- पार्थ चटर्जी राजनीति में आने से पहले एक प्रतिष्ठित कंपनी में HR प्रोफेशनल थे।
- पिछले 10 साल से वह ममता कैबिनेट में मंत्री बने हुए थे।
- अर्पिता मुखर्जी ने अपने घर पर मिली 50 करोड़ से ज्यादा की नकदी को पार्थ चटर्जी को बताया है।
Who is Parth Chatterjee: पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी पर 25 जुलाई को जब ममता बनर्जी ने चुप्पी तोड़ी थी, तो उनके बयान से लग गया था कि वह अपने बेहद खास और पार्टी में नंबर-2 की हैसियत रखने वाले पार्थ से दूरी बना रही हैं। और अब उन्होंने न केवल पार्थ चटर्जी को मंत्री से हटा दिया है बल्कि तृणमूल कांग्रेस से भी निलंबित कर दिया है । और पार्टी के सभी अहम पदों से भी हटा दिया है। पार्थ मुखर्जी के खिलाफ ममता की यह कार्रवाई साफ तौर पर दिखाती है कि वह शिक्षक भर्ती घोटाले में पार्थ चटर्जी और अर्पिता चटर्जी का नाम आने और करोड़ों की नकदी मिलने से बैकफुट पर हैं।
इसके पहले 25 जुलाई को ममता बनर्जी ने कहा था यदि कोई दोषी है, तो व्यक्ति को जीवन भर के लिए सजा मिलनी चाहिए। मुझे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मैं समयबद्ध जांच चाहती हूं साथ ही मैं चेतावनी देती हूं कि अगर आप इसका इस्तेमाल मुझ पर लांछन लगाने के लिए करेंगे तो मैं आप को भी नहीं छोड़ूंगी।
पार्थ चटर्जी पर ममता कार्रवाई से साफ है कि वह यह संदेश देना चाहती है कि चाहे कोई कितना भी करीबी हो ममता भ्रष्टाचार पर समझौता नहीं करेंगी। लेकिन जिस तरह मामले में हर रोज खुलासे हो रहे हैं, उसे साफ है कि यह घोटाला ममता के लिए नई मुसीबत बन सकता है। ऐसे में पार्थ का ममता का बेहद करीबी होना आने वाले समय में परेशानी खड़ी कर सकता है।
ममता से है बेहद पुराना नाता
पार्थ चटर्जी राजनीति में कॉरपोरेट जगत की हाई-प्रोफाइल नौकरी छोड़ कर आए थे। वह एक प्रतिष्ठित कंपनी में HR प्रोफेशनल थे। और उनकी राजनीति और ममता बनर्जी की राजनीतिक करियर करीब-करीब एक ही समय शुरू हुई थR। चटर्जी ने साठ के दशक में कांग्रेस की छात्र शाखा-छात्र परिषद के नेता के रूप में राजनीति में कदम रखा। उस वक्त वह कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन सत्तर के दशक में उन्होंने एक हाई-प्रोफाइल कारपोरेट नौकरी ज्वाइन कर ली। इसके बाद उनका राजनीतिक करियर रुक गया। उस वक्त ममता बनर्जी भी कांग्रेस में हुआ करती थी। इसके बाद जब ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर एक जनवरी 1998 को तृणमूल कांग्रेस का गठन किया तो चटर्जी ने सक्रिय राजनीति में फिर से उतरने का फैसला किया।
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लगातार 10 साल से थे मंत्री
वह तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर वर्ष 2001 से लगातार पांच बार बेहाला पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। चटर्जी का सियासी सफर वर्ष 2006 में तब शिखर पर पहुंचा, जब विधानसभा में वह तृणमूल कांग्रेस पार्टी के नेता बने और बाद में नेता प्रतिपक्ष बने। जब ममता बनर्जी ने सिंगूर और नंदीग्राम में कथित जबरन भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर बंगाल की सड़कों पर शक्तिशाली वाम मोर्चा शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी, तो चटर्जी विधानसभा में विपक्ष की आवाज बन गए। साल 2007 में ममता ने उन्हें तृणमूल कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया। चार साल बाद 2011 में पार्टी के सत्ता में आने के बाद उन्हें उद्योग और संसदीय मामलों का प्रभार दिया गया। और इसके बाद से वह पिछले 10 साल से लगातार ममता बनर्जी की कैबिनेट में बने रहे। लेकिन अब ममता बनर्जी ने उनसे किनारा कल लिया है। और जिस तरह से ईडी का उन पर शिकंजा कस रहा है। ऐसे में लगता है कि उनकी ममता से दूरी बढ़ती जाएगी।
(एजेंसी इनपुट के साथ)