- केंद्र सरकार की वैक्सीनेशन नीति को लेकर लगातार उठते रहे हैं सवाल
- तमाम राज्य केंद्र से कर रहे हैं एक केंद्रीयकृत पॉलिसी की मांग
- वैक्सीनेशन को लेकर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट भी कर चुका है कटघरे में खड़ा
नई दिल्ली: भारत में कोरोना वैक्सीन को लेकर हंगामा मचा हुआ है। इस हंगामें को समझने के लिए सबसे पहले ये जानना जरुरी है कि भारत में कोरोना वैक्सीन की कितनी डोज की जरुरत है। देश के विभिन्न राज्य लगातार सरकार से अधिक से अधिक डोज मांग रहे हैं। वैक्सीन के मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सरकार को कटघरे में खड़ा कर चुका है ऐसे में आबादी के हिसाब से वैक्सीनेशन के समीकरण को समझना भी जरूरी है।
- भारत की कुल आबादी है 138 करोड़।
- 18 से 44 साल की आबादी है 62 करोड़
- 45 साल से ऊपर की आबादी है 44 करोड़
- 18 साल से कम की आबादी है 32 करोड़
212 करोड़ डोज
अब सवाल उठता है कि भारत के 138 करोड़ आबादी के लिए कितनी डोज कोरोना वैक्सीन की जरुरत है। सबसे पहले 138 करोड़ में से 18 साल से कम की आबादी है 32 करोड़ जिसे हम घटा देंगे क्यंकि अभी भारत में 18 साल से कम उम्र के 32 करोड़ की आबादी को वैक्सीन नहीं दी जा रही है। इसका मतलब भारत की 106 करोड़ आबादी को कोरोना वैक्सीन की 2 डोज देने के लिए हमें 212 करोड़ डोज चाहिए।
बढ़ानी होगी वैक्सीनेशन की रफ्तार
ये भी जानना जरुरी है कि अब तक यानी 3 जून 2021 तक भारत में कुल कितने डोज दिए जा चुके हैं। भारत सरकार के हिसाब से 3 जून तक 22 करोड़ 10 लाख 43 हजार 693 डोज दिए जा चुके हैं। यानी कुल मिलाकर भारत को दोनों डोज पूरा करने के लिए 190 करोड़ डोज चाहिए। इस आंकड़े को पूरा करने के लिए भारत को प्रति दिन 54 लाख वैक्सीन डोज चाहिए होगी जबकि अभी हम सिर्फ 20 से 25 लाख डोज वैक्सीन दे पा रहे हैं और शनिवार और रविवार को तो ये भी नंबर घट जाता है।
अब सवाल उठता है कि ये 190 करोड़ वैक्सीन डोज कहाँ से आएंगे ? भारत सरकार के हिसाब से देश में दिसंबर 2021 तक 216 करोड़ वैक्सीन के डोज उपलब्ध होंगे। यही कारण है कि भारत में वैक्सीन को लेकर हंगामा हो रहा है क्योंकि अभी तक कोरोना को ख़त्म करने के लिए कोई और उपाय उपलब्ध नहीं है, सिर्फ एक ही उपाय बचा है कि 106 करोड़ आबादी को वैक्सीनेट कर दिया जाए।
वैक्सीन नीति पर सवाल
एक बात और समझना जरुरी है कि भारत में वैक्सीन पॉलिसी को लेकर तरह तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं बल्कि कहा तो ये जा रहा है कि भारत के पास कोई स्पष्ट वैक्सीन नीति नहीं है। ऐसा क्यों कहा जा रहा है। इसकी अपनी एक कहानी है। शुरुआती दौर में मोदी सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर एक नीति तय की थी लेकिन राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार के केंद्रीकृत पॉलिसी पर सवाल खड़े कर दिए उसके बाद केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को छूट दे दी कि राज्य सरकार भी सीधे सीधे वैक्सीन का प्रोक्योरमेंट कर सकती है लेकिन ये पॉलिसी बैकफायर कर गई क्योंकि विदेशी वैक्सीन कंपनियों ने राज्य सरकारों के साथ डील करने से मना कर दिया। विदेशी वैक्सीन कंपनियों का कहना था कि वो केंद्र सरकार से डील करेगी ना कि राज्य सरकारों से।
इस समस्या के सन्दर्भ में देश के 3 मुख्यमंत्रियों के स्टेटमेंट को जानना जरुरी है
पहला, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ़ साफ़ कहा कि देश के सभी मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह करें कि वैक्सीन नीति को बदला जाए और मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि वह यह इनिशिएटिव लेने के लिए तैयार हैं।
दूसरा , केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने देश के 11 गैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों को चिठ्ठी लिखा कि सब मिलकर केंद्र सरकार से मुफ्त वैक्सीन की मांग करें।
सुप्रीम कोर्ट ने खड़े किए सवाल
तीसरा , ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने देश के सभी मुख्यमंत्रियों को चिठ्ठी लिखकर कहा कि भारत सरकार वैक्सीन की केंद्रीयकृत तरीके से खरीद करे। कुल मिलाकर तीनों मुख्यमंत्रियों का यही कहना है कि केंद्र सरकार वैक्सीन ख़रीदे और राज्यों को वितरित करे। और इसी सन्दर्भ में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी केंद्र सरकार के वैक्सीन पॉलिसी पर सीधे सीधे सवाल खड़े दिए।
अंत में सवाल उठता है कि वैक्सीन की समस्या से कैसे निबटें। हमारे पाँच सुझाव है। पहला, एक स्पष्ट नेशनल वैक्सीन पॉलिसी बने। दूसरा, वैक्सीन का प्रोक्योरमेंट केंद्रीय स्तर पर हो। तीसरा , जितना जल्दी हो सके सभी को वैक्सीनेट किया जाए। चौथा, वैक्सीन के नाम पर राजनीति ना हो। पांचवां , हम सब मिलकर ही कोरोना को हरा सकते हैं खंडित हो कर नहीं। एक ही मंत्र 'वैक्सीन फॉर ऑल' क्योंकि कोरोना को हराना है भारत को जिताना है।