर बदलने या पोटा मामले से मुख्तार अंसारी का नाम हटाने के लिए शैलेंद्र सिंह पर जबरदस्त दबाव बनाया गया। अगले महीने फरवरी 2004 में शैलेंद्र सिंह ने पुलिस सेवाओं से इस्तीफा दे दिया। नौकरी से इस्तीफा देने के बाद शैलेंद्र सिंह ने फिर राजनीति में कदम रखा, वो चुनाव हार गए। कुछ महीने बाद उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई, उन्हें जेल भेजा गया। अब, यूपी में भाजपा सरकार ने सहायक अभियोजन अधिकारी द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर शैलेंद्र सिंह के खिलाफ मामला वापस ले लिया है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, वाराणसी ने शैलेंद्र सिंह के खिलाफ मुकदमा वापस लेने का आदेश जारी किया है।

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